India-Pakistan tension : पहलगाम नरसंहार के बाद एलओसी क्रास कर 'हमला' करने की तैयारियों में जुटी भारतीय सेना की यह कार्रवाई पहली बार नहीं होगी। उड़ी हमले के बाद की गई कार्रवाई भी पहली नहीं थी बल्कि करगिल युद्ध के बाद से ही भारतीय सेना ऐसी कार्रवाईयां करने पर मजबूर हुई थी जिसमें उसे हर बार एलओसी क्रास करनी पड़ी थी लेकिन यह सब इतने गुपचुप तरीके से हुआ था कि आज भी भारतीय सेना ऐसी कार्रवाईयों पर खामोशी ही अख्तियार किए हुए है।
पुलवामा में हुए हमले के बाद ऑपरेशन बालाकोट से पहले उड़ी हमले के बाद पाक कब्जे वाले कश्मीर में घुसकर 50 से अधिक आतंकियों को ढेर करने वाला सर्जिकल ऑपरेशन एलओसी पर भारतीय सेना द्वारा अंजाम दिया गया हमला कोई पहला नहीं था। इससे पहले भी करगिल युद्ध के बाद कई बार भारतीय सेना ने तब-तब एलओसी को पार किया था जब-जब पाक सेना ने भारतीय जवानों को मारा था या फिर उसके द्वारा इस ओर भेजे गए आतंकियों ने देश में कहर बरपाया था।
उड़ी घटनाक्रम की खास बात बस इतनी ही थी कि भारतीय सेना ने यह पहली बार ऑन रिकॉर्ड स्वीकार किया था कि उसने उस एलओसी को पार किया है जिसे उसने करगिल युद्ध में मौका होने के बावजूद पार नहीं किया था। अगर रक्षा सूत्रों की मानें तो सबसे पहले भारतीय सेना ने उस समय एलओसी को लांघा था जब पाकिस्तान ने करगिल युद्ध में भी मुंह की खाई तो उसने एलओसी पर स्थित उन भारतीय चौकियों पर बैट हमले आरंभ किए थे जहां दो या तीन जवान ही तैनात होते थे।
सूत्रों के मुताबिक, ऐसे कई हमलों में पाक सेना ने आतंकियों के साथ मिलकर कई भारतीय जवानों को नुकसान पहुंचाया था और बदले की कार्रवाई जब हुई तो भारतीय सेना को भी एलओसी लांघने पर मजबूर होना पड़ा और पाक सेना को बराबर की चोट पहुंचाने में कामयाबी पाई गई।
इसके बाद जब आतंकियों ने संसद पर हमला बोला था। यह हमला 13 दिसंबर 2001 को हुआ तो उसके तुरंत बाद सीमाओं पर फौज लगा दी गई थी। पाक सेना ने कई सेक्टरों में मोर्चा खोला और बैट हमले आरंभ कर दिए थे। ऐसे में दुश्मन को सबक सिखाने की खातिर एलओसी को लांघने की अनुमति स्थानीय स्तर पर दी गई।
सूत्रों पर विश्वास करें तो सबसे ज्यादा नुकसान भारतीय सेना ने कालू चक नरंसहार नायक हेमराज सिंह के सिर काटकर ले जाने की घटना और वर्ष 2013 के अगस्त महीने में पाक सेना द्वारा सीमा चौकी को कब्जाने के प्रयास में पांच सैनिकों की हत्या कर दी गई थी, पाक सेना को पहुंचाया था और भारतीय जवानों ने कई बार एलओसी को लांघकर उस पार हमले बोले थे। जानकारी के लिए एलओसी जमीन पर खींची गई कोई रेखा नहीं है बल्कि एक अदृश्य रेखा है जिसको लांघना कोई मुश्किल भी नहीं है दोनों पक्षों के लिए।
वर्ष 2002 के मई महीने की 14 तारीख को कालू चक में पाक आतंकियों ने जो कहर बरपाया था उसमें 34 लोगों की मौत हो गई। मरने वालों में सैनिकों के परिवार के सदस्य ही थे जिनमें औरतें और बच्चे भी शामिल थे। इसके बाद वर्ष 2013 में दो घटनाएं हुई थीं। एक 6 अगस्त को और दूसरी 8 जनवरी को। एक में पाक सेना ने पांच जवानों को मार डाला था और दूसरी में हेमराज का सिर काटकर पाक सैनिक अपने साथ ले गए थे।
ऐसे हमलों का बदला ले लिया गया था। सेना ने तब दावा किया था कि पाक सेना को माकूल जवाब दे दिया गया है। हालांकि तब भी यह नहीं माना गया था कि बदला लेने के लिए एलओसी को लांघा गया था, पर उड़ी की घटना पहली ऐसी घटना थी जिसमें भारतीय सेना ने इसे आधिकारिक तौर पर माना था कि उसने पाक सेना तथा उसके आतंकियों को उनके ही घर में घुसकर मारने की खातिर उसके जवानों ने एलओसी को लांघा था।
पहली बार एलओसी को लांघकर पाकिस्तान के घर पर हमला बोलने की घटना को स्वीकार करने के बाद भारतीय सेना पर हमलावर और आक्रामक सेना का ठप्पा जरूर लगा था लेकिन इसने अगर भारतीय जवानों के मनोबल को बढ़ाया था तो पाकिस्तानी सेना के पांव तले से जमीन खिसका दी थी जो अभी तक भारतीय पक्ष को सिर्फ रक्षात्मक सेना के रूप में लेती रही थी।
विस्फोटकों से ध्वस्त किए आतंकियों के मकान
समाचार भिजवाए जाने तक करीब दर्जनभर उन एक मंजिली और बहुमंजिली घरों को विस्फोटकों की मदद से कश्मीर के विभिन्न कस्बों में ढहाया जा चुका था जो पहचाने गए स्थानीय आतंकियों के परिवारों के थे। हालांकि अधिकारी अभी भी दावा करते हैं कि इन मकानों के तलाशी अभियानों के दौरान भीतर रखे गए विस्फोटक फूटे थे और इनमें सुरक्षाबलों का कोई हाथ नहीं था। भीतर रखे गए विस्फोटों से घरों को नेस्तनाबूद करने का सिलसिला कहां जाकर रूकेगा कोई नहीं जानता क्योंकि चर्चा यह है कि पहचाने गए स्थानीय आतंकियों के उपरांत ओजीडब्ल्यू अर्थात ओवर ग्रांड वर्करों के घरों की बारी आने वाली है।
36 सालों के आतंकवाद के इतिहास में तब कश्मीरियों ने अपने इलाकों में मुठभेड़ों के शुरू होने के साथ ही अपने घरों के बचाव के लिए खुदा से यह दुआ मांगनी तब आरंभ की थी जब आतंकियों ने घरों पर कब्जे कर सुरक्षाबलों पर हमले करने आरंभ किए थे। दरअसल कई मुठभेड़ों के अक्सर लंबे चलने के कारण अधिकारियों ने फिर ऐसे घरों व इमारतों को मोर्टार से उड़ा देने की रणनीति अपनानी आरंभ की तो बीसियों परिवारों को घरों से बेघर होना पड़ा था।
कश्मीरी ऐसे हालात से उबर भी नहीं पाए थे कि पहलगाम नरसंहार के उपरांत सुरक्षाबलों ने जो व्यापक तलाशी अभियान पूरी वादी में छेड़ा उसमें स्थानीय आतंकियों के घरों को विस्फोटकों से उड़ा देने की जो नई रणनीति अपनाई जानी आरंभ हुई है उसने कश्मीरियों के पांव तले से जमीन खिसका दी है। उन्होंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि कश्मीर में ऐसा भी हो सकता है।
अभी तक वे दूसरे राज्यों में बुलडोजरों से घरों को ढहा दिए जाने की खबरें सुना करते थे लेकिन उस पर सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के उपरांत थोड़ी रोक तो लगी पर कश्मीर में आरंभ हुआ यह सिलसिला कहां खत्म होगा कोई नहीं जानता क्योंकि समाचार भिजवाए जाने तक सुरक्षा एजेंसियों ने जिन 14 स्थानीय आतंकियों की सूची जारी की थी उनमें से 12 के घरों को नेस्तनाबूद किया जा चुका था।
हालांकि कश्मीरियों को लगता नहीं था कि यह सिलसिला थम पाएगा क्योंकि मिलने वाली सूचनाएं कहती थीं कि इन 14 के बाद शायद उन ओजीडब्ल्यू के घरों की बारी आएगी जो प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर आतंकियों को समर्थन देते रहे हैं और दे रहे हैं। याद रहे पहलगाम हमले के बाद पूछताछ के लिए हिरासत में लिए गए 1500 के करीब लोगों में से 22 ओजीडब्ल्यू भी थे जिन्हें गिरफ्तार कर उनके कब्जे से हथियार भी बरामद किए गए हैं।
यह बात अलग थी कि कोई भी अधिकारी इन घरों को ढहाए जाने की घटनाओं की जिम्मेदारी लेने को राजी नहीं था। उनका कहना था कि तलाशी अभियानों के दौरान इन घरों में रखे गए विस्फोटों में विस्फोट होने से ऐसा हुआ है, जबकि यह सवाल अनुत्तरित था कि सच में इन सभी घरों में इतने विस्फोटक थे कि वे घरों को उड़ा सकते थे। शायद यह प्रधानमंत्री की वह ललकार है, जिसमें उन्होंने कहा था कि हमलावरों को कल्पना से परे का जवाब दिया जाएगा, एक कश्मीरी का कहना था।