सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला, धर्म, जाति के नाम वोट मांगना गलत

Webdunia
सोमवार, 2 जनवरी 2017 (11:21 IST)
नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को अपने एक अहम फैसले में उम्मीदवार या उसके समर्थकों के धर्म, समुदाय, जाति और भाषा के आधार पर वोट मांगने को गैरकानूनी करार दिया। न्यायालय ने जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 123 (3) की व्याख्या करते हुए यह अहम निर्णय सुनाया। 7 न्यायाधीशों की पीठ ने 4-3 के बहुमत से यह फैसला दिया। 
मुख्य न्यायाधीश टीएस ठाकुर की अगुवाई वाली पीठ ने इस मामले में सुनवाई के दौरान जनप्रतिनिधित्व कानून के दायरे को व्यापक करते हुए कहा कि हम यह जानना चाहते हैं कि धर्म के नाम पर वोट मांगने के लिए अपील करने के मामले में किस धर्म की बात है। फैसले में कहा गया कि चुनाव एक धर्मनिरपेक्ष पद्धति है और जनप्रतिनिधियों को भी अपने कामकाज धर्मनिरपेक्ष आधार पर ही करने चाहिए। 
 
न्यायालय ने बहुमत के आधार पर दिए इस निर्णय में कहा कि धर्म के आधार पर वोट देने की कोई भी अपील चुनावी कानूनों के अंतर्गत भ्रष्ट आचारण के समान है। न्यायालय ने कहा कि भगवान और मनुष्य के बीच का रिश्ता व्यक्तिगत मामला है। कोई भी सरकार किसी एक धर्म के साथ विशेष व्यवहार नहीं कर सकती और धर्म विशेष के साथ स्वयं को नहीं जोड़ सकती। 
 
फैसले के पक्ष में न्यायाधीश ठाकुर के अलावा न्यायमूर्ति एमबी लोकुर, न्यायमूर्ति एलएन राव और एसए बोबडे ने विचार दिया जबकि अल्पमत में न्यायमूर्ति यूयू ललित, न्यायमूर्ति एके गोयल और न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ ने विचार दिया। 
 
न्यायालय ने हिन्दुत्व मामले में दायर कई याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए यह फैसला दिया है। न्यायालय ने साफ किया है कि अगर कोई उम्मीदवार ऐसा करता है तो यह जनप्रतिनिधित्व कानून के तहत भ्रष्ट आचरण माना जाएगा और यह कानून की धारा 123 (3) के दायरे में होगा। 
 
इस मामले से संबंधित याचिकाओं पर पिछले 6 दिनों में लगातार सुनवाई हुई। वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल, सलमान खुर्शीद, श्याम दीवान, इंद्रा जयसिंह और अरविंद दत्तार आदि कई नामी-गिरामी वकीलों ने दलीलें दीं। 
 
पीठ ने एक बार फिर यह साफ किया कि वह हिन्दुत्व के मामले में दिए गए 1995 के फैसले पर पुनर्विचार नहीं करेगी। न्यायाधीश जेएस वर्मा की पीठ ने दिसंबर 1995 में निर्णय दिया था कि 'हिन्दुत्व' शब्द भारतीय लोगों की जीवनशैली की ओर संकेत करता है। 'हिन्दुत्व' शब्द को केवल धर्म तक सीमित नहीं किया जा सकता।
 
न्यायालय का यह फैसला ऐसे समय में आया है, जब आगामी कुछ महीनों में देश के सबसे बड़े राज्य उत्तरप्रदेश के अलावा पंजाब, उत्तराखंड समेत कई राज्यों में चुनाव होने वाले हैं। (वार्ता)
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