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‘वर्क फ्रॉम होम’ के बारे में 360 डि‍ग्री रिपोर्ट, पोस्‍ट कोरोना ने दिया स्‍ट्रेस-डि‍प्रेशन

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नवीन रांगियाल

  • मध्‍यप्रदेश की राजधानी भोपाल में 30 से 32 प्रति‍शत बढ़ी मेंटल हेल्‍थ संबंधी मरीजों की संख्‍या
  • कोरोना के बाद शुरू हुआ वर्क फ्रॉम होम था वरदान, अब बन गया अभि‍शाप

कोरोना ने दुनिया को कई नए कॉन्‍सेप्‍ट दिए हैं, उनमें से एक है ‘वर्क फ्रॉम होम’। नो ऑफि‍स, नो मिटिंग और नो चिकचिक। लेकिन घर पर ‘विद आउट ऑफि‍स एंड मिटिंग’ वाला यह फंडा, जिसे अब तक वरदान समझा जा रहा था, वही अब कर्मचारियों के लिए अभि‍शाप बन रहा है।

डॉक्‍टरों के पास आने वाले मरीजों का आंकड़ा, देश-विदेश में ‘वर्क फ्रॉम होम’ को लेकर हो रही रिसर्च और खुद कर्मचारि‍यों ने इस बात का खुलासा किया है कि ‘पोस्‍ट कोरोना’ लोगों में स्‍ट्रेस, डि‍प्रेशन,चिड़चिड़ेपन के साथ ही अन्‍य दूसरी तरह की मेंटल बीमारियों के आंकड़ों में खासा इजाफा हुआ है।

आइए जानते हैं ‘वर्क फ्रॉम होम’ के बारे में 360 डि‍ग्री रिपोर्ट, क्‍या कहते हैं डॉक्‍टर्स और क्‍या कहती है दुनियाभर की रिसर्च।

ऐसा आखि‍र क्‍यों हुआ ?
मध्‍यप्रदेश की राजधानी भोपाल के जाने-माने मनोचिकित्‍सक डॉ सत्‍यकांत त्र‍िपाठी  का कहना है मनुष्‍य एक सामाजिक प्राणी है, समाज में ही उसकी ग्रूमिंग हुई है, वह अपने लोगों के साथ रहता आया है और उन्‍हीं में रहना उसे अच्‍छा लगता है, इसलिए शुरुआत में वर्क फ्रॉम होम का कॉन्‍सेप्‍ट उसे बहुत भाया, लेकिन घर में रहते हुए घरवालों के साथ उसका एंटरेक्‍शन स्‍तर पहले के मुकाबले बढ़ गया, जिससे कई ऐसी चीजें सामने आई, जिनसे अब तक उसका सामना नहीं हुआ था। ऐसे में घर में बहस, विवाद, तनाव और चिड़चिड़ापन बढ़ा और बाद में यह डि‍प्रेशन और दूसरी मेंटल बीमारियों में तब्‍दील हो गया।

उन्‍होंने बताया कि‍ बाहर वाले अपने दोस्‍तों और सहकर्मियों के साथ उसका संपर्क टूट गया और वह ज्‍यादा समय तक घर में ही रहने लगा।

दरअसल, डॉ त्रिपाठी कहते हैं कि जेल, काल-कोठरी और काला-पानी आदि सजाओं का कॉन्‍सेप्‍ट भी यही है कि आदमी को सोशली डि‍स्‍कनेक्‍ट कर दिया जाए। कमोबेश ऐसा ही कुछ कोरोना या लॉकडाउन काल में लोगों के साथ हुआ।

मनोचिकित्‍सक डॉ त्र‍िपाठी ने बताया कि पोस्‍ट कोरोना उनके पास मनोचि‍कित्‍सक से जुड़ी बीमारियों के लिए आने वाले मरीजों की संख्‍या में 30 से 32 प्रति‍शत इजाफा हुआ है। कमोबेश यही हालात इंदौर और दूसरे शहरों में भी है।

क्‍या कहती है 19,950 महिलाओं पर की गई रिसर्च?
कुछ समय पहले लॉकडाउन के दौरान एक संस्‍था चैरिटी प्रेग्नेंट देन स्क्रूड द्वारा करीब 19 हजार 950 महिलाओं को लेकर एक रि‍सर्च तैयार की गई। जिसमें सामने आया कि महिलाओं के लिए वर्क फ्रॉम होम के दौरान ऑफिशियल काम मैनेज करना बहुत मुश्किल रहा। इसमें बच्चों की देखभाल सबसे बड़ी वजह साबित हुई। इस वजह से महिलाओं में कई तरह की मेंटल हेल्‍थ की गड़बडि‍यां दर्ज की गईं।

हैरत की बात है कि ऐसी समस्‍याओं के लिए इस संस्‍था में हेल्‍पलाइन पर कॉल करने वाली महिलाओं की संख्‍या में 442 प्रतिशत इजाफा हुआ।

यह संस्‍था महिलाओं की बराबरी की बात करती है, और कहती है कि उन्‍हें उनके महिला होने की वजह से जज नहीं किया जाना चाहिए।

19,950 महिलाओं पर की गई इस रिसर्च के आंकड़ें डराने और चौंकाने वाले हैं।

72% महिलाओं का कहना है कि वर्क फ्रॉम होम के दौरान बच्चों की देखभाल करते हुए उनके पास ऑफिशियल वर्क के लिए कम समय होता है।
65% मांओं का कहना है कि ऑफिस के काम को मैनेज नहीं कर पाने की वजह चाइल्ड केयर है।
74% बिजनेस वुमन की कमाई में बच्चों की देखभाल की वजह से भारी कमी आई है।

ठीक इसी तरह आम दिनों में...

46% महिलाओं को उनकी प्रेग्नेंसी की वजह से सस्पेंड कर दिया जाता है।
33% महिलाओं को थोड़े दिन की छुट्‌टी दी गई
13% महिलाओं को सिक पे लेने के लिए कहा गया। उन पर ये भी दबाव था कि वे चाहें तो मेटरनिटी लीव लेकर घर में रह सकती हैं।

इस तरह कोरोना के बाद नए कॉन्‍सेप्‍ट ने महिलाओं और पुरुषों में कई तरह की मानसिक बीमारियों को जन्‍म दिया।

कोरोना काल मानसिक तकलीफों के अलावा शारीरिक बीमारियों का भी जनक रहा। एक हेल्‍थ रिपोर्ट के मुताबिक इस दौर ने कम्‍प्‍यूटर विजन सिंड्रोम को जन्‍म दिया, इसकी वजह से...

आखों में दर्द
आंखों से पानी बहना
सुबह उठते आंखे लाल होना
आंख में पानी का सूख जाना। 
बैक पेन
चक्कर आना
स्क्रीन देखते वक्त धुंधला दिखाई देना
इन समस्‍याओं के लिए लोग डॉक्‍टर्स के पास पहुंच रहे हैं।

(इस लेख में व्यक्त विचार/विश्लेषण लेखक के निजी हैं। इसमें शामिल तथ्य तथा विचार/विश्लेषण 'वेबदुनिया' के नहीं हैं और 'वेबदुनिया' इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेती है।)

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