कैप्टन अमरिंदर सिंह के इस्तीफे के साथ ही पंजाब में सीएम पद का पैंच फंस गया है। अगले छह महीनों तक पंजाब में 'हाई वॉल्टेज पॉलिटिकल ड्रामा' देखने को मिल सकता है। छह महीने बाद पंजाब में चुनाव होना है, तब तक के लिए कांग्रेस के लिए पंजाब के राजनीतिक संकट को हल करना एक चुनौती है।
इस बीच पंजाब की राजनीति में दो सवाल खड़े हो गए हैं, जिनके बारे में फिलहाल कुछ भी स्पष्ट तौर पर नहीं कहा जा सकता है। राज्य में नए मुख्यमंत्री के सवाल पर पैंच फंसता नजर आ रहा है।
जहां तक नवजोत सिंह सिद्धू की बात है तो उन्हें सीएम पद मिल जाएगा इसकी उम्मीद नजर नहीं आती, क्योंकि कांग्रेस आलाकमान बतौर मुख्यमंत्री सिद्धू को पंसद नहीं करता। वहीं पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष बनने की सिद्धू की जिद को कांग्रेस पहले ही पूरा कर चुकी है। ऐसे में उनका सीएम बनना मुश्किल नजर आता है। दूसरा नाम सुनील जाखड़ का है।
सुनील जाखड़ का नाम लेना इसलिए जरूरी है क्योंकि पंजाब में उनका जनाधार है, वे बलराम जाखड के बेटे हैं, जो लोकसभा स्पीकर और केंद्र में मंत्री रह चुके हैं। लेकिन उनके साथ मुश्किल यह नजर आती है कि वे सिख चेहरा नहीं हैं। वे जाट हैं। गुरदासपुर से वे सनी देओल के खिलाफ चुनाव भी हार चुके हैं। ऐसे में उनके नाम पर भी अटकलें लगाना बहुत ज्यादा ठीक नहीं है।
ऐसे में कांग्रेस को अब अगले छह महीने के लिए किसी ऐसे नए चेहरे पर विचार करना होगा, जो सिद्धू और कैप्टन दोनों खेमों को संतुष्ट करता हो।
दूसरी तरफ पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह एक बड़े नेता हैं, उनकी वजह से ही पंजाब में कांग्रेस का अस्तित्व अभी भी बना हुआ है। बावजूद इसके कैप्टन को नाराज कर के कांग्रेस ने एक और मुसीबत मोल ले ली है। लेकिन उनके इस्तीफे के बाद कैप्टन की फ्यूचर पॉलिटिक्स क्या होगी, यह अब सबसे बड़ा सवाल है।
बहुत मोटे तौर पर देखने पर कैप्टन के सामने आप, अकाली दल और भाजपा के रास्ते नजर आते हैं। या फिर वे निकट भविष्य में नया दल भी बना सकते हैं।
किसान आंदोलन को आम आदमी पार्टी का सर्मथन मिला हुआ है, किसान आंदोलन मोटे तौर पर सिखों का आंदोलन भी है। पंजाब में आप की स्थिति भाजपा से बहुत अच्छी है। ऐसे में कैप्टन के सामने यह एक बड़ा विकल्प है, लेकिन यह तभी संभव होगा जब कैप्टन को आप की तरफ से सीएम चेहरा प्रोजेक्ट किया जाए।
जहां तक अकाली दल का सवाल है तो पंजाब में यह पार्टी अपने अस्तित्व के लिए ही संघर्ष कर रही है। नतीजन अकाली दल में कैप्टन का कोई फ्यूचर नजर नहीं आता। वे अकाली दल में तो नहीं जाएंगे।
कैप्टन की तीसरी संभावना भाजपा के साथ नजर आती है। वे पंजाब में भाजपा के कैप्टन हो सकते हैं, इससे भाजपा को पंजाब में बड़ा राजनीतिक फायदा होगा, लेकिन कैप्टन की उम्र भाजपा के 75 साल की उम्र वाले फॉर्मेट में नहीं आती, हालांकि कुछ ही समय पहले वे जब दिल्ली आए थे तो उन्होंने पीएम नरेंद्र मोदी और अमित शाह से मुलाकात की थी।
उस मुलाकात को भी आज के इस्तीफे से जोड़कर देखा जा सकता है, कैप्टन के लिए और पंजाब में एंट्री के लिए मोदी इस फॉर्मेट के नियम तोड़ सकते हैं। हालांकि ऐसा कहना अभी बहुत जल्दबाजी होगी। लेकिन पंजाब के मुख्यमंत्री के तौर पर अमरिंदर सिंह का मोदी और अमित शाह से मुलाकात करना एक नई तरह का राजनीतिक एंगल तो दर्शाता ही है।
अगर कैप्टन भाजपा के साथ आते हैं तो उन्हें राज्यपाल बनने का मौका मिल सकता है, दूसरी तरफ कैप्टन के बेटे रणिंदर सिंह का पॉलिटिकल कॅरियर स्थापित हो सकता है।
लेकिन फिलहाल यह सारी अटकलें सोनिया गांधी के इर्द-गिर्द टिकी हुईं हैं। इस्तीफे के बाद कांग्रेस विधायक दल की बैठक हुई, जिसमें 80 में से 78 विधायक शामिल हुए थे, इस बैठक में कैप्टन अमरिंदर सिंह शामिल नहीं हुए। अंतत: पंजाब का अगला कैप्टन कौन होगा, यह फैसला हर बार की तरह गांधी परिवार की तरफ से ही होगा। तब तक पंजाब की राजनीति अटकलों का बाजारभर है।