'कालबेलिया नृत्य' यूनेस्को सू्ची का गौरव

Webdunia
शनिवार, 22 नवंबर 2014 (18:53 IST)
-अनुपमा जैन
नई दिल्ली। दुनिया भर में भारत की कला, संस्कृति के गौरव का झंडा ऊंचा होने की एक और खबर, शायद हम में से ज्यादातर लोग इस बात से अनजान होंगे कि राजस्थान के मशहूर मनोहारी 'कालबेलिया नृ्त्य' को संयुक्त राष्ट्र की इकाई 'युनेस्को' ने वर्ष 2010 से मानवता की सांस्कृतिक विरासत की प्रतिनिधि सूची में शामिल कर रखा है।
 
राजधानी में इन दिनों चल रहे भारत अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेले में आयोजित 'राजस्थान दिवस' के अवसर पर आयोजित नृत्य संगीत की सुरमई शाम ने इस नृत्य के साथ-साथ राजस्थान के लोक कलाकारों द्वारा प्रस्तुत सांस्कृतिक कार्यक्रमों ने एक तिलिस्म सा माहौल में बिखेर दिया। मनोहारी चमक-दमक से भरे पारंपरिक वस्त्र पहने कालबेलिया नृत्य करती नर्तकियों, जैसे सांपों को ही मित्र मान उनके साथ झूम-झूमकर नृत्य कर रही थीं और इस पूरे माहौल के रंग में सराबोर काफी दर्शक भी अपने पांवों को थिरकने से नही रोक पाए।
 
इस अवसर पर बड़ी तादाद में देश के कला प्रेमियों के अलावा विदेशी सैलानी, दिल्ली में राजस्थान की प्रमुख आवासीय आयुक्त डॉ. सविता आनंद, अतिरिक्त आवासीय आयुक्त विमल शर्मा, राजस्थान मंडप के निदेशक रवि अग्रवाल, सहायक आवासीय आयुक्त श्रीमती कविता विवेक, राजस्थान सूचना केन्द्र के अतिरिक्त निदेशक गोपेन्द्र नाथ भट्ट, पर्यटक सूचना केंद्र दिल्ली के प्रभारी आरके सैनी एवं राज्य सरकार के अन्य अधिकारी भी मौजूद थे। 
 
भट्ट ने इस अवसर पर बताया 'राजस्थान के मशहूर कालबेलिया नृत्य के कलाकार विशेष तौर पर दुनिया भर के सांस्कृतिक समारोहों में हमेशा ही धूम मचा देते हैं, अब दुनिया के सांस्कृतिक पटल में इनकी पहचान से सब वाकिफ हैं। सैनी के अनुसार 'राजस्थान की यही कला संस्कृति, सभी को अपने से अनायास ही जोड़ कर उन्हें अपना बना लेती है यही वजह है राजस्थान, देशी विदेशी पर्यटकों का पसंदीदा पड़ाव है।
 
मंडप में आए एक कंप्यूटर विशेषज्ञ जे. सुनील के अनुसार दुनिया के अनेक देशों में राजस्थान के लोक-संगीत, नृत्य की गूंज के कला प्रेमी दीवाने हो चुके हैं। यह प्रसन्नता की बात है कि 21वीं सदी की विश्व शक्ति के रूप में जाने जाना वाले भारत की कला संस्कृति की विरासत इतनी लोकप्रिय है। 
 
दो घंटे से भी अधिक चले सांस्कृतिक कार्यक्रम में राजस्थान की विश्वप्रसिद्ध कालबेलियां नृत्यांगनाओं सहित प्रदेश के विभिन्न अंचलों से आए लोक कलाकारों ने ऐसा समां बांधा कि दर्शक मंत्रमुग्ध हो गए। जोधपुर से आए छंवर लाल गहलोत एवं उनके दल के कलाकारों ने कच्छी घोड़ी नृत्य और रहमत खां के खड़ताल वादन को दर्शकों ने खूब सराहा।  इसी प्रकार जयपुर की श्रीमती मोरू सपेरा एवं उनके सहयोगियों द्वारा प्रस्तुत कालबेलिया नृत्य और भरतपुर जिले के डीग से ललित शर्मा एवं उनके दल ने हैरत अंगेज कारनामों से मिलाजुला मयूर नृत्य प्रस्तुत कर दर्शकों को आनंदित कर दिया।
 
अनीशु एवं उनके दल का चरी नृत्य तथा सुश्री स्वेता गंगधानी एवं उनके दल का घूमर नृत्य, पाली की श्रीमती गंगा देवी के दल का तेरहताल नृत्य, जयपुर के महावीर राणा एवं उनके दल ने भवई नृत्य, सीकर के फतेहपुर शेखावाटी के श्याम सैनी और उनके दल का चंग ढप नृत्य, बारां के हरिकेशसिंह ने सहरिया नृत्य से दर्शकों को अभिभूत कर दिया। इस बार मेले का थीम महिला उद्यमी होने के नाते यह मंडल विशेष तौर पर महिला उद्यमियों को प्रदेश सरकार का सेल्यूट है। मंडप में विभिन्न स्टॉलों  में इनके द्वारा बनाए गए उत्पादों की उपलब्धता सुनिश्चित की गई है, वहीं महिला उद्यमियों द्वारा तैयार किए गए उत्पादों पर विशेष ध्यान दिया गया है। 
 
मंडप में महिला हस्तशिल्पियों के लिए विशेष रूप से बनाया गया 'शिल्प आंगन' इस बार विशेष आकर्षण का केन्द्र है। मंडप में लूम्स पर ही कोटा डोरिया साड़ियां, लाख की चूड़ियां बनाने की कला का प्रदर्शन विशेष आकर्षण का केन्द्र है। (वीएनआई)
 
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