पूर्व सैनिक रामकिशन की मौत पर दिल्ली में 'सियासी संग्राम'

Webdunia
बुधवार, 2 नवंबर 2016 (21:15 IST)
नई दिल्ली। सेवानिवृत्त सैन्यकर्मियों को 'वन-रैंक-वन पेंशन' (ओआरओपी) देने के मामले को कांग्रेस शासन ने दशकों तक ठंडे बस्ते में रखकर उसे लटकाए रखा था लेकिन मोदी सरकार ने सत्ता संभालने के बाद आश्वासन दिया था कि वह इस मुद्दे को सुलझाएगी और इस मामले का हल निकालेगी। मोदी सरकार ने  'वन-रैंक-वन पेंशन' का हल भी निकाला लेकिन मंगलवार को पूर्व सैनिक सूूबेदार रामकिशन ग्रेवाल ने अचानक आत्महत्या करके पूरी दिल्ली के राजनीतिक गलियारे में आग सी लगा दी है और एक तरह से इस पर 'सियासी संग्राम' शुरू हो गया है...
कांग्रेस से लेकर आम आदमी पार्टी तक सूूबेदार रामकिशन की आत्महत्या करने के मामले को लेकर राजनीतिक रोटियां सेंकने में जुट गई है। 'वन-रैंक-वन पेंशन' का जो मुद्दा कांग्रेस ने कई सालों तक दबाए रखा था, आज उसी मुद्दे पर राजनीति करके मोदी सरकार के खिलाफ आवाज उठा रही है। बुधवार को पूर्व सैनिकों और शहीदों के बारे में कांग्रेसी नारे लगाते हुए सड़कों पर उतर आए। विरोध प्रदर्शन ने इतना तूल पकड़ा कि दिल्ली पुलिस को कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी से लेकर ज्योतिरादित्य सिंधिया, शीला दीक्षित और राज बब्बर तक को हिरासत में लेना पड़ा। 
'वन-रैंक-वन पेंशन' को लेकर राष्ट्रीय मीडिया बहस कर रहा है और पूर्व सैनिकों का यह बड़ा मामला रामकिशन ग्रेवाल की आत्महत्या के बाद फिर से तूल पकड़ चुका है। रक्षा राज्यमंत्री वीके सिंह पर भी झूठ बोलने के आरोप लग रहे हैं। उधर आत्महत्या करने के पहले पूर्व सैनिक सूूबेदार रामकिशन ने 31 अक्टूबर 2016 को सैनिकों के साथ हो रहे अन्याय के बारे में रक्षामंत्री को पत्र लिखा था लेकिन अचानक 1 नवम्बर को उन्होंने आत्महत्या करके कई तरह के सवालों को एक बार फिर पूरे देश के सामने उठा दिया है। आखिर क्या है 'वन-रैंक-वन पेंशन' का मुद्दा, इसे आप भी जानिए...
 
वन रैंक-वन पेंशन का अर्थ : वन रैंक-वन पेंशन का अर्थ है, अलग-अलग समय पर रिटायर हुए एक ही रैंक के दो फौजियों की पेंशन की राशि में बड़ा अंतर न रहे। 2006 से पहले रिटायर हुए सैन्यकर्मियों को कम पेंशन प्राप्त हो रही थी, यहांं तक कि यह पेंशन अपने से कम रैंक वाले अफसर से भी कम है। यह अंतर इतना अधिक हो गया था कि पहले से रिटायर अफसरों की पेंशन बाद में रिटायर हुए छोटे अफसरों से कम हो गई। 
 
इस अंतर को इस बात से समझा जा सकता है कि 2006 से पहले रिटायर हुए मेजर जनरल की पेंशन 30300 रुपए है जबकि आज कोई कर्नल रिटायर होगा तो उसे 34000 रुपए पेंशन प्राप्त होगी जबकि मेजर जनरल एक कर्नल से दो रैंक ऊपर का अधिकारी होता है। एक रैंक लेकिन असमान पेंशन' का ये मामला केवल फौजी अधिकारियों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि सिपाही, नायक और हवलदार रैंक के फौजी भी इसके शिकार रहे हैं।
 
वन रैंक-वन पेंशन की मांग सेवानिवृत्त सैन्यकर्मी कई सालों से कर रहे हैं। 30 साल पहले रिटायर्ड फौजियों ने इसके लिए एक्स सर्विसमैैन एसोसिएशन बनाई थी। इस योजना का फायदा करीब 25 लाख सैनिकों को होगा। 
 
देश में 25 लाख से ज्यादा रिटायर्ड सैन्यकर्मी हैं। जो अफसर कम से कम 7 साल कर्नल की रैंक पर रहे हों, उन्हें समान रूप से पेंशन मिलेगी। ऐसे अफसरों की पेंशन 10 साल तक कर्नल रहे अफसरों से कम नहीं होगी, बल्कि उनके बराबर होगी। केंद्र सरकार सैनिकों की इस मांग को लगातार टाल रही थी। इससे तंग आकर 2008 में इंडियन एक्स सर्विसमैन मूवमेंट (आइएसएम) नामक संगठन बनाकर रिटायर्ड फौजियों ने संघर्ष तेज कर दिया था। 
 
2009 में फौजियों ने क्रमिक भूख हड़ताल करते हुए राष्ट्रपति को हजारों मैडल वापस किए थे। इतना ही नहीं, डेढ़ लाख पूर्व फौजियों ने अपने खून से हस्ताक्षर वाला ज्ञापन तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल को सौंपा था। पंजाब और हिमाचल की सरकारें प्रस्ताव पारित कर 'वन रैंक वन पेंशन' की मांग का समर्थन कर चुकी हैं। 
 
यूपीए सरकार ने की थी घोषणा : यूपीए सरकार ने फरवरी 2014 में वन रैंक-वन पेंशन योजना की घोषणा की थी। अंतरिम बजट में इसके लिए 500 करोड़ रुपए का प्रावधान भी किया था। इसके बाद अप्रैल-मई में लोकसभा चुनाव हुए और यूपीए सत्ता से बाहर हो गई। 
 
उधर, नरेन्द्र मोदी भी सितंबर 2013 में अपनी एक रैली में वादा कर चुके थे कि अगर उनकी पार्टी की सरकार बनी तो इस योजना पर तुरंत अमल होगा। एनडीए सरकार का जुलाई 2014 में पहला बजट आया। इसमें 1000 करोड़ रुपए इस योजना के लिए रखे गए थे। हालांकि समय-समय पर मोदी सरकार इस मामले में बयान देती आई है लेकिन इसके बावजूद सरकार के रवैए से पूर्व सैनिक संतुष्ट नहीं हैं।

रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर ने कहा कि सरकार ने पहली किश्त के रूप में 3866.80 करोड़ रुपए और दूसरी किश्त के रूप में 1640.59 करोड़ चुकाए हैं। मोदी सरकार अब तक कुल 5507.47 करोड़ रुपए चुका चुकी है। 
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