राजनीति कब दोस्त दुश्मन बन जाए और दुश्मन दोस्त, कुछ कहा नहीं जा सकता। गुजरात विधानसभा चुनाव में भी रिश्ते दांव पर लग गए हैं। जामनगर उत्तर सीट इसका सबसे बड़ा उदाहरण है, जहां ननद और भाभी आमने-सामने हैं। हम बात कर रहे रीवाबा जडेजा और नयनाबा जडेजा की। नयना रवीन्द्र जडेजा की बहन हैं, जबकि रीवा उनकी पत्नी हैं।
हालांकि नयनाबा चुनाव नहीं लड़ रही हैं, लेकिन कांग्रेस की तरफ से अपनी भाभी रीवा पर निशाना जरूर साध रही हैं। एक खास बात और यह है कि रीवा और नयना दोनों ही किसी समय अच्छी दोस्त रही हैं। बहन नयनाबा के जरिए ही रवीन्द्र की रीवाबा से जान-पहचान हुई थी। लेकिन, अब चुनाव ने रिश्ते और दोस्ती दोनों को ही दांव पर लगा दिया है।
दरअसल, बीजेपी ने जहां जामनगर उत्तर विधानसभा सीट से क्रिकेटर रवींद्र जडेजा की पत्नी रीवाबा जडेजा को टिकट दिया है, वहीं कांग्रेस की राज्य महिला मोर्चा की मंत्री और रवींद्र जडेजा की बहन नयनाबा कांग्रेस उम्मीदवार बिपेंद्र सिंह जडेजा के समर्थन में हैं। ननद नयना ने भाभी रीवाबा पर निशाना साधते हुए कहा कि कहा कि रीवाबा को 6 साल में अपना सरनेम बदलने की फुर्सत नहीं मिली, उन्होंने अपना शादी से पहले का उपनाम 'सोलंकी' ही रखा हुआ है। रवीन्द्र जडेजा का नाम उन्होंने (ब्रैकेट) में दिया है। वे रवीन्द्र के नाम से सिर्फ पब्लिसिटी पाना चाहती हैं।
रीवाबा पर आरोप लगाते हुए नयना ने कहा कि रीवा का मतदान केंद्र राजकोट में है। ऐसे में उन्हें राजकोट से नामांकन फॉर्म भरना था न कि जामनगर उत्तर सीट से। जामनगर के लिए वे आयातित उम्मीदवार हैं, अगर वह अपने लिए वोट नहीं कर सकती हैं तो यहां किस अधिकार से वोट मांग रही हैं।
चुनाव के बाद आप राजकोट में रहने वाले हैं, ज्यादातर समय आप विदेश में रहते हैं। आपको लोगों का हाल कैसे पता रीवाबा ने ईवीएम मशीन में अपना नाम रीवा हरदेवसिंह सोलंकी दिया है। क्या उन्हें छह साल में अपना सरनेम बदलने की फुर्सत नहीं मिली? या उन्होंने सिर्फ प्रचार के लिए रवींद्र का नाम इस्तेमाल किया है?
जामनगर उत्तर से नयना भी थीं दावेदार : जामनगर उत्तर सीट से नयनाबा भी कांग्रेस के टिकट की दावेदार थीं, लेकिन पार्टी ने वहां बिपेन्द्र सिंह जडेजा को मैदान में उतार दिया। अब कांग्रेस प्रत्याशी के पक्ष में प्रचार भी कर रही हैं और अपनी ही भाभी और भाजपा उम्मीदवार रीवाबा पर जमकर हमले भी कर रहे हैं।
...तो रवीन्द्र क्रिकेटर भी नहीं होते : नयनाबा ने करीब सालभर पहले एक साक्षात्कार में कहा था कि रवीन्द्र सिर्फ 17 साल का था और उनकी मां लताबा यानी हमारी मां की मौत एक एक्सीडेंट में हो गई थी। उस समय हमारे ऊपर आसमान ही टूट पड़ा था। तीनों भाई-बहनों में रवीन्द्र सबसे छोटे थे।
मैंने मां लताबा की जगह ले ली और उसे मां की तरह ही पाला। आर्मी अफसर की परीक्षा पास करने के बावजूद रवि को क्रिकेटर बना दिया। दरअसल, मां का सपना था कि रवि क्रिकेटर बने, जिसे साकार करने के लिए मैंने हरसंभव प्रयास किया और सफलता हासिल की।
Edited by: Vrijendra Singh Jhala