केन्द्र ने उच्चतम न्यायालय में कहा- रोहिंग्या शरणार्थी सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा

Webdunia
सोमवार, 18 सितम्बर 2017 (15:11 IST)
नई दिल्ली। केन्द्र ने सोमवार को उच्चतम न्यायालय में कहा कि रोहिंग्या मुस्लिम शरणार्थी देश में ‘गैर-कानूनी’ हैं और उनका लगातार यहां रहना ‘राष्ट्र की सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा’ है।
 
केन्द्र ने उच्चतम न्यायालय की रजिस्ट्री में आज इस मामले में एक हलफनामा दाखिल किया जिसमें कहा गया है कि सिर्फ देश के नागरिकों को ही देश के किसी भी हिस्से में रहने का मौलिक अधिकार है और गैर-कानूनी शरणार्थी इस अधिकार के लिए उच्चतम न्यायालय के अधिकार क्षेत्र का इस्तेमाल नहीं कर सकते।
 
इससे पहले, सवेरे प्रधान न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति एएम खानविलकर और न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड की तीन सदस्यीय खंडपीठ को केन्द्र की ओर से अतिरिक्त सालिसीटर जनरल तुषार मेहता ने सूचित किया था कि इस मामले में आज ही हलफनामा दाखिल किया जाएगा। पीठ ने मेहता के कथन पर विचार के बाद रोहिंग्या मुस्लिम शरणार्थियों को वापस भेजे जाने के खिलाफ दो रोहिंग्या मुस्लिम मोहम्मद सलीमुल्ला और मोहम्मद शाकिर की जनहित याचिका पर सुनवाई तीन अक्तूबर के लिए स्थगित कर दी।
 
गृह मंत्रालय द्वारा दायर हलफनामे में सरकार ने कहा, ‘संविधान के अनुच्छेद 19 में प्रदत्त सांविधानिक अधिकारों से स्पष्ट है कि भारत की सीमा के किसी भी हिस्से में रहने और बसने तथा देश में स्वतंत्र रूप से कहीं भी आने जाने का अधिकार सिर्फ भारत के नागरिकों को ही उपलब्ध है। कोई भी गैर-कानूनी शरणार्थी इस न्यायालय से ऐसा आदेश देने के लिए अनुरोध नहीं कर सकता है जो प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से सामान्य रूप में मौलिक अधिकार प्रदान करता है।’
 
केन्द्र ने कहा कि रोहिंग्या शरणार्थी गैर-कानूनी हैं और उनका यहां लगातार रहना देश की सुरक्षा के लिये गंभीर खतरा है। साथ ही केन्द्र ने कहा कि वह इस मामले में सुरक्षा खतरों और विभिन्न सुरक्षा एजेन्सियों द्वारा एकत्र जानकारी का विवरण सीलबंद लिफाफे में पेश कर सकता है।
 
न्यायालय में केन्द्र ने कहा कि चूंकि भारत ने 1951 की शरणार्थियों के दर्जे से संबंधित संधि और 1967 के शरणार्थियों के दर्ज से संबंधित प्रोटोकाल पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं, इसलिए याचिकाकर्ता इस मामले में इनका सहारा नहीं ले सकते हैं। केन्द्र के अनुसार इन्हें वापस भेजने पर प्रतिबंध संबंधी प्रावधान की जिम्मेदारी 1951 की संधि के तहत आती है। यह जिम्मेदारी सिर्फ उन्हीं देशों के लिये बाध्यकारी है जो इस संधि के पक्षकार हैं।
 
केन्द्र सरकार ने कहा है कि चूंकि भारत इस संधि का अथवा प्रोटोकाल में पक्षकार नहीं है, इसलिए इनके प्रावधान भारत पर लागू नहीं होते हैं। न्यायालय ने इस याचिका पर राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग को नोटिस जारी नहीं किया जिसके पास पहले से ही यह मामला है। आयोग ने केन्द्र को 18 अगस्त को नोटिस जारी किया था।
 
इस जनहित याचिका में दावा किया गया है कि वे संयुक्त राष्ट्र शरणार्थियों के उच्चायोग के तहत पंजीकृत शरणार्थी हैं और उनके समुदाय के प्रति बड़े पैमाने पर भेदभाव, हिंसा और खूनखराबे की वजह से म्यांमा से भागने के बाद उन्होंने भारत में शरण ली है।
 
याचिका में कहा गया है कि म्यांमार की सेना द्वारा बड़े पैमाने पर रोहिंग्या मुसलमानों पर कथित रूप से अत्याचार किए जाने की वजह से इस समुदाय के लोगों ने म्यांमा के पश्चिम राखिन प्रांत से पलायन कर भारत और बांग्लादेश में पनाह ली है। भारत आने वाले रोहिंग्या मुस्लिम जम्मू, हैदराबाद, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और दिल्ली- राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र तथा राजस्थान में रह रहे हैं। (भाषा)

सम्बंधित जानकारी

Show comments

जरूर पढ़ें

India-Pakistan Conflict : सिंधु जलसंधि रद्द होने पर प्यासे पाकिस्तान के लिए आगे आया चीन, क्या है Mohmand Dam परियोजना

Naxal Encounter: कौन था बेहद खौफनाक नक्‍सली बसवराजू जिस पर था डेढ़ करोड़ का इनाम?

ज्‍योति मल्‍होत्रा ने व्‍हाट्सऐप चैट में हसन अली से कही दिल की बात- कहा, पाकिस्‍तान में मेरी शादी करा दो प्‍लीज

भारत के 2 दुश्मन हुए एक, अब China ऐसे कर रहा है Pakistan की मदद

गुजरात में शेरों की संख्या बढ़ी, खुश हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी

सभी देखें

नवीनतम

Covid-19 के मामले आने के बाद दिल्ली सरकार ने जारी की एडवाइजरी

अग्निवीर साथी को बचाने में शहीद हुए अयोध्या के लेफ्टिनेंट शशांक

Israel-Hamas War : इसराइल ने गाजा पर फिर किए हमले, कम से कम 60 लोगों की मौत

जयशंकर ने पाकिस्तान को लेकर जर्मनी में कही बड़ी बात, बोले- झुकने का तो सवाल ही नहीं

लंदन जा रहे ब्रिटिश एयरवेज विमान की इमर्जेंसी लैंडिंग, तकनीकी खराबी के कारण बेंगलुरु लौटा

अगला लेख