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अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले की कानूनी खामियों और विरोधाभास पर क्यों उठ रहे हैं सवाल?

वरिष्ठ पत्रकार और लीगल एक्सपर्ट रामदत्त त्रिपाठी से बातचीत

हमें फॉलो करें अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले की कानूनी खामियों और विरोधाभास पर क्यों उठ रहे हैं सवाल?
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विकास सिंह

, सोमवार, 18 नवंबर 2019 (07:58 IST)
अयोध्या विवाद में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड  ने पुनर्विचार याचिका दायर करने का एलान कर दिया है। रविवार को लखनउ में हुई बोर्ड की  बैठक में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय पर असंतुष्टि जताते हुए मस्जिद के लिए जमीन नहीं लेने और मंदिर के पक्ष में दिए गए फैसले को चुनौती देने का निर्णय लिया गया। बैठक के बाद वरिष्ठ वकील और बोर्ड के सचिव जफरयाब जिलानी ने कहा कि बोर्ड सुप्रीम कोर्ट के निर्णय से संतुष्ट नहीं है इसलिए अब इस पर पुनर्विचार याचिका दायर करेगा।
 
अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर कई तरह के सवाल उठ रहे है। वेबदुनिया से सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लेकर अयोध्या मामले को बेहद नजदीक से देखने वाले बीबीसी के पूर्व वरिष्ठ पत्रकार और लीगल एक्सपर्ट रामदत्त त्रिपाठी से फैसले का कानूनी और व्यावहारिक पक्ष को आसान शब्दों में समझने की कोशिश की। 
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सुप्रीम कोर्ट के पूरे फैसले का बारीकी से अध्ययन करने वाले रामदत्त त्रिपाठी कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के नरेटिव और कन्क्लूजन में बहुत ही अंतर नजर आता है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले के नरेटिव में उसको मस्जिद माना है लेकिन ऑपरेटिंग में उसको हिंदुओं को दे दिया है जो अपने आप में ही बड़ा विरोधाभास है। वह कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट के पूरे फैसले को देखने में इसमें कई कानून खामियां नजर आती है और अब मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड इन कानूनी खमियों को आधार बनाकर पुनर्विचार याचिका दाखिल करने जा रहा है।
 
वेबदुनिया से सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लेकर बातचीत करते हुए रामदत्त त्रिपाठी कहते हैं कि जब सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में माना हैं कि मस्जिद बनाने के लिए किसी मंदिर नहीं तोड़ा गया और वहां मस्जिद तोड़ना और मूर्तियां रखना भी गलत था तो ऐसी सूरत में उनको जमीन नहीं देनी थी। रामदत्त त्रिपाठी कहते हैं कि उनके नजरिए सुप्रीम कोर्ट ने किसी तरह से पूरे विवाद का निपटारा हो जाए और पूरे विवाद को खत्म करने के लिए इस तरह का फैसला दिया है। वह इस फैसले को पंच परमेश्वर के उस फैसले की तरह मानते है जिसको लोग असंतुष्ट होकर भी मान लेते है। 
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वह कहते हैं कि बेहतर होता कि दोनों पक्ष आपस में इस विवाद को सुलझाने लेते तो यह आलोचना नहीं होती कि सुप्रीम कोर्ट ने लीगल ढंग से फैसला नहीं दिया है। रामदत्त त्रिपाठी कहते हैं कि न्याय केवल रुल ऑफ लॉ नहीं होता उससे बड़ी चीज होती है कि समाज के शांति और राज्यव्यवस्था को बनाए रखना भी होता था। वह कहते हैं फैसले से पहले जिस तरह इस पूरे विवाद को उलझाया गया था ऐसी स्थिति में वहां से मूर्ति हटाना संभव नहीं था। वह कहते हैं कि उनके नजरिए में फैसले में लीगल रुप से कई कमजोरी है लेकिन विवाद को हल करने के लिए कोई सूरत नहीं दिख रही है इसलिए कोर्ट ने इस तरह का फैसला किया।  
 
वह कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट में फैसले में जिस तरह खुदाई में मिले साक्ष्य को आधार बनाया गया है वह सवालों के घेरे में है। वह कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने जब अपने फैसले में खुद माना है कि वहां पर 1856-57 से 1949 तक मस्जिद थी तो फैसला कानूनी रुप से खुद सवालों के घेरे में आ जाता है। वह उदाहरण देते हुए कहते हैं कि इस तरह का एक फैसला लाहौर के शीर्षगंज गुरुद्धारे को लेकर हुआ था जहां एक मस्जिद थी और बाद में गुरुद्धारे में कन्वर्ट किया गया था। बाद में जब यह मामला प्रिवी काउंसलि को पहुंचा तो उसने गुरुद्धारे के हक में मोहर लगा दी। 
 
वह कहते हैं कि कानून इससे नहीं चलता था कि पहले क्या था, यह पूरा विवाद जमीन के मालिकाना हक से जुड़ा था और प्रॉपर्टी लॉ में कानूनी अधिकार की बात की जाती है। सामान्य लॉ के हिसाब से अगर कोई बिना किसी विवाद के 12 साल से अधिक समय से काबिज है तो उसका हो जाता है। 
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रामदत्त त्रिपाठी कहते हैं कि भगवान राम को उसी जगह जन्म हुआ है इसको लेकर भी कई सवाल है। वह कहते हैं कि ASI ने नहीं कहा कि वहां पर मंदिर था उसने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि उसके नीचे मंदिर के अवशेष है तो यह भी मंदिर के पक्ष में कोई मजबूत आधार नहीं है। वह कहते हैं कि भारत में सबसे अधिक तो बोद्धों के मंदिर को तोड़ा गया और कई एक शहर के उपर दूसरे शहर के बसाया गया ऐसे में अगर खुदाई मिले तथ्यों पर फैसला दिया जाएगा तो आने वाले समय में कई और विवाद खड़े हो जाएंगे। 
 
वह कहते हैं कि उनके नजरिए से इस फैसले को लेकर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के  जजों ने देश के भले के लिए फैसला किया लेकिन कानूनी तरीके से यह फैसला पूरी तरह ठीक नहीं है। वह महत्वपूर्ण बात करते हैं कि जिस तरह फैसले से पहले इस पूरे विवाद संसद से कानून बनाकर हल करने की बात कही जा रही थी उसने भी कही न कही फैसले को प्रभावित किया होगा और उन्हें अपने फैसले को संसद के द्धारा पलटे जाने की आशंका भी रही होगी।
 
लीगल एक्सपर्ट रामदत्त त्रिपाठी कहते हैं कि पुनर्विचार याचिका दाखिल करना एक अधिकार है और अब मुस्लिम पक्ष भी अपने इस अधिकार का इस्तेमाल कर याचिका लगाने जा रहा है। उसने साफ कहा हैं कि वह सुप्रीम कोर्ट न्याय मांगने के लिए गए न कि मस्जिद के लिए दूसरी जगह जमीन मांगने।

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