नई दिल्ली। विवादित कृषि कानूनों पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त समिति के एक अहम सदस्य अनिल घटवट ने शुक्रवार को कहा कि तीन केंद्रीय कृषि कानूनों को निरस्त करने के मोदी सरकार के फैसले को दुर्भाग्यपूर्ण करार दिया। उन्होंन कहा कि इस राजनीतिक कदम से किसानों का आंदोलन खत्म नहीं होगा। इससे भारतीय जनता पार्टी को उत्तर प्रदेश तथा पंजाब में आगामी विधानसभा चुनावों में मदद नहीं मिलेगी।
शेतकारी संगठन के अध्यक्ष अनिल जे घनवट ने कहा कि आंदोलनकारियों ने आगामी विधानसभा चुनावों तक प्रदर्शन की योजना बनाई थी। केंद्र तब नहीं झुका, जब आंदोलन चरम पर था और अब उसने अपने घुटने टेक दिए हैं।
उन्होंने कहा कि सरकार को कानूनों को निरस्त करने के बजाय इस मुद्दे से निपटने के लिए अन्य नीतियां अपनानी चाहिए थी। अगर सरकार ने संसद में विधेयक पारित करने के दौरान इन पर उचित तरीके से चर्चा की होती तो ये कानून बच सकते थे।
उल्लेखनीय है कि गुरु नानक जयंती पर शुक्रवार सुबह देश को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि तीन कृषि कानून किसानों के फायदे के लिए थे, लेकिन हम सर्वश्रेष्ठ प्रयासों के बावजूद किसानों के एक वर्ग को राजी नहीं कर पाए। उन्होंने तीनों कृषि कानूनों को निरस्त करने की घोषणा की।
सरकार के फैसले पर नाखुशी जताते हुए घनवट ने कहा कि इस फैसले से आंदोलन भी खत्म नहीं होगा क्योंकि न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) को कानून का रूप देने की उनकी मांग अभी बाकी है और इस फैसले से भाजपा को राजनीतिक रूप से भी फायदा नहीं होगा।
उन्होंने कहा कि यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण फैसला है। किसानों को थोड़ी आजादी दी गई लेकिन अब उनका शोषण किया जाएगा क्योंकि ब्रिटिश शासन या आजादी के बाद से ही उनका शोषण किया गया है। उन्होंने कहा कि नए कृषि कानूनों में किसानों को पहली बार विपणन में थोड़ी आजादी दी गई लेकिन अब उन्हें निर्यात प्रतिबंध और भंडार सीमाओं जैसी पाबंदियों का सामना करना होगा। (भाषा)