नई दिल्ली, तकनीक जीवन को सुगम बनाने के साथ-साथ आर्थिक तरक्की को भी आधार प्रदान करती है। यदि तकनीक में सामाजिक न्याय का लक्ष्य पूरा होता भी दिखे, तो इसे सोने पर सुहागा ही कहा जाएगा।
भोपाल स्थित राष्ट्रीय तकनीकी शिक्षक प्रशिक्षण एवं अनुसंधान संस्थान (एनआईटीटीटीआर) से कुछ ऐसी ही सौगात मिली है। इस संस्थान के शोधकर्ताओं ने एक स्वचालित रेलवे ट्रैक सफाई वाहन विकसित किया है, जो बिना हाथ लगाए रेलवे ट्रैक से कचरे एवं मल के निस्तारण में सक्षम है। इससे उन लोगों को इस काम से मुक्ति मिल सकेगी, जिन्हें रेलवे ट्रैक से मैन्यूअल रूप से कूड़ा-कचरा और मल साफ करना पड़ता है।
यह स्वचालित वाहन एनआईटीटीटीआर, भोपाल के मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ शरद के. प्रधान और उनकी टीम ने मिलकर विकसित किया है। डॉ शरद ने इंडिया साइंस वायर को बताया कि इस तकनीक को विकसित करने में उन्हें लगभग दो से ढाई वर्षों का समय लगा।
तकनीक के साथ वाहन का प्रारूप तैयार करने में लगभग 8-9 माह का समय लगा। यह वाहन रेल की पटरियों पर चलकर सफाई करने के साथ ही सड़क पर भी स्वतः काम कर सकता है। उन्होंने बताया, यह एक रोड-कम-रेल वाहन है, अर्थात रेलवे ट्रैक पर सफाई करने के साथ ही यह पटरियों के बगल बने प्लेटफार्म पर भी सफाई कर सकता है। इसके अलावा, रेलवे ट्रैक के पास माल ले जाने वाले रास्ते को भी यह कम समय में बेहतर ढंग से साफ कर सकता है।
डॉ शरद ने बताया कि स्वचालित होने के कारण इसे ट्रेनों के आगमन और प्रस्थान के समयानुसार सफाई के लिए उपयोग किया जा सकता है। इस प्रकार यह बिना किसी बाधा के अपना काम पूरा सकता है।
उन्होंने बताया, यह एक रोड-कम-रेल वाहन है, अर्थात रेलवे ट्रैक पर पटरी से प्लेटफार्म तक आने में यह वाहन लगभग पाँच मिनट का समय लेता है। रेल की पटरी से प्लेटफार्म पर आने पर यह एक सड़क पर चलने वाले रबड़ के टायर वाले वाहन में परिवर्तित हो जाता है। एक स्टेशन पर 500-700 मीटर के एक ट्रैक की सफाई यह वाहन लगभग 15 मिनट में पूरी कर सकता है।
भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के एडवांस मैन्युफैक्चरिंग टेक्नोलॉजी प्रोग्राम के सहयोग से डॉ प्रधान ने यह वाहन तैयार किया है। उनकी यह पहल न केवल मेक इन इंडिया के अनुकूल है, बल्कि स्वच्छ भारत अभियान जैसी महत्वाकांक्षी पहल को एक नया आयाम देने के साथ ही सामाजिक न्याय भी सुनिश्चित करेगी। इसके लिए एक राष्ट्रीय पेटेंट भी दे दिया गया है, जो इसकी सफलता एवं प्रामाणिकता की पुष्टि करता है। पायलट परीक्षण के बाद डॉ प्रधान के इसके बड़े पैमाने पर व्यावसायिक उत्पादन की संभावनाएं तलाश रहे हैं।
वैसे तो वर्ष 1993 से ही देश में हाथ से मानव मल उठाने और उसकी सफाई करने पर पाबंदी लगाई जा चुकी है, लेकिन यह सिद्धांत पूरी तरह व्यवहार में नहीं लाया जा सका है। अभी भी तमाम महिलाओं और पुरुषों को रेल की पटरियों को झाड़ू और धातु की पत्तियों की मदद से मल हटाते देखा जा सकता है। रेल पटरियों से कचरा हटाए जाने के बाद उच्च दबाव वाले जेट से पानी डालकर पटरियों से मल, गंदगी, तैलीय एवं अन्य पदार्थों को साफ किया जाता है।
यह स्वचालित वाहन वाहन सूखे और गीले सक्शन सिस्टम के साथ ही हवा एवं पानी की बौछार करने वाली नोजल नियंत्रण व्यवस्था से लैस है।
यह सड़क एवं रेल ट्रैक पर चलाने के लिहाज से बहुत सुगम है। इसमें एक डिसप्ले यूनिट भी है जो चुनौतीपूर्ण माहौल में भी सफाई व्यवस्था को प्रभावी रूप से नियंत्रित करती है। इसके द्वारा रेल पटरियों की सफाई के दौरान वाहन चालक के अलावा सिर्फ एक व्यक्ति की जरूरत होती है और उसे भी हाथ से सफाई करने की कोई आवश्यकता नहीं।
वाहन की सक्शन प्रणाली द्वारा एक बार सूखा और गीला कचरा खींचने के बाद नोजल से पानी की बौछार होती है और जेट से गिरने वाली पानी की तेज धार किसी भी प्रकार के मानव मल अथवा अन्य प्रकार के कचरे को बहाकर साफ कर देती है। डॉ शरद ने बताया कि वायु और जल के नोजल के साथ ही पटरियों पर कीटनाशकों के छिड़काव के लिए भी नोजल लगाए गए हैं। डॉ प्रधान के अनुसार, इस वाहन में सूखे कचरे के लिए 500 किलोग्राम और गीले कचरे के लिए 250 लीटर की क्षमता है।
इसके अलावा कीटनाशकों के नोजल के लिए 100 लीटर की क्षमता उपलब्ध है। इस वाहन का पायलट परीक्षण हबीबगंज रेलवे स्टेशन पर किया गया है। इसके अलावा सड़क पर 40-50 किलोमीटर प्रतिघंटे की गति से चलाकर परीक्षण किया गया है। परीक्षण के बाद उद्योगों के साथ मिलकर इस वाहन का बड़े पैमाने पर व्यावसायिक उत्पादन का काम शुरू हो सकता है। (इंडिया साइंस वायर)