मुंबई। टाटा समूह के पूर्व चेयरमैन साइरस पी. मिस्त्री ने मंगलवार को कहा कि वे उच्चतम न्यायालय के फैसले से निजी रूप से निराश जरूर हैं, लेकिन उनकी अंतरात्मा साफ है। मिस्त्री टाटा समूह के साथ उच्चतम न्यायालय में लंबे समय से चल रही कानूनी लड़ाई हार गए हैं।
मिस्त्री ने मंगलवार को बयान में कहा कि उनका अब भी मानना है कि उन्होंने समूह के लिए जो दिशा चुनी थी, वे दृढ़ विश्वास पर आधारित थी और उसके पीछे कोई बुरी मंशा नहीं थी। मिस्त्री 27 दिसंबर 2012 से 24 अक्टूबर 2016 तक नमक से लेकर सॉफ्टवेयर क्षेत्र में कार्यरत टाटा उद्योग समूह के चेयरमैन थे। उन्हें निदेशक मंडल ने कुछ आंतरिक खींचतान के बीच झटके से निकाल बाहर कर दिया था।
मिस्त्री ने कहा कि उनकी अंतरात्मा साफ है तथा मुझ में कई कमियां हो सकती हैं, लेकिन समूह के लिए मैंने जो दिशा चुनी थी, उसको लेकर मुझे कोई संदेह नहीं है। मैंने पूरी ईमानदारी से काम किया। हालांकि उन्होंने समूह में अपनी 18.37 प्रतिशत हिस्सेदारी निकालने को लेकर अपने अगले कदम का कोई उल्लेख नहीं किया।
मिस्त्री ने कहा कि समूह में अल्पांश शेयरधारक के रूप में मैं इस फैसले से निराश हूं। हालांकि इसके साथ ही उन्होंने कहा कि उन्हें टाटा समूह का चेयरमैन बनने का अवसर दिया गया जिसके लिए वे आभारी हैं। उन्होंने अपनी टीम के सदस्यों का आभार जताते हुए कहा कि उन्हें इस चर्चित संस्थान का चेयरमैन बनने का अवसर मिला, इसके लिए वे आभारी हैं।
मिस्त्री ने कहा कि उन्होंने पहले दिन से यह सुनिश्चित करने का प्रयास किया कि निर्णय प्रक्रिया और कामकाज का संचालन निदेशक मंडल स्तर से संचालित एक मजबूत व्यवस्था के अंतर्गत हो, क्योंकि ए निर्णय किसी भी एक व्यक्ति से बड़े होते हैं। मैंने यह सुनिश्चित करने का प्रयास किए कि विभिन्न निदेशक मंडलों के निदेशक अपने दायित्वों का निर्वहन बिना किसी भय और पक्षपात के करें। साथ ही यह भी सुनिश्चित करें कि रणनीति और कार्रवाई में शेयरधारकों की राय को शामिल किया जाए।
उच्चतम न्यायालय ने 26 मार्च को राष्ट्रीय कंपनी विधि अपीलीय न्यायाधिकरण (एनसीएलएटी) के मिस्त्री को टाटा समूह का चेयरमैन बहाल करने के फैसले को खारिज कर दिया था। इससे पहले शीर्ष अदालत ने 10 जनवरी, 2020 को टाटा समूह को अंतरिम राहत देते हुए एनसीएलएटी के 18 दिसंबर, 2019 के मिस्त्री को बहाल करने के फैसले पर रोक लगा दी थी। (भाषा)