कश्मीर में अलगाववादी हुर्रियत की आर्थिक मदद कर रहे हैं पुराने आतंकवादी

Webdunia
सोमवार, 22 मई 2017 (07:41 IST)
नई दिल्ली। कश्मीर में अलगाववादी हुर्रियत कॉन्फ्रेंस और उसके पाकिस्तान में बैठे आकाओं के बीच कथित फंडिंग लिंक और घाटी में हिंसा की घटनाओं की नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी (एनआईए) ने एक और जांच शुरू कर दी है। 
 
अलगाववादियों को फंडिंग के मामले में एनआईए ने लगातार दूसरे दिन अपनी पूछताछ जारी रखी। एनआईए ने रविवार को अलगाववादी नेता फारुक अहमद डार उर्फ बिट्टा कराटे, जावेद अहमद बाबा उर्फ गाजी से कश्मीर में हवाला के जरिए फंडिंग के मामले में उनकी संलिप्तता, पैसों के एकत्रीकरण और हवाला के जरिए पैसों के लेन-देन से जुड़े तमाम विषयों पर गहन पूछताछ की।
 
रविवार को एनआईए ने इस मामले में आरोपी सभी 13 लोगों के कश्मीर में हिंसा की घटनाओं में शामिल होने समेत कई पक्षों पर गहन पड़ताल की। एनआईए ने इन सभी लोगों द्वारा कश्मीर में हिंसा के हालातों के बीच सार्वजनिक संपत्तियों को नुकसान पहुंचाने, स्कूलों को जलाने और हिंसक प्रदर्शनों के लिए लोगों को भड़काने के आरोपों पर कड़ी पड़ताल की है।
 
हाल की घटनाओं से यह संकेत मिला है कि 1990 के दशक के खूंखार आतंकवादी अब एक नई भूमिका में परदे के पीछे से वापसी कर रहे हैं। इस बदलती तस्वीर की शुरुआत 2011 में ही हो गई थी, जब एनआईए ने अलगाववादी नेता सैयद अली शाह गिलानी के कानूनी सलाहकार गुलाम मोहम्मद बट को गिरफ्तार किया था। बट ने उस समय अपना संगठन तहरीक-ए-हुर्रियत शुरू किया था।
 
कश्मीर में हिंसा के लिए पाकिस्तान और जमात-उद-दावा जैसे आतंकी संगठनों की ओर से फंडिंग होने का पर्दाफाश होने के बाद एनआईए की टीम ने रविवार को दिल्ली में केस दर्ज किया था। इस केस के दर्ज होने के बाद एजेंसी की एक टीम रविवार को श्रीनगर पहुंची हैं।
 
इससे पहले 2010 में कश्मीर में विरोध प्रदर्शनों और पत्थरबाजी का दौर चला था जिससे घाटी में जीवन कई महीनों तक अस्त-व्यस्त रहा था। यह खुलासा हुआ था कि बट को 2009 से जनवरी 2011 के बीच पाकिस्तान में अपने सूत्रों से 2 करोड़ रुपए से अधिक की रकम हवाला के जरिए मिली थी। इस मामले में सुनवाई अभी चल रही है। 
 
1990 के दशक में हिज्बुल मुजाहिदीन और अन्य आतंकवादी संगठनों के साथ जुड़कर आतंकवाद फैलाने वाले बहुत से लोग अब कश्मीर में आतंकवादी गतिविधियों के लिए फंडिंग मुहैया कराने वाले नेटवर्क का हिस्सा बन गए हैं। इसका एक बड़ा उदाहरण मोहम्मद मकबूल पंडित है, जो 2 दशक पहले पाकिस्तान भाग गया था और अब वहीं रहता है। वह कथित तौर पर बट के जरिए गिलानी को रकम पहुंचाने वाले नेटवर्क को संभालता है। 
 
भारत में संदेश पहुंचाने के लिए मकबूल की बेटी के फोन का अक्सर इस्तेमाल किया जाता है जिसका विवाह बट के बेटे से हुआ है। इस मामले में चेतावनी का पहला संकेत 2007 में उस समय मिला था, जब श्रीनगर जा रही एक टाटा सूमो को उधमपुर में रोककर तलाशी लेने पर सीएनजी सिलेंडर में छिपाकर रखे गए 46 लाख रुपए बरामद हुए थे। 
 
पूछताछ में पता चला था कि वह रकम बट ने दी थी और उसे श्रीनगर में इसे खुद लेकर गिलानी को सौंपना था। बट के ठिकाने पर छापा मारा गया था, लेकिन यह मामला आगे नहीं बढ़ सका। 2011 में बट को श्रीनगर में बेमिना बायपास पर रकम लेते रंगेहाथ पकड़ा गया था। उसके साथ मोहम्मद सिदीक गिनाई नाम का व्यक्ति भी था, जो 1990 के दशक में पाकिस्तान भाग गया था। गिनाई ने बाद में बताया कि उसे पाकिस्तान में आईएसआई ने ट्रेनिंग दी थी। 
 
एनआईए की चार्जशीट में कहा गया है कि गिनाई और मकबूल ने मिलकर अलगाववादियों को रकम पहुंचाने का काम शुरू किया था। अब यह बात स्पष्ट हो रहा है कि 1990 के दशक के बहुत से आतंकवादी कश्मीर में आतंकवादी गतिविधियों के लिए फंडिंग मुहैया कराने के नेटवर्क से जुड़ गए हैं। (भाषा)
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