कोलकाता। आईआईटी खड़गपुर के शोधकर्ताओं ने इस बात का पता लगाया है कि भारत में करीब साढ़े छ: करोड़ साल पहले पृथ्वी की सतह से 1500 मीटर नीचे भी जीवन का अस्तित्व था।
वैज्ञानिकों ने पाया कि सूक्ष्मजीवों-जीवाणु और आर्किया-का दक्कन ट्रैप के नीचे इतनी गहराई में अस्तित्व था। दक्कन ट्रैप के दायरे में दक्षिणी और पश्चिमी भारत में दक्कन के पठार का बड़ा हिस्सा आता है। आर्किया आकार में जीवाणु की तरह का सूक्ष्म जीव है, लेकिन आण्विक संरचना में काफी अलग है।
दक्कन ट्रैप का निर्माण तकरीबन साढ़े छ: करोड़ साल पहले जबर्दस्त ज्वालामुखीय गतिविधियों के जरिए हुआ था। हमारे ग्रह के बड़े पैमाने पर विलुप्त होने के लिए उसे जिम्मेदार माना जाता है।
आईआईटी खड़गपुर ने सोमवार को एक बयान में कहा कि पोषण के लिए पानी और अन्य सामग्रियों के अभाव के बावजूद ठोस आग्नेय चट्टान के एक किलोमीटर से अधिक भीतर जीवाणु और आर्किया की मौजूदगी ने शोध दल को आश्चर्यचकित किया।
साल 2014 में आईआईटी खड़गपुर के जैव प्रौद्योगिकी विभाग के प्रोफेसर पिनाकी सार ने इन चट्टानों के भू-सूक्ष्मजैविक गुणों का अध्ययन करने के लिए यह शोध शुरू किया।
बयान के अनुसार आईआईटी खड़गपुर के शोधकर्ताओं ने बताया कि सूक्ष्मजीव भूकंपीय गतिविधियों के कारण चट्टानों में आई दरार से जल के प्रवाह के जरिए धरती के निचले हिस्से में गए होंगे।
सार ने कहा कि हम फिलहाल इस बात की पुष्टि नहीं कर सकते कि जीव अब भी जीवित हैं, यद्यपि हम प्रयोगशाला में इंडोलिथिक (चट्टानों के भीतर रहने वाले जीव) कोशिकाओं को विकसित करने में सक्षम हैं।
उन्होंने कहा कि ऐसा पहली बार हुआ है जब भारत और भारतीयों के नेतृत्व वाले दल ने पृथ्वी की सतह से इतनी गहराई में जीवन के अस्तित्व की संभावना को तलाशा है। दक्कन ज्वालामुखीय गतिविधियां तकरीबन साढ़े छ: करोड़ साल पहले शुरू हुई थीं और छ: करोड़ साल पहले तक जारी रही होंगी।