वेबदुनिया : हिन्दी के हक में बुलंद आवाज

वृजेन्द्रसिंह झाला
Webdunia Silver Jubilee Year: अप्रैल 1935 में इंदौर से हिन्दी के हक में आवाज बुलंद हुई थी। उस समय इंदौर में आयोजित अखिल भारतीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन में सभापति के रूप में महात्मा गांधी ने कहा था- साहित्यिक दृष्टि से बंगला भाषा का प्रथम स्थान है, बाद में मराठी आदि होने पर हिन्दी का चतुर्थ स्थान है, फिर भी अब यह सिद्ध हो चुका है कि राष्ट्रभाषा होने का अधिकार तो सिर्फ हिन्दी का ही है। इतना ही नहीं बापू ने कहा था कि सब भारतीय भाषाओं की लिपि देवनागरी करने की बात भी मुझे योग्य प्रतीत होती है।
 
इस आयोजन के करीब 63 साल बाद इंदौर में ही हिन्दी को लेकर एक बड़ी घटना घटित हुई। 23 सितंबर, 1999 को ‍अहिल्या नगरी से विश्व के पहले हिन्दी पोर्टल 'वेबदुनिया' की शुरुआत हुई। इस बार हिन्दी का झंडा बुलंद किया श्री विनय छजलानी ने। पत्रकारिता की शिक्षा तो श्री छजलानी को घूंटी में ही मिली थी, लेकिन उन्होंने भाषा और तकनीक के समन्वय से हिन्दी पोर्टल की शुरुआत की और इंटरनेट के माध्यम से हिन्दी को न सिर्फ भारत में बल्कि उसकी सीमाओं से परे विदेशों में भी पहुंचाया।  
 
इंदौर के साहित्य सम्मेलन में एक प्रस्ताव (आठवां प्रस्ताव) भी पारित हुआ था, जिसमें हिन्दी के लेखक और विद्वानों से अनुरोध किया गया कि वे दक्षिण भारत की विभिन्न भाषाओं का अध्ययन भी करें, जिससे राष्ट्रीय भाषागत एकता कायम हो। यह भी संयोग है कि हिन्दी पोर्टल के बाद वेबदुनिया की यात्रा में दक्षिण भारतीय भाषाओं के तमिल, तेलूगु, कन्नड़ और मलयालम पोर्टल भी जुड़े। श्री छजलानी के इस प्रयास ने भाषागत एकता को बनाने में अहम भूमिका निभाई।
 
भारत में इंटरनेट की शुरुआत 80 के दशक से ही हुई, लेकिन विधिवत रूप से 15 अगस्त 1995 में भारत संचार निगम लिमिटेड ने गेटवे सर्विस लांच कर इसकी शुरुआत की। तब सिर्फ अंग्रेजी की वेबसाइटें ही होती थीं और सारा काम अंग्रेजी में ही होता था। भारत में इंटरनेट की शुरुआत के महज 4 साल बाद 23 सितंबर, 1999 में हिन्दी का पहला पोर्टल वेबदुनिया डॉट कॉम लांच हुआ। तब किसी ने कल्पना भी नहीं की थी कि इंटरनेट पर हिन्दी में समाचार और आलेख पढ़े जा सकते हैं। वेबदुनिया की शुरुआत को हिन्दी भाषा के लिए नई क्रांति की शुरुआत माना गया।
 
23 ‍‍सितंबर, 2023 से वेबदुनिया अपने रजत जयंती वर्ष में भी प्रवेश कर रहा है। वेबदुनिया के जन्म की कहानी कम रोचक नहीं है। छोटे से एक कमरे से शुरू हुआ यह वेब पोर्टल अब वटवृक्ष का रूप धारण कर चुका है। वेबदुनिया की शुरुआत भले ही 1999 में हुई, लेकिन इसको लेकर काम की शुरुआत तो 1998 से ही हो गई थी। सबसे पहले बहुभाषी ई-मेल सेवा ई-पत्र पर काम हुआ था। 
 
वेबदुनिया की जिस समय शुरुआत हुई, उसके संघर्ष की पटकथा भी उसी समय तैयार हो गई थी। क्योंकि जिस देश में ज्यादातर भाषाई समाचार-पत्रों की स्थिति बहुत अच्छी न हो वहां वेब पोर्टल की शुरुआत निश्चित ही एक साहसिक काम था। दूसरे अर्थों में कहें तो यह दुस्साहस था। मगर समय के साथ परिस्थितियां भी बदलीं, वेबदुनिया की मेहनत रंग लाई और पाठकों का कारवां बढ़ता ही गया। और ये यात्रा 24 वर्षों से पूरे आत्मविश्वास के साथ जारी है। वर्तमान में वेबदुनिया के करोड़ों पाठक हैं। साथ ही यूट्‍यूब पर 20 लाख से ज्यादा सब्सक्राइबर्स हैं। 
 
शुरुआत के कुछ ही समय बाद वेबदुनिया विदेशों में बसे हिन्दीभाषी भारतीयों की खास पसंद बन गया है। अगर यह कहें कि किसी व्रत-त्योहार की जानकारी हासिल करने के लिए तो वेबदुनिया उनकी जरूरत बन गया है, तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। यदि वेब मीडिया की वर्तमान स्थिति को देखें तो कह सकते हैं कि वेबदुनिया के सीईओ श्री विनय छजलानी का यह काफी दूरदर्शिता भरा कदम था।
 
वेबदुनिया के बारे के ख्यात चित्रकार और साहित्यकार प्रभु जोशी (अब दिवंगत) ने कहा था- चूंकि वेबदुनिया पहला हिन्दी पोर्टल है, इसलिए उसकी ऐतिहासिक भूमिका है। उस समय यह कहा जा रहा था कि हिन्दी में कोई पोर्टल संभव नहीं है और इंटरनेट के आते ही हिन्दी इस देश से विदा हो जाएगी या उसको हाशिये पर कर दिया जाएगा, लेकिन आज लगता है कि एक कदम जो उठाया गया था वह कितना सार्वदेशीय हो गया है।
 
क्योंकि मैं खुद इसलिए जानता हूं कि जब भी वेबदुनिया पर मेरा कोई आर्टिकल, लेख या टिप्पणी जाती है तो मुझे न जाने कितने ही देशों से उस पर प्रतिक्रिया आती है, जो हिन्दी में रुचि रखते हैं। वेबदुनिया ने लगभग आंदोलन के स्तर पर यह यात्रा की। वेबदुनिया ने भाषा ही नहीं तकनीक को लेकर भी जो काम किया वह बहुत ही साहसपूर्ण है। मैं चाहता हूं कि वेबदुनिया से उन तमाम लोगों को जुड़ना चाहिए जो अपनी भाषा से प्रेम करते हैं। 
वेबदुनिया इसलिए भी खास है, क्योंकि जिस जमाने में अखबारों को तोप और तलवारों से ज्यादा ताकतवर और धारदार माना जाता था, ऐसे समय में लोगों को खबर पढ़ने के लिए उनके हाथ में कम्प्यूटर का माउस थमाना वाकई बड़ी बात थी। वेबदुनिया की यही खूबियां उसे औरों से अलग भी करती हैं और आज इस वेब पोर्टल की गिनती देश के शीर्ष हिन्दी पोर्टल्स में होती है।
 
वर्तमान में वेबदुनिया के हिन्दी के अलावा गुजराती, मराठी, अंग्रेजी, तमिल, तेलुगू, कन्नड़ और मलयालम भाषाओं में भी पोर्टल हैं। ये पोर्टल्स भारत में ही नहीं, विदेशों में बसे भारतीयों के बीच अत्यंत लोकप्रिय हैं।
 
वेबदुनिया ने अपनी यात्रा में कई उपलब्धियां दर्ज हैं, जो भविष्य के लिए 'मील का पत्थर' साबित हुईं। बहुभाषी ईमेल सेवा ई-पत्र,  पहली बहुभाषी ब्लॉगिंग साइट माय वेबदुनिया, गेम्स, क्लासीफाइड से लेकर इंटरनेट पर वेबदुनिया ने बहुत से प्रयोग किए। सदी का पहला और बड़ा धार्मिक आयोजन 'इलाहाबाद कुंभ' (अब प्रयागराज) भी इंटरनेट पर पहली बार हिन्दी में वेबदुनिया ने कवर किया था। आज के दौर में गूगल का सर्च इं‍जन भले ही काफी लोकप्रिय है, लेकिन पहला हिन्दी सर्च इंजन बनाने का श्रेय वेबदुनिया को ही जाता है। 
 
वेबदुनिया पर पाठक देश-विदेश के समाचार के अलावा खेल, फिल्म आदि पर केन्द्रित समाचार और आलेख पढ़ सकते हैं। धर्म और संस्कृति पर आधारित वेबदुनिया के लेख और जानकारी भारत के अलावा विदेशों में काफी लोकप्रिय हैं। राम शलाका, टैरो कार्ड्स, विवाह कुंडली मिलान, जन्मकुंडली आदि ऐसी कई और भी सुविधाएं हैं, जिनका वेबदुनिया के पाठक लंबे से लाभ उठा रहे हैं। वेबदुनिया की यात्रा अनवरत जारी है। रजत जयंती वर्ष में पाठकों को बहुत कुछ नया पढ़ने और देखने को भी मिलेगा। 
 
   
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