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भारतीय खगोलविदों को मिली तारों में विस्फोट की टोह

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, शुक्रवार, 9 अप्रैल 2021 (13:23 IST)
नई दिल्ली, निरंतर गतिशील अंतरिक्ष की दुनिया से नित नये संकेत वैज्ञानिकों को मिलते रहते हैं। खगोलविद भी इन संकेतों को समझकर उनकी थाह लेने में जुटे रहते हैं।

इसी सिलसिले में भारतीय खगोलविदों ने एक दुर्लभ सुपरनोवा विस्फोट का पता लगाया है। यह सबसे गर्म माने जाने वाले तारों में शामिल वुल्फ-रेएट तारों में से एक है। इन्हें डब्ल्यूआर तारे भी कहा जाता है।

ये दुर्लभ वुल्फ-रेएट तारे कई मामलों में अनूठे होते हैं। इनकी तेज चमक इन्हें विशिष्ट बनाती है। ये सूर्य से हजार गुना तक चमकीले होते हैं। इनकी यही चमक खगोलविदों को काफी समय तक उलझाए रखती है। इनका आकार भी अत्यंत भीमकाय होता है। ये अपनी बाहरी हाइड्रोजन की परत को उतारते रहते हैं जो उनकी विशालकाय कोर में हीलियम और अन्य तत्वों के संलयन से जुड़ी होती है।

ऐसे चमकीले सुपरनोवा विस्फोट से इन तारों से जुड़ी जानकारियां जुटाने में वैज्ञानिकों को मदद मिलेगी, जिससे उनकी कुछ जिज्ञासाएं शांत हो सकती हैं, जो आज भी उनके लिए पहेली बनी हुई हैं।

नैनीताल स्थित आर्यभट्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ ऑब्जरवेशनल साइंसेज (एरीज) के खगोलविदों की टीम ने इस सुपरनोवा विस्फोट का अवलोकन किया है। एरीज भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय अंतर्गत संचालित संस्थान है।

एरीज के खगोलविदों की टीम ने अपने अंतरराष्ट्रीय सहयोगियों के साथ मिलकर वर्ष 2015 में मिले एनएसजी 7331 आकाशगंगा में इसी प्रकार के खाली आवृत्त वाले सुपरनोवा एसएन 2015 डीजे की ऑप्टिकल मॉनिटरिंग की। उन्होंने उस तारे के द्रव्यमान की भी गणना की जो सुपरनोवा बनाने में ध्वंस हो गया। साथ ही उसके उत्क्षेपण यानी निकलने के समय के ज्यामितीय आधार का भी आकलन किया। अपने शोध में वैज्ञानिकों ने यह भी पता लगाया कि मूल तारा वास्तव में दो तारों से मिलकर बना था। इनमें से एक भीमकाय डब्ल्यूआर था और दूसरा ऐसा तारा जिसका द्रव्यमान सूर्य से भी काफी कम निकला। खगोलविदों का यह अध्ययन ‘द एस्ट्रोफिजिकल’ जर्नल में प्रकाशित हुआ है।

सुपरनोवा, ब्रह्रांड में उच्च ऊर्जा के साथ होने वाले ऐसे विस्फोट हैं, जो अथाह मात्रा में ऊर्जा उत्सर्जित करते हैं। इनसे संबंधित घटनाक्रम की दीर्घकालिक निगरानी से तारों के स्वरूप और विस्फोट की प्रकृति को समझने में सहायता मिलती है। इससे विशालकाय तारों की संख्या पता लगाने में भी मदद मिल सकती है। (इंडिया साइंस वायर)

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