सुदर्शन रेड्डी का गृहमंत्री अमित शाह को जवाब, फैसला मेरा नहीं सुप्रीम कोर्ट का था
विपक्ष के उपराष्ट्रपति उम्मीदवार ने कहा- भारत में लोकतंत्र का अभाव, संविधान चुनौतियों से घिरा हुआ
Sudarshan Reddys reply to Amit Shah: उपराष्ट्रपति पद के लिए विपक्ष के साझा उम्मीदवार बी. सुदर्शन रेड्डी ने शनिवार को कहा कि देश में लोकतंत्र का अभाव है और संविधान चुनौतियों से घिरा हुआ है। उन्होंने यह भी कहा कि अगर वह इस महत्वपूर्ण संवैधानिक पद पर चुने जाते हैं तो संविधान की रक्षा और संरक्षण के लिए संकल्पित रहेंगे। रेड्डी ने गृहमंत्री अमित शाह की टिप्पणी पर जवाब देते हुए कहा- नक्सलवाद से जुड़ा फैसला मेरा नहीं, सुप्रीम कोर्ट का था।
देश में लोकतंत्र मुश्किल में : रेड्डी ने एक विस्तृत साक्षात्कार में अपनी उम्मीदवारी, संविधान की प्रस्तावना में समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष शब्दों पर बहस और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह द्वारा उन पर नक्सलवाद का समर्थन करने का आरोप लगाए जाने सहित कई मुद्दों पर सवालों के जवाब दिए। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में संसद में व्यवधान भी आवश्यक है, लेकिन इसे लोकतांत्रिक प्रक्रिया का अभिन्न अंग नहीं बनने देना चाहिए।
उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश ने कहा कि पहले घाटे वाली अर्थव्यवस्था की बात होती थी, लेकिन अब डेफिसिट इन डेमोक्रेसी (लोकतंत्र का अभाव) है। रेड्डी ने कहा कि भारत एक संवैधानिक लोकतंत्र बना हुआ है, फिर भी यह मुश्किल में है। उन्होंने इस विषय पर चर्चा का स्वागत किया कि क्या वर्तमान समय में संविधान पर हमला हो रहा है।
रेड्डी ने कहा कि लोकतंत्र का मतलब व्यक्तियों के बीच टकराव से कम और विचारों के बीच टकराव से ज़्यादा है तथा सरकार और विपक्ष के बीच संबंध बेहतर होने चाहिए। गुवाहाटी उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश रेड्डी ने कहा कि संविधान को अक्षुण्ण रखने की उनकी यात्रा जारी है, और अंततः अवसर मिलने पर यह संविधान की रक्षा और बचाव में परिणत होगी।
उन्होंने कहा कि मैं इस यात्रा को भी ऐसा ही मानता हूं, और अंततः अवसर मिलने पर यह संविधान की रक्षा एवं संरक्षण में परिणत होगी... अब तक, मैं संविधान की रक्षा कर रहा था और यही एक न्यायाधीश को दिलाई जाने वाली शपथ है... इसलिए यह यात्रा मेरे लिए कोई नई बात नहीं है। रेड्डी ने कहा कि विपक्ष द्वारा उन्हें सर्वसम्मति से उम्मीदवार बनाया जाना उनके लिए सम्मान की बात है।
राजनीति बंटी हुई है : उन्होंने कहा कि पहला, यह विविधता का प्रतिनिधित्व करता है। दूसरा, सर्वसम्मति से चुना जाना। तीसरा, मतदान क्षमता के संदर्भ में यदि आप विश्लेषण करें, तो वे (विपक्ष) 63-64 प्रतिशत से अधिक आबादी का प्रतिनिधित्व करते हैं। इससे बड़ा सम्मान और क्या हो सकता है? इस तर्क पर कि शीर्ष संवैधानिक पदों को सर्वसम्मति से भरा जाना चाहिए, उन्होंने कहा कि काश, सर्वसम्मति होती। लेकिन आप जानते हैं कि वर्तमान राजनीति बंटी हुई है। इन परिस्थितियों में शायद यह अपरिहार्य है, जिसके कारण यह मुकाबला हो रहा है।
रेड्डी ने कहा कि पहले हम घाटे वाली अर्थव्यवस्था की बात करते थे, (अब) डेफिसिट इन डेमोक्रेसी (लोकतंत्र की कमी) है। मैं यह नहीं कहता कि भारत अब एक लोकतांत्रिक देश नहीं रहा। मैं इससे सहमत नहीं हूं। हम अभी भी एक संवैधानिक लोकतंत्र हैं, लेकिन चुनौतीपूर्ण स्थिति में हैं। उन्होंने कहा कि पहले सत्ता पक्ष और विपक्ष कई राष्ट्रीय मुद्दों पर समन्वय स्थापित करते थे, लेकिन दुर्भाग्य से अब ऐसा नहीं दिखता।
रेड्डी ने कहा कि उपराष्ट्रपति चुनाव उनके और राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के सांसद सीपी राधाकृष्णन के बीच का मुकाबला नहीं है, बल्कि दो अलग-अलग विचारधाराओं का प्रतिनिधित्व करने वालों का मुकाबला है। उन्होंने कहा कि यहां एक व्यक्ति हैं, एक विशिष्ट आरएसएस कार्यकर्ता हैं...जहां तक मेरा सवाल है, मैं उस विचारधारा का समर्थन नहीं करता और मैं उससे बहुत, बहुत, बहुत, बहुत दूर हूं। मैं मूलतः एक उदार संवैधानिक लोकतांत्रिक हूं। यही वह क्षेत्र है, या यूं कहें कि प्रतियोगिता का अखाड़ा है, जहां लड़ाई जारी रहती है।
रेड्डी ने पूर्व भाजपा नेता अरुण जेटली का भी हवाला दिया, जिन्होंने कहा था कि व्यवधान भी एक वैध राजनीतिक गतिविधि और संसदीय प्रथा है। उपराष्ट्रपति पद के लिए विपक्ष के उम्मीदवार ने कहा कि व्यवधान और कुछ नहीं, बल्कि असहमति का एक रूप है। अगर आपको बोलने या अपने विचार व्यक्त करने की अनुमति नहीं है, तो यह बोलने का एक रूप है। मैं व्यवधान को इसी तरह देखता हूं। मैं यह नहीं चाहता कि व्यवधान लोकतांत्रिक प्रक्रिया का एक अनिवार्य और अभिन्न अंग बन जाए।
शाह पहले 40 पेज का फैसला पढ़ें : सलवा जुडूम के फैसले को लेकर अमित शाह द्वारा उन पर किए गए हमले पर रेड्डी ने कहा कि मैं भारत के माननीय गृहमंत्री के साथ सीधे तौर पर इस मुद्दे पर नहीं उलझना चाहता। उनका संवैधानिक कर्तव्य और दायित्व वैचारिक मतभेदों के बावजूद, प्रत्येक नागरिक के जीवन, स्वतंत्रता और संपत्ति की रक्षा करना है। दूसरी बात, मैंने फैसला लिखा। यह फैसला मेरा नहीं था, यह फैसला उच्चतम न्यायालय का था। रेड्डी ने कहा कि उनकी इच्छा है कि शाह 40 पृष्ठों का फैसला पढ़ें।
उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि अगर उन्होंने फैसला पढ़ा होता, तो शायद वह यह टिप्पणी नहीं करते। मैं बस इतना ही कहना चाहता हूं... बहस में शालीनता होनी चाहिए। रेड्डी ने जातिगत सर्वेक्षण का भी समर्थन करते हुए कहा कि पहले यह पता लगाना होगा कि कितने प्रतिशत लोगों को मदद की जरूरत है। संविधान की प्रस्तावना में समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष शब्दों को शामिल करने पर उठे विवाद पर उन्होंने कहा कि उनके अनुसार इन शब्दों ने उन बातों को स्पष्ट कर दिया है, जो संविधान के प्रावधानों में अंतर्निहित हैं।
उन्होंने कहा कि दोनों शब्द संविधान में निहित विचार, स्वागत योग्य हैं। यह सच है कि संशोधन, यानी 42वां संशोधन, तब आया जब आपातकाल लागू किया गया था। लेकिन, यह याद रखना चाहिए कि बाद में सरकार बनाने वाले जनसंघ ने सर्वसम्मति से इसे मंजूरी दी थी। इसलिए, यह समझ पाना मुश्किल है कि यह बहस किस इरादे से शुरू की जा रही है। गांधी, नेहरू और आंबेडकर पर अलग-अलग विमर्श के बारे में रेड्डी ने कहा कि अगर आप तीनों को सतही तौर पर पढ़ेंगे, तो कुछ गलतफहमियां और भ्रांतियां मन में आएंगी।
उन्होंने कहा कि असल में, वे तीनों महान डेमोक्रेट और रिपब्लिकन थे तथा संविधान की नैतिकता एवं आचार-विचार में विश्वास करते थे। मुझे नहीं लगता कि उन्हें तीन हिस्सों में बांटना राष्ट्रहित में होगा। एक का समर्थन करना और दूसरे का विरोध करना तथा झूठी कहानी गढ़ना राष्ट्रहित में नहीं है। (भाषा)
Edited by: Vrijendra Singh Jhala