नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने दिल्ली-राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में दमघोंटू प्रदूषण के लिए प्राधिकारियों को सोमवार को आड़े हाथ लिया और कहा कि प्रदूषण की अति भयावह स्थिति की वजह से लोगों को मरने के लिए नहीं छोड़ा जा सकता। साथ ही न्यायालय ने पड़ोसी राज्यों पंजाब, हरियाणा और पश्चिम उत्तर प्रदेश को तत्काल पराली जलाने पर रोक लगाने का निर्देश दिया।
न्यायालय ने दिल्ली-राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में अगले आदेश तक के लिए हर तरह के निर्माण और उसे गिराने की गतिविधियों और कचरा जलाने पर भी रोक लगा दी।
न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की पीठ ने दिल्ली-राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में खतरनाक स्तर पर पहुंचे प्रदूषण पर अंकुश के लिए कई निर्देश दिए और लोगों को यहां नहीं आने और यहां से बाहर जाने की सलाह दिए जाने की खबरों के संदर्भ में कहा कि नागरिकों को राष्ट्रीय राजधानी से बाहर नहीं निकाला जा सकता है।
पंजाब, हरियाणा और पश्चिम उप्र में पराली जलाने की घटनाओं पर नाराजगी व्यक्त करते हुए न्यायालय ने इन राज्यों के मुख्य सचिवों को 6 नवंबर को तलब किया है। शीर्ष अदालत ने कहा कि अब समय आ गया है कि इस स्थिति के लिए जवाबदेही निर्धारित की जाए क्योंकि यह नागरिकों के जीने के अधिकार का हनन कर रही है।
शीर्ष अदालत ने इस क्षेत्र में जहरीली हो गई वायु गुणवत्ता की वजह से भविष्य में वर्तमान स्थिति जैसे हालात की पुनरावृत्ति रोकने के लिए केन्द्र और संबंधित राज्यों को तीन सप्ताह के भीतर एक योजना की रूपरेखा तैयार करने का निर्देश दिया।
पीठ ने इन तीन राज्यों के मुख्य सचिवों और जिला कलेक्टरों तथा पुलिस महकमे को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि उनके यहां अब पराली जलाने की एक भी घटना नहीं हो।
इस मामले में न्याय मित्र की भूमिका निभा रही वरिष्ठ अधिवक्ता अपराजिता सिंह ने कहा कि केन्द्र के हलफनामे के अनुसार दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण में पराली जलाने का योगदान करीब 46 प्रतिशत है।
शीर्ष अदालत ने कहा कि दिल्ली-एनसीआर में निर्माण या निर्माण गिराने की गतिविधि होने पर 1 लाख रुपए और कचरा जलाने के अपराध में संलिप्त होने पर 5 हजार रुपए का जुर्माना लगाया जाएगा।
पीठ ने कहा कि हतप्रभ करने वाला है कि खतरनाक प्रदूषण की वजह से हर साल दिल्ली-एनसीआर का दम घुटता है और ‘हम कुछ नहीं कर पा रहे हैं।’ सभ्य देश में ऐसा नहीं हो सकता। यदि लोग दूसरों के अधिकारों का सम्मान नहीं करेंगे तो फिर उनके भी अधिकार नहीं होंगे। जीवन का अधिकार सबसे महत्वपूर्ण अधिकार है।’
पीठ ने प्रदूषण की मौजूदा स्थिति पर टिप्पणी करते हुए कहा, ‘दिल्ली में रहने के लिए कोई भी कमरा सुरक्षित नहीं है। यहां तक कि लोग अपने घरों में भी सुरक्षित नहीं है। यह भयावह है।’
न्यायालय ने पंजाब, हरियाणा और पश्चिम उत्तर प्रदेश के प्राधिकारियों को जल रही पराली को बुझाने के लिए आवश्यक कदम उठाने का निर्देश दिया और कहा कि उसे पराली जलाने वाले किसानों के प्रति कोई हमदर्दी नहीं है क्योंकि वे दूसरों की जिंदगी खतरे में डाल रहे हैं।
इन इलाकों में साल दर साल बेरोकटोक पराली जलाने की घटनाओं के लिए प्रशासन को आड़े हाथ लेते हुए कहा कि हर साल ऐसा क्यों होना चाहिए। निश्चित ही राज्य सरकारों ने इस पर अंकुश लगाने के लिए कुछ नहीं किया है।
पीठ ने कहा, ‘आप लोगों से मरने के लिए कह रहे हैं। आपके राज्य (पंजाब और हरियाणा) बुरी तरह से प्रभावित हैं। क्या पंजाब और हरियाणा में यही प्रशासन रह गया है। हर साल यह हो रहा है। हम अब राज्यों और पंचायतों की जिम्मेदारी निर्धारित करेंगे।'
पीठ ने कहा, ‘लोगों को दिल्ली नहीं आने की सलाह दी जा रही है। इसके लिए कौन जिम्मेदार है। राज्य सरकारें जिम्मेदार हैं। उनकी दिलचस्पी सिर्फ चुनावी हथकंडे में ही है। वे कोई जिम्मेदारी नहीं लेते हैं। हम इसे बर्दाश्त नहीं करेंगे।’
न्याय मित्र अपराजिता सिंह ने कहा कि केन्द्र के हलफनामे के अनुसार पंजाब में पराली जलाने के मामले में सात फीसदी का इजाफा हुआ है जबकि हरियाणा में इसमें 17 प्रतिशत कमी हुई है। हालांकि, उप्र का आंकड़ा उपलब्ध नहीं है।
न्यायालय ने तीनों राज्यों की सरकारों से पूछा कि पराली जलाने पर अंकुश लगाने में पूरी तरह विफल रहने की वजह से हुए नुकसान के लिए क्यों नहीं उन्हें क्षतिपूर्ति करने का आदेश दिया जाए।
पीठ ने राजधानी में सोमवार से शुरू की गई दिल्ली सरकार की जोरशोर से प्रचारित सम-विषम योजना पर भी सवाल उठाए और उसे निर्देश दिया कि इससे पहले लागू की गई इस योजना के दौरान प्रदूषण के स्तर से संबंधित आंकड़े पेश किए जाएं।
दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में सड़कों पर धूल होने के कारण प्रदूषण के बारे में पीठ ने अधिक धूल वाली सड़कों पर पानी का छिड़काव करने और अधिक यातायात की वजह से होने वालू प्रदूषण से निबटने की योजना तैयार करने का निर्देश दिया।
पीठ ने कहा कि इन निर्देशों का टीवी, मीडिया और रेडियो के साथ ही ग्राम पंचायत स्तर पर व्यापक प्रचार किया जाए ताकि लोगों को इसके बारे में जागरूक किया जा सके।
न्यायालय ने प्राधिकारियों को यह सुनिश्चित करने का भी निर्देश दिया कि दिल्ली-एनसीआर में बिजली आपूर्ति में कटौती नहीं हो ताकि आपात सेवाओं के अलावा किसी भी वजह से जेनरेटरों का इस्तेमाल नहीं हो।