सिनौली की धरती में छिपे हैं महाभारतकालीन सभ्यता के प्रमाण!

हिमा अग्रवाल
शनिवार, 10 अप्रैल 2021 (08:50 IST)
उत्तर प्रदेश के बागपत जिले का सिनौली गांव पिछले काफी समय से सुर्खियों में है। वजह है वहां हुई खुदाई में पुरातत्व विभाग को कुछ महत्वपूर्ण भग्नावशेषों का मिलना, जो महाभारतकालीन सभ्यता के रहस्यों को परत-दर-परत सामने ला सकते हैं।
 
अब तक इस खुदाई के तीन चरण पूरे हुए हैं, लेकिन कोरोना महामारी के चलते दुर्भाग्य से प्रस्तावित खुदाई का चौथा चरण शुरू नहीं हो सका है। पुरातत्वविदों को जहां चौथा चरण शुरू होने का बेसब्री से इंतजार है, वहीं स्थानीय लोगों के लिए यह कौतुहल का विषय है। अभी तक जो साक्ष्य यहां हुई खुदाई में मिले हैं उनकी गहनता से जांच चल रही है। पुरातत्व विभाग के शोधार्थी यहां से प्राप्त पुरातात्विक अवशेषों को लेकर खासे उत्साहित हैं, लेकिन फाइनल परिणाम आने में वक़्त लग सकता है। 
 
बागपत जिले में सिनौली गांव से भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग को मिले पुरावशेष और प्रमाण बेहद चौंकाने वाले हैं। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण टीम का अनुमान है कि साइट से प्राप्त दुलर्भतम पुरावशेषों में कुछ ऐसी कुछ चीजें सामने आई हैं जिससे ये अनुमान लगाया जा रहा है कि सिनौली में जानवरों को सेक्रिफायसिस किया जाता था यानी उनकी बलि दी जाती थी।
धनुर्धारी अर्जुन का धनुष! : इतना ही नहीं सिनौली साइट से एक धनुष आकृति भी मिली है, जिससे अर्जुन के धनुर्धर होने की बात को बल मिलता है। हालांकि इस पर एएसआई द्वारा अभी शोध चल रहा है। मार्च 2019 में सिनौली उत्खनन के दौरान साइट से प्राप्त दो शाही ताबूत, तलवार, दीवार, धनुष भी मिले हैं, इन दुर्लभ पुरावशेषों को लेकर बागपत जिले के लोगों में काफी उत्साह देखा गया। 
 
उत्खनन से मिले दुर्लभ प्रमाण को लेकर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की डीजी डॉ. उषा शर्मा ने कहा कि अभी यहां से प्राप्त पुरावशेष पर गहन अध्ययन किया जा रहा, यह साइट बहुत दुर्लभ है। पुरावशेषों की जांच नोएडा में की जा रही है।
 
यहां दी जाती थी जानवरों की बलि : उन्होंने कहा कि जानवरों के कंकाल, जबड़े मिलने से यह अनुमान लगाया जा रहा है कि यहां जानवरों की बलि दी जाती थी। सिनौली साइट पर एक ट्रेंच से खुदाई के दौरान एक राजकुमारी का कंकाल प्राप्त हो चुका है। वही एक अन्य ट्रेंच से खुदाई के दौरान जो कंकाल शुरुआती रूप में सामने आया था, वह किसी व्यक्ति का प्रतीत नहीं हो रहा था क्योंकि यह शरीर के ऊपरी हिस्से यानी मुंह का था और इसकी बनावट मानवीय नहीं बल्कि किसी जानवर की थी।
 
वैसे खुदाई में पहले भी एक कुत्ते का कंकाल भी प्राप्त हो चुका था, लेकिन अब मिला जानवर का यह कंकाल (मुंह) बड़ा है। संभवतः यह घोड़े का कंकाल है।  सिनौली उत्खनन से 4500 से 5000 वर्ष प्राचीन सभ्यता के दुर्लभ पुरावशेष प्राप्त हो चुके हैं। सिनौली में उत्खनन के समय किसान श्रीराम के खेत से अब दीवार के साथ एक भट्ठी निकली है, जो लगभग दो फुट चौड़ी और काफी गहरी है।
इस भट्ठी का पता तब चला था जब खुदाई के दौरान बारिश हो गई। साइट पर पानी भर गया, पानी बाहर निकालने के लिए नाली खोदी जा रही थी, तभी यह भट्ठी सामने आई थी। हालांकि वर्ष 2005 में भी इसी तरह की एक भट्‍ठी प्राप्त हो चुकी है। जमीन के अंदर भट्ठी का मिलना यहां मानव बस्ती होने की पुष्टि करता है। माना जा रहा है कि इसका प्रयोग शवाधान केंद्र पर ही दाह संस्कार के रूप में किया जाता था। 
 
पुरातत्व विभाग की लाल किला शाखा के निदेशक डॉ संजय मंजुल व डॉ अर्विन मंजुल के नेतृत्व में यहां 15 जनवरी 2020 को खुदाई के लिए पूजा-अर्चना कर विधिवत रूप से सिनोली में तीसरे चरण के उत्खनन कार्य का श्रीगणेश कर दिया गया था।
 
शाही ताबूत और तांबे की तलवारें : साइट से सन 2005 और 2018-2019 में खुदाई के दौरान मानव कंकाल, रथ, शाही ताबूत, ताम्र तलवारें, मृदभांड, मनके, दुर्लभ पॉट और अन्य वस्तुएं मिली थीं, जिन्हें साइट से उठाकर पुरात्तव विभाग की टीम ने दिल्ली भिजवा दिया था। जिन पर अब विस्तृत रूप से लाल किला संस्थान में रिसर्च चल रही है।

तीसरे चरण के उत्खनन से राजकुमारी के कंकाल के पास में ही अब अर्जुन के शौर्य का प्रतीक कहे जाने वाले धुनष का यहां से मिलना इतिहास की महत्वपूर्ण कड़ियां जोड़ने में काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है। तीसरे चरण उत्खनन में एक ट्रेंच से ताबूत में एक राजकुमारी का कंकाल, ताबूत के पास में ताम्र निर्मित लघु तलवार, दुर्लभ मिट्टी व तांबे के बर्तन यहां मिलना शोधकर्ताओं के लिए काफी उत्साहवर्धक है।
 
ताबूत व इसके आसपास बारीकी से किए जा रहे कार्य में मिले अर्जुन के शौर्य का प्रतीक ‘धनुष’ काष्ठ यानी लकडी से बना है। यह धनुष वैसे तो सैकड़ों वर्षों से जमीन में दफन होने के कारण मिट्टी बन चुका था, लेकिन मिट्टी में इस धनुष की आकृति उसी प्रकार मौजूद मिली है। इस धनुष को सुरक्षित करने में एएसआई की तकनीक विशेषज्ञों की टीम का सहारा लिया गया था, क्योंकि इस अमूल्य धरोहर संरक्षित करना टीम की जिम्मेदारी थी। इस धनुषनुमा आकृति पर भी एएसआई द्वारा रिसर्च चल रही है। 
 
उत्खनन में सिनौली से आठ मानव कंकाल एवं उन्हीं के साथ दैनिक उपयोग की खाद्य सामग्री से भरे मृदभांड, उनके अस्त्र-शस्त्र, औजार एवं बहुमूल्य मनकों के साथ-साथ अभी तक की सबसे बड़ी उपलब्धि के रूप में महाभारतकालीन युद्ध रथ, योद्धाओं के शाही ताबूत, ताम्र निर्मित तलवारें, ढाल, योद्धा का कवच, बाणाग्र (तीर के आगे का हिस्सा), हेलमेट (शिराश्र या शिरस्त्राण) भी यहां से प्राप्त हुए थे।

तब मिले थे 117 कंकाल : इससे पहले सिनौली में डॉ. डीवी शर्मा के निर्देशन में 2005-06 में हुए उत्खनन के दौरान 117 मानव कंकाल, दो तांबें की तलवारें, एक तांबे की म्यान, चार सोने के कंगन, एक सोने से बना मनके का हार, एक सोने की लघु मानवाकृति, सैकड़ों मनके समेत अन्य पुरावशेष प्राप्त हुए थे। इसके अलावा एक 15-16 साल की लड़की का कंकाल बरामद हुआ था।

इस कंकाल के हाथ-पैर में स्वर्णाभूषण (कड़े), गले में एक हसली की तरह का स्वर्ण हार जो कि तांबे के मोटे तार पर लिपटा हुआ मिला था। इतिहासकारों को अभी चौथे चरण का इंतजार है। उम्मीद है कि जैसे-जैसे खुदाई के चरण आगे बढ़ेंगे वैसे-वैसे महाभारतकालीन सभ्यता की परतें खुलकर सामने आएंगी।
 

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