सेना की फायरिंग रेंज 'तोशा मैदान' में बना पर्यटन स्थल खतरों से खाली नहीं

सुरेश एस डुग्गर
जम्मू। जिस 'तोशा मैदान' फायरिंग रेंज को सेना से मुक्त करवाने की मुहिम कश्मीरियों ने कई महीनों तक छेड़े रखी और अंततः राज्य सरकार को उन्होंने मजबूर कर दिया कि वह इस फायरिंग रेंज की लीज को आगे न बढ़ाए, वह अब पर्यटन स्थल में बदल चुका है। पर इस मैदान में पर्यटन किसी खतरे से खाली नहीं है। 
कारण स्पष्ट है। सेना ने वर्ष 2014 को इसे छोड़ देने के बाद कई किमी के क्षेत्रफल में फैले इस मैदान को गोला-बारूद से मुक्त करने की कार्रवाई तो की, पर अभी तक उसकी ओर से नागरिक प्रशासन को इसके प्रति क्लीरेंस सर्टिफिकेट ही जारी नहीं किया गया है। नतीजतन इस मैदान में पर्यटन के इरादों से आने वालों के पांव तले मौत उन तोपों के गोलों के रूप में जरूर छुपी हो सकती है, जो सेना ने पिछले 60 सालों के दौरान इस फायरिंग रेंज में लगातार चलाए थे।
 
इसके प्रति चिंता रविवार को मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने भी उस समय प्रकट की थी जब उन्होंने इस मैदान में आयोजित किए गए तीन दिवसीय तोशा मैदान फेस्टिवल का उद्घाटन किया था। चौंकाने वाली बात यह थी कि कोई भी प्रशासनिक या पुलिस अधिकारी उनके इस सवाल का जवाब नहीं दे पाया था कि आखिर सेना ने क्लीरेंस सर्टिफिकेट क्यों नहीं दिया है और डेढ़ साल बीत जाने के उपरांत भी यह लिया क्यों नहीं गया है? 
 
बडगाम जिले में तोशा मैदान जिसे अतीत में सेना द्वारा फायरिंग रेंज के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा था, को कल अधिकारिक रूप से नए पर्यटन गंतव्य के रूप में घोषित कर दिया गया। मुख्यमंत्री ने 3 दिवसीय ‘तोशा मैदान फेस्टिवल’ के उद्घाटन के साथ पर्यटन गतिविधियों के लिए इस मैदान को बहाल करने की घोषणा की। 
 
क्षेत्र को पर्यटन गंतव्य के रूप में प्रोत्साहन देने के लिए 3 दिवसीय ‘तोशा मैदान फेस्टिवल’ में घुड़सवारी, ट्रैकिंग तथा पर्वतारोहण जैसे खेलों का आयोजन किया गया। इस अवसर पर समारोह को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि पर्यावरण को बिना नुकसान पहुंचाए तोशा मैदान को राज्य के पर्यटन नक्शे पर लाया जाएगा। मुख्यमंत्री ने घोषणा करते हुए कहा कि सरकार तोशा मैदान के नए पर्यटन विकास प्राधिकरण की स्थापना करेगी तथा इसे गुलमर्ग, युसमर्ग तथा दूधपत्थरी पर्यटन विकास प्राधिकरण के साथ एडवैंचर टूरिज्‍म सर्किट के रूप में जोड़ा जाएगा। 
 
2014 के आरंभ में इसे उस समय सेना से वापस लेने की कवायद आरंभ हुई थी जब कश्मीरी जनता ने इसके प्रति विरोध जताना आरंभ किया था। हालांकि सेना ने इसे तब तक खाली करने से इंकार कर दिया था जब तक उसे अपने तोपखानों के लिए कोई अन्य फायरिंग रेंज मुहैया नहीं करवाई जाती थी। पर अंत में सेना को ही झुकना पड़ा और करीब एक साल का समय उसने इस फायरिंग रेंज को गोलों से मुक्त करने में तो लगाया, पर अभी भी कुछ सेनाधिकारियों को आशंका है कि कहीं तोप के गोले जमीन में दफन हो सकते हैं। दरअसल, फायरिंग रेंज में कई बार दागे गए तोप के गोले काफी नीचे तक या पहाड़ी के भीतर चले जाते हैं जिनके बारे में मेटल डिटेक्टरों से भी पता नहीं लगाया जा सकता है।  
 
तोशा मैदान एक चारागाह ही नहीं बल्कि अपने ऐतिहासिक वातावरण से भी प्रसिद्ध है। घने जंगलों से घिरा यह मैदान हिमालयन क्षेत्र में खग से लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह भी कहा जाता है कि तोशा मैदान उन मैदानों में से एक हैं जिसका पड़ोसी देश प्राचीन समय में यात्रा के लिए प्रयोग भी करते थे। अब जबकि इसे पर्यटन स्थल के तौर पर खोल दिया गया है पर आशंका कहीं न कहीं सभी के दिलों में इसलिए है क्योंकि कई अन्य फायरिंग रेंजों में आज भी अनफूटे तोपों के गोले कहर बरपाते आ रहे हैं।
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