ये घातक 'खेलों' की परंपराएं...

Webdunia
शनिवार, 20 अगस्त 2016 (16:39 IST)
उच्चतम न्यायालय द्वारा महाराष्ट्र में जन्माष्टमी के अवसर आयोजित होने वाले दही-हांडी उत्सव में पिरामिड की ऊंचाई 20 तक सीमित करने के फैसले पर शिवसेना ने नाराजी जताई है। अन्य लोगों ने भी इस फैसले का विरोध किया है। यह पहला अवसर नहीं है, जब अदालत ने इस तरह के खेलों या आयोजनों पर प्रतिबंध लगाया है। हालांकि परंपराओं के नाम पर देश के विभिन्न हिस्सों में इस तरह के खेल सैकड़ों वर्षों से जारी हैं। स्पेन जैसे देश में बुलफाइट का आयोजन किया जाता है, जिसमें लोग जख्मी तो होते ही हैं, कई बार उनकी मौत भी हो जाती है। 
 
दही हांडी : राखी के ठीक आठ दिन बाद जन्माष्टमी पर्व मनाया जाता है। इसी अवसर पर महाराष्ट्र में दही-हांडी उत्सव का आयोजन किया जाता है। इसमें हांडी को काफी ऊचांई पर टांगा जाता है और इसमें दही भरा जाता है। मायानगरी मुंबई में तो ज्यादा से ज्यादा ऊंची मटकी लगाने और इसे फोड़ने की होड़ रहती है। इसे फोड़ने के लिए बड़ी संख्या में लोग इकट्ठे होकर एक मानव पिरामिड बनाते हैं और हांडी फोड़ने का प्रयास करते हैं। इस मानव पिरामिड को गिराने के लिए टीम पर पानी भी फेंका जाता है। इसे फोड़ते समय हर साल कई लोग घायल हो जाते हैं। हांडी फोड़ने वाली टीम को गोविन्दा कहा जाता हैं। हांडी फोड़ने के लिए लाखों रुपए के इनाम भी रखे जाते हैं। 

हिंगोट युद्ध : हिंगोट युद्ध इन्दौर के पास गौतमपुरा में दीपावली के दूसरे दिन खेला जाता है। इस पारंपरिक युद्ध में प्रयोग किया जाने वाले हथियार हिंगोट होता है, जो कि एक जंगली फल है। इस हथियार को हिंगोट फल के खोल में बारूद, कंकड़-पत्थर भरकर बनाया जाता है। बारूद भरने के पश्चात यह हिंगोट रॉकेट की तरह उड़ान भरता है। इस युद्ध में दो दल आमने-सामने होते हैं, जिन्हें कलगी और तुर्रा कहा जाता है। हालांकि इस युद्ध में किसी की हार-जीत नहीं होती, किन्तु दर्जनों लोग घायल जरूर हो जाते हैं। समय-समय पर इस परंपरा का भी विरोध होता रहा है, लेकिन परंपराओं के नाम पर यह आज भी जारी है। इसे देखने के लिए दूर दूर से लोग गौतमपुरा पहुंचते हैं। मध्यप्रदेश के ही छिंदवाड़ा जिले में भी एक ऐसी ही परंपरा है, जिसमें दो गांव के लोग एक दूसरे को पत्थर मारते हैं। इसे गोटमार कहा जाता है, जो कि दो प्रेमियों की याद में हर वर्ष भादौ मास में आयोजित किया जाता है।
 
  
 
जल्लीकट्टू : जल्लीकट्टू तमिलनाडु का 400 वर्ष से भी पुराना पारंपरिक खेल है। इसका आयोजन पोंगल के समय किया जाता है। इस खेल में सांड़ों के सींगों में सिक्के या नोट फंसाकर रखे जाते हैं और फिर उन्हें भड़काकर भीड़ में छोड़ दिया जाता है, ताकि लोग सींगों से पकड़कर उन्हें काबू में करें। पराक्रम से जुड़े इस खेल में विजेताओं को पुरस्कृत करने की भी परंपरा है। ऐसा भी कहा जाता है कि सांडों को भड़काने के लिए उन्हें शराब पिलाने से लेकर उनकी आंखों में मिर्च तक डाली जाती है। वर्ष 2014 में उच्चतम न्यायालय ने जानवरों के साथ हिंसक बर्ताव को देखते हुए इस खेल को प्रतिबंधित कर दिया था, मगर परंपरा के नाम पर यह अब भी जारी है। 
 
अग्नि परीक्षा : अग्नि परीक्षा में अग्नि द्वारा स्त्रियों के सतीत्व का तथा अपराधियों के निर्दोष होने का परीक्षण किया जाता है। भारत के साथ ही कई अन्य देशों में भी अग्नि परीक्षा के माध्यम में खुद के पाक साफ होने का प्रमाण दिया जाता है। अग्नि परीक्षा अत्यंत प्राचीन काल से प्रचलित रहा है। परीक्षा का मूल यह है कि अग्नि जैसे तेजस्वी पदार्थ के सम्पर्क में आने पर, जो व्यक्ति बिना किसी परेशानी के बाहर आ जाता है उसे दोषरहित तथा पवित्र माना जाता है। रामायण काल में माता सीता को भी अग्नि परीक्षा देनी पड़ी थी।  
 
बुल फाइट : बुलफाइट यानी सांडों की लड़ाई स्पेन का पारंपरिक खेल है। इसे फ्रांस और कुछ लैटिन अमेरिकी देशों में भी खेला जाता है। इसमें विशेष रूप से प्रशिक्षित लोग जिन्हें मेटाडोर कहा जाता है, दर्शकों के मनोरंजन के लिए सांडों से लड़ते हैं। इस खेल को देखने के लिए हजारों लोग इकट्ठा होते हैं। स्पेन में दो तरह की बुल फाइट होती है। एक में प्रशिक्षित लोग भाग लेते हैं तो दूसरी में सांडों में आम लोगों के बीच छोड़ दिया जाता है। दुनिया के सबसे खतरनाक खेलों में शुमार बुल फाइट अब तक सैकड़ों लोगों की जान ले चुका है। हालांकि भारी विरोध को देखते हुए अब इस खेल पर भी सरकार ने शिकंजा कस दिया है। 
 
 
 
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