पिछले कुछ समय से सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्विटर और भारत सरकार के बीच विवाद चरम पर है। यह विवाद उस समय और बढ़ गया था जब ट्विटर ने उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मुखिया मोहन भागवत के ट्विटर अकाउंट से ब्ल्यू टिक हटा दिया था। हालांकि कुछ समय बाद ट्विटर ने इसमें सुधार लिया था। सरकार और ट्विटर के रिश्तों में खटास किसान आंदोलन के दौरान आई, जब ग्रेटा थनबर्ग समेत कई विदेशी हस्तियों ने किसान आंदोलन का समर्थन करते हुए परोक्ष रूप से भारत सरकार पर निशाना साधा था।
एक तरफ जहां अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स ने सरकार के नए नियमों को मान लिया, वहीं ट्विटर का रुख सरकार को चुनौती देता हुआ प्रतीत हुआ। दूसरी ओर, ट्विटर ने सरकार पर पुलिस के जरिए डराने-धमकाने का आरोप भी लगाया था।
नियमों की अनदेखी के बीच ट्विटर से इंटरमीडियरी प्लेटफॉर्म का दर्जा छीनकर सरकार ने उसे बड़ा झटका दे दिया है। अर्थात आईटी एक्ट की धारा 79 के तहत अब ट्विटर को संरक्षण प्राप्त नहीं होगा। ट्विटर से यह दर्जा छिनने के बाद ट्विटर के अधिकारी और कर्मचारी कानूनी झमेले में पड़ सकते हैं। क्योंकि अब ट्विटर के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई जा सकेगी। इतना ही नहीं इसकी शुरुआत हो भी चुकी है।
उत्तरप्रदेश में एफआईआर : दरअसल, गाजियाबाद में एक मुस्लिम बुजुर्ग की पिटाई के मामले को सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश के लिए यूपी सरकार ने ट्विटर के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई है। एफआईआर में अन्य आरोपियों के साथ ट्विटर आईएनसी और ट्विटर कम्युनिकेशन इंडिया प्राइवेट लिमिटेड का नाम भी है।
एफआईआर में आरोप लगाया गया है कि पुलिस की ओर से स्पष्टीकरण जारी करने के बाद भी आरोपियों ने अपने ट्वीट्स नहीं हटाए। इससे धार्मिक तनाव बढ़ा। साथ ही ट्विटर ने भी ट्वीट्स को हटाने के लिए कोई कदम नहीं उठाए। पुलिस ने आईपीसी की विभिन्न धाराओं में मामला दर्ज किया है।
इस बीच, ट्विटर ने यह कहकर पूरे विवाद पर पानी डालने की कोशिश की है कि उसने अनुपालन अधिकारी की नियुक्ति कर दी है।आने वाले समय में तो ट्विटर की मुश्किलें और बढ़ भी सकती हैं। गैर-कानूनी या भड़काऊ पोस्ट शेयर करने पर आईपीसी की धाराओं के तहत पुलिस कंपनी ट्विटर से पूछताछ भी कर सकती है।
2020 में भी ट्विटर और सरकार के बीच टकराव दिखाई दिया था जब संसद की एक समिति ने केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के ट्विटर अकाउंट पर कुछ समय के लिए रोक लगाने के साथ माइक्रोब्लॉगिंग साइट द्वारा भारत का गलत नक्शा दिखाने के मुद्दे को उठाया था।
सरकार का सख्त रुख : सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री रविशंकर प्रसाद ने 16 जून को कहा कि ट्विटर मध्यस्थ नियमों का पालन करने में विफल रहा और उसने कई अवसर मिलने के बावजूद जान-बूझकर इनका पालन नहीं करने का रास्ता चुना। प्रसाद ने कहा कि यह आश्चर्यजनक है कि स्वयं को स्वतंत्र अभिव्यक्ति के ध्वजवाहक के रूप में पेश करने वाला ट्विटर, जब मध्यस्थ दिशानिर्देशों की बात आती है तो जानबूझकर 'अवज्ञा' का रास्ता चुनता है।
इसमें सबसे खास बात यह है कि मंत्री ने अपनी बात रखने के लिए ट्विटर के भारतीय अवतार 'कू' को चुना। उन्होंने सवाल किया कि क्या ट्विटर संरक्षण प्रावधान का हकदार है? हालांकि उन्होंने ट्विटर पर भी जानकारी पोस्ट की थी। संरक्षण (हार्बर) प्रावधान, एक कानून या विनियम का प्रावधान है जो निर्दिष्ट करता है कि किसी निश्चित आचरण को, दिए गए नियम का उल्लंघन करने वाला न माना जाए।
क्या है धारा 79 : धारा 79 के अनुसार कोई भी मध्यस्थ अपने प्लेटफॉर्म पर किसी भी थर्ड पार्टी सूचना, डाटा या कम्युनिकेशन लिंक के लिए कानूनी या किसी भी तरह से जिम्मेदार नहीं है। बशर्ते संदेश में किसी तरह की कोई छेड़खानी नहीं की गई हो। अर्थात यदि कोई भी प्लेटफॉर्म एक जगह से दूसरी जगह बगैर संदेश में छेड़छाड़ किए उसे पहुंचाने का काम कर रहा है तो इस धारा के तहत उस पर किसी तरह की कोई कानूनी कार्रवाई नहीं की जाएगी।
नए नियमों के तहत यदि कोई सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म सरकार के नियमों का पालन नहीं करेगा तो वह आईटी एक्ट की धारा 79 के तहत सुरक्षा के दायरे में नहीं आ पाएगा। इस धारा के तहत सुरक्षा न मिल पाने की वजह से सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स के कर्मचारियों को भी जवाबदेह बनाए जाने का खतरा है। आपको बता दें कि गूगल, यूट्यूब, फेसबुक, वॉट्सएप और इंस्टाग्राम को अभी भी कानूनी संरक्षण प्राप्त है क्योंकि ये सभी प्लेटफॉर्म्स सरकार के नए आईटी नियमों का पालन करते हैं।
उल्लेखनीय है कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को सुरक्षा मुहैया करवाने को लेकर अमेरिका के 1996 कम्युनिकेशंस डीसेंसी एक्ट की धारा 230 का हवाला दिया जाता है। यह धारा कहती है कि इंटरैक्टिव कम्प्यूटर सर्विस सेवा को सिर्फ प्रकाशक या मंच के तौर पर देखा जाएगा, जो किसी दूसरे की विषय वस्तु को सिर्फ पहुंचाने का काम करता है।
क्या कहते हैं नए नियम : नए सोशल मीडिया नियमों के मुताबिक किसी भी शिकायत पर 15 दिनों के भीतर कार्रवाई करना होगी और 24 घंटे के अंदर पोस्ट को हटाना होगा। मीडिया कंपनियों को एक नियमों के अनुपालन के लिए एक अनुपालन अधिकारी रखना होगा। इसके अलावा एक नोडल अधिकारी होगा जो कानूनी एजेंसी से 24 घंटे संपर्क में रहेगा। एक रेजिडेंट ग्रेविएंस अधिकारी भी होगा जो शिकायत से जुड़ी आवश्यक कार्रवाई करेगा।
इसमें यह भी प्रावधान किया गया है कि ये तीनों अधिकारी भारत के निवासी होने चाहिए। इसमें ध्यान देने वाली बात यह है कि अगर पोस्ट करने वाला भारत के बाहर का है और भारत में उस संदेश को पहली बार पोस्ट या ट्वीट किया गया है तो उसे प्रथम प्रसारक माना जाएगा।