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केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने पेश की 2020-21 वार्षिक रिपोर्ट, देश में नक्सली हिंसा की घटनाओं में आई भारी कमी, CAA को लेकर दी जानकारी

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, बुधवार, 27 अप्रैल 2022 (21:54 IST)
नई दिल्ली। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने अपनी 2020-21 वार्षिक रिपोर्ट पेश की है। इसमें सीएए, नक्सली हिंसा और यौन अपराध सहित कई मामलों की जानकारी दी गई है। 
 
सीएए : संशोधित नागरिकता अधिनियम (सीएए) एक सीमित संदर्भ में और एक खास उद्देश्य से बनाया गया कानून है, जिसमें सहानुभूतिपूर्ण और सुधारात्मक दृष्टिकोण अपनाकर स्पष्ट ‘कट ऑफ’ तिथि के साथ कुछ चुनिंदा देशों से आने वाले विशेष समुदायों को छूट देने की कोशिश की गई है। गृह मंत्रालय (एमएचए) की वार्षिक रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई है। सीएए 2019 में बनाया गया था, लेकिन इसे अभी तक लागू नहीं किया गया है। इसका उद्देश्य हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदायों के उन सदस्यों को नागरिकता प्रदान करना है, जिन्हें अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान में उत्पीड़न का सामना करना पड़ा था।
 
 
गृह मंत्रालय की 2020-21 के लिए जारी वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, ‘‘सीएए एक सीमित संदर्भ में और एक खास उद्देश्य से बनाया गया कानून है, जिसमें स्पष्ट कट ऑफ तारीख के साथ कुछ चुनिंदा देशों से आने वाले खास समुदायों को छूट देने की कोशिश की गई है। यह एक सहानुभूतिपूर्ण एवं सुधारात्मक कानून है। ’’
 
इसके अनुसार सीएए भारतीय नागरिकों पर लागू नहीं होता है और इसलिए, यह कानून किसी भी तरह से उनके अधिकारों को कम नहीं करता है। इसमें कहा गया है कि संविधान ने छठी अनुसूची के तहत पूर्वोत्तर क्षेत्र के आदिवासियों और स्वदेशी लोगों को सुरक्षा प्रदान करने के लिए विशेष प्रावधान प्रदान किए हैं।
 
रिपोर्ट में कहा गया है कि सीएए के जरिये संविधान की छठी अनुसूची के तहत क्षेत्रों और बंगाल पूर्वी सीमा विनियमन,1873 के तहत ‘इनर लाइन परमिट’ प्रणाली द्वारा कवर किए गए क्षेत्रों को बाहर कर दिया गया है।
 
नक्सली हिंसा में कमी : देश में 2013 की तुलना में 2020 में नक्सली हिंसा की घटनाओं में 41 प्रतिशत और मौतों में 54 प्रतिशत की कमी आई है। इस तरह की घटनाओं को काफी हद तक सीमित कर दिया गया है और माओवादी हिंसा की 88 प्रतिशत घटनाएं केवल 30 जिलों में सामने आई हैं।
 
गृह मंत्रालय की 2020-21 के लिए वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, 2013 में 10 राज्यों के 76 जिलों के 328 पुलिस थानों की तुलना में 2020 में नौ राज्यों के 53 जिलों के 226 पुलिस थानों से नक्सली हिंसा की सूचना मिली थी।
 
रिपोर्ट के अनुसार पिछले छह वर्ष में वामपंथी उग्रवाद (एलडब्ल्यूई) हिंसा में उल्लेखनीय गिरावट देखी गई है। वर्ष 2011 में शुरू हुई गिरावट का सिलसिला 2020 में भी जारी रहा।’’
 
गृह मंत्रालय की वार्षिक रिपोर्ट में कहा गया है कि 2013 की तुलना में 2020 में हिंसक घटनाओं में कुल 41 प्रतिशत की कमी आई और यह संख्या 1,136 से घटकर 665 रह गई जबकि एलडब्ल्यूई से संबंधित मौतों में 54 प्रतिशत की कमी आई और यह संख्या 397 से घटकर 183 रह गई।’’
 
रिपोर्ट के अनुसार 2020 में, 315 घटनाओं और 111 लोगों की मौत के साथ छत्तीसगढ़ सबसे बुरी तरह प्रभावित राज्य बना रहा। इसके बाद झारखंड (199 घटनाएं और 39 मौत), ओडिशा (50 घटनाएं और 9 मौत), महाराष्ट्र (30 घटनाएं और 8 मौत) और बिहार में 26 घटनाएं और मौत के आठ मामले सामने आये हैं।
 
रिपोर्ट में कहा गया है कि वामपंथी उग्रवाद परिदृश्य में समग्र सुधार का श्रेय वामपंथी उग्रवाद प्रभावित राज्यों में सुरक्षा बलों की अधिक उपस्थिति और बढ़ती हुई क्षमता, बेहतर संचालन रणनीति और प्रभावित क्षेत्रों में विकास योजनाओं की बेहतर निगरानी को दिया जा सकता है।
 
गृह मंत्रालय ने कहा कि वामपंथी उग्रवाद की हिंसा का भौगोलिक प्रसार भी काफी कम हो रहा है और हिंसा का दायरा काफी हद तक सीमित हो गया है।
 
यौन अपराधियों का ब्योरा :  केंद्रीय गृह मंत्रालय ने देश में 10.69 लाख से अधिक यौन अपराधियों का ब्योरा जमा किया है और इस तरह के जुर्म के नए मामलों की जांच के लिए कानून प्रवर्तन एजेंसियों को इन अपराधियों की जानकारी जिस समय चाहिए, वह तत्काल उपलब्ध है।
 
मंत्रालय की 2020-21 के लिए वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार राष्ट्रीय यौन अपराधी डेटाबेस (एनडीएसओ) के पास देश में 10.69 लाख से अधिक यौन अपराधियों के आंकड़े हैं जिससे जांच अधिकारियों को आदतन यौन अपराधियों पर नजर रखने तथा ऐसे मुजरिमों के खिलाफ एहतियाती कदम उठाने में मदद मिलती है।
 
डेटाबेस में उन सभी यौन अपराधियों की जानकारी है जिन्हें बलात्कार, सामूहिक बलात्कार, महिलाओं के उत्पीड़न और यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (पॉक्सो) कानून के प्रावधानों के तहत दोषी करार दिया गया है।
 
रिपोर्ट के मुताबिक इसमें अपराधियों के नाम, पते, उनकी तस्वीरें, पहचान पत्र, फिंगरप्रिंट आदि विवरण हैं। इसमें कहा गया है, ‘‘एनडीएसओ सभी कानून प्रवर्तन एजेंसियों के लिए 24 घंटे उपलब्ध है और यह यौन अपराधों के मामलों में पृष्ठभूमि का सत्यापन करने तथा त्वरित पहचान करने में मददगार होता है। (एजेंसियां)

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