किसने की थी उड़ी के हमलावरों की मदद

मारे गए फिदायीनों को उड़ी कस्बे में देखे जाने का दावा भी

सुरेश डुग्गर
श्रीनगर। उड़ी में सैन्य शिविर पर हुए फिदायीन हमले के बाद सबसे बड़ा सवाल यह उठ रहा है कि आखिर हमलावरों की मदद किसने की थी। यह सवाल कई कारणों से उठा है। पहला कारण अब कुछ लोगों द्वारा दावा किया जा रहा है कि पिछले 4-5 दिन से 8 से 10 लोगों को फौजी वर्दी में भारी हथियारों और गोला-बारूद के साथ उड़ी कस्बे में घूमते पाया गया था। शक का दूसरा सबसे बड़ा कारण हमलावरों द्वारा सटीक स्थान पर उसी समय हमला बोला था जब सैन्य शिविर में चेंज आफ कमांड हो रहा था।
सूत्रों के मुताबिक, सुरक्षाबलों ने उड़ी कस्बे में तीन बक्करवालों से पूछताछ की है जिनका दावा था कि उन्होंने उड़ी कस्बे में 4-5 दिन पहले 8-10 लोगों को फौजी वर्दी में भारी हथियारों में घूमते पाया था। सूत्रों के मुताबिक, पूछताछ के दौरान बक्करवालों ने यह भी दावा किया कि इन संदिग्ध फौजियों के साथ स्थानीय लोग भी देखे गए थे।
 
हालांकि इन खबरों की आधिकारिक पुष्टि नहीं हो पाई है, लेकिन बताया जाता है कि इन लोगों ने जो ब्यौरा संदिग्धों के प्रति दिया था उनमें से दो का विवरण मारे गए फिदायीनों से मिलता था। उड़ी सैन्य शिविर पर हमले के लिए दोषी चार फिदायीनों में से एक ने ही दाढ़ी रखी हुई थी जबकि बाकी तीन क्लीन शेव थे और क्लीन शेव फिदायीनों ने फौजियों की ही तरह बाल भी कटवा रखे थे।
 
उड़ी सैन्य शिविर के हमलावरों की मदद कथित तौर पर स्थानीय गाइडों या फिर कैम्प के भीतर आने-जाने वाले कुछ लोगों द्वारा किए जाने की आशंका अब बलबती होती जा रही है। बताया जा रहा है कि उनसे प्राप्त नक्शे में जो निशान लगाए गए थे वे सैन्य शिविर के भीतर के ठीक उसी जगह के थे जहां उन्होंने हमला बोला था और जहां चेंज ऑफ कमांड के दौरान सैनिक बड़ी संख्या में एकत्र होते थे।
 
एक सूत्र के मुताबिक, आज तक मारे गए आतंकियों के कब्जों से मिलने वाले नक्शों पर इतने सटीक निशान कभी नहीं मिले थे। उनके मुताबिक, इससे यह शक पुख्ता होता नजर आ रहा है कि किसी लोकल गाइड या कैम्प के भीतर की जानकारी रखने वाले किसी शख्स ने हमलावरों की मदद की थी। हालांकि इतना जरूर था कि नक्शे पर जो निशानदेही और लिखावट थी वह पश्तो भाषा में थी जिससे यह कहा सकता था कि मारे गए आतंकी अफगान मुजाहिदीन या तालिबान हो सकते हैं जिन्हें पश्तो भाषा आती थी।
 
अधिकारियों के मुताबिक, अतीत में पहले भी दो बार एलओसी के इलाकों में सैन्य शिविरों पर हुए दो फिदायीन हमले तड़के ठीक उसी समय हुए थे जब चेंज आफ कमांड अर्थात एलओसी की रक्षा करने वाली बटालियनों की अदला-बदली हो रही थी। ‘यह जानकारी बहुत ही गुप्त रखी जाती है। यहां तक की स्थानीय लोगों को भी इसके बारे में कोई जानकारी नहीं होती है सिवाय कैम्प के भीतर के लोगों के,’ अधिकारियों का कहना था।
 
यही कारण था कि अधिकारियों को शक है कि चेंज ऑफ कमांड के समय पर हुए हमले के पीछे कैम्प के भीतर आने-जाने वाले लोगों का भी हाथ हो सकता है। हालांकि अभी जांच जारी है और कोई पक्के तौर पर कुछ भी बोलने को तैयार नहीं है। पर यह अब सत्य साबित होता जा रहा है कि सेना ऐसी गुप्त जानकारियों को भी गुप्त नहीं रख पा रही है जो सीमा पार तक पहुंचने लगी हैं।
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