केवल विकास का भविष्य, मंदिर-मस्जिद गौण विषय

Webdunia
-अनिल शर्मा
सन् 2017 के यूपी के विधानसभा चुनाव में भाजपा बनाम मैनेजमेंट बनाम अमित शाह जमा नरेन्द्र मोदी की जीत और सरकार बनने तक के सफर के बाद विकास के साथ-साथ ये बातें भी सामने आ रही हैं कि अब बहुत जल्द ही मंदिर का निर्माण हो सकेगा जबकि इस चुनाव में 3 दलों से मुकाबला करना बड़ा संघर्षभरा था। अगर 3 दल सपा, बसपा और कांग्रेस ने उप्र में भ्रष्टाचार को नहीं फैलाया होता तो इन दलों की पूछपरख कम नहीं होती। अब सवाल यह है कि भाजपा उत्तरप्रदेश को उत्तमप्रदेश बनाने का जतन करेगी या हिन्दू कार्ड खेलकर मंदिर का मुद्दा उठाएगी? 
 
भाजपा को अपनी सत्ता भविष्य में बनाए रखना होगी तो वह मंदिर-मस्जिद के मुद्दे पर गौर न करते हुए तब तक चुप रहेगी, जब तक कि न्यायालयीन फैसला सार्वजनिक नहीं होता। और लगता भी यही है कि योगी आदित्यनाथ राजनीति में धर्म को रुकावट नहीं बनने देंगे। 
 
भाजपा का जन्म हालांकि हिन्दूवादी संगठन से हुआ है फिर भी सत्ता में आने के बाद उसकी छवि अब धर्मनिरपेक्ष की होने लगी है। उनके लिए सभी धर्म समभाव वाले होंगे और भविष्य में मंदिर-मस्जिद फैसला आते-आते लगता है कि उप्र से सारी सांप्रदायिकता समाप्ति के लगभग हो सकेगी, अगर भाजपा बनाम आदित्यनाथ ने विकास के लिए न केवल प्रयत्न किए बल्कि उन्हें अमलीजामा पहनाया तो। और जितना बड़ा जनसमर्थन उनकी पार्टी को हासिल हुआ है उसे देखते हुए।
 
यूपी की जीत के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा था कि जिन्होंने बीजेपी को वोट नहीं दिया है, सरकार उनकी भी होगी। लेकिन योगी आदित्यनाथ की छवि आक्रामक राजनेता की है। एक खास वर्ग को लेकर उनके विचार अतिवादी रहे हैं। इससे उस समुदाय में चिंता हो सकती है जिसे दूर करना अब योगी सरकार का प्रमुख मकसद होना चाहिए। पूरे प्रदेश को भरोसे में लिए बिना कोई भी सरकार विकास के एजेंडे को पूरा नहीं कर सकती।
 
किसानों का मुद्दा : राज्य के अपने आंकड़ों के मुताबिक यूपी के 58.2 फीसदी किसान परिवार कर्ज में डूबे हैं। इनमें से ज्यादातर छोटी जोत वाले हैं। सूबे के एक किसान परिवार पर औसतन 27 हजार 984 रुपए का कर्ज है, जबकि राष्ट्रीय सैंपल सर्वे के मुताबिक राज्य के 44 फीसदी किसान कर्ज में हैं। राज्य में बिजली की हालत अब भी बेहद खराब है। यूपी की तुलना में कहीं ज्यादा बदहाल रहा पड़ोस का राज्य बिहार कम से कम सड़कों और बिजली के क्षेत्र में बेहतर होने लगा है लेकिन यूपी की हालत सुधर नहीं रही। 2007 के विधानसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी और 2012 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने 22 घंटे बिजली देने का वादा किया था। 
 
विकास की तस्वीर : इसके साथ ही बदहाल शिक्षा व्यवस्था, घोटालों और बदहाली के बीच जूझती स्वास्थ्य सेवा, जमीनों पर बिल्डर लॉबी का कब्जा, स्थानीय लोकतंत्र से दूर नोएडा समेत कई चुनौतियां राज्य की नई सरकार के सामने हैं। शिक्षा को सुधारे बिना राज्य के विकास की नई तस्वीर की तो उम्मीद भी नहीं की जा सकती।
 
देखना है, यूपी की नई सरकार इन चुनौतियों से किस तरह जूझती है। ये सारी बातें आज पैदा होकर ये सवाल खड़ा कर रही हैं कि भाजपा बनाम आदित्यनाथ योगी की सरकार इनके समाधान में सफल हो सकेगी तो भाजपा बनाम अमित शाह के मैनेजमेंट को देखते हुए कहा जा सकता है कि ऐसा होना असंभव नहीं लगता। भारत जैसे छितराए हुए लोकतंत्र में सभी नागरिकों का भरोसा बनाए रखने के लिए धर्मनिरपेक्षता एक जरूरी विचार है। 
 
इस समय मोदी तकरीबन इंदिरा गांधी की तरह ताकतवर हो गए हैं। इंदिरा गांधी और मोदी में एक बुनियादी अंतर है। इंदिरा गांधी ने संविधान में संशोधन करके 'सेक्यूलर' शब्द जोड़ा था, मोदी अब उस शब्द को मिटाने के करीब पहुंच गए हैं। और भविष्य में यूपी का हर बाशिंदा चाहे वह हिन्दू हो या मुसलमान या अन्य किसी धर्म, वर्ग, जाति, संप्रदाय का- योगी आदित्यनाथ बनाम नरेन्द्र मोदी बनाम भाजपा सरकार से संतुष्ट रह सकता है।
 
इस बात में भी दो राय नहीं कि हालात के मद्देनजर इस माहौल को हिन्दुत्व सोच तले कांग्रेस को शह-मात का खेल है जिसमें जिसमें योगी आदित्यनाथ के जरिए विकास और करप्शन फ्री हालात पैदा कर चुनौती देने का ऐलान है कि विपक्ष खुद को हिन्दू विरोधी माने या फिर संघ के हिन्दुत्व को मान्यता देने वाली बात भी उठ रही है, जबकि बार-बार ये कहने में आ रहा है कि ऐसा कुछ भी होना नहीं है।
 
हो सकता है कि भाजपा का हिन्दूवादी खेमा केवल विकास के लिए काम करने और हिन्दू कार्ड को जेब में रखने वाले मामले पर नाराज हो जाए, लेकिन यूपी के विकास के साथ-साथ भाजपा को अपना वोट बैंक शत-प्रतिशत करने पर भी ध्यान देना होगा।
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