रूस और यूक्रेन युद्ध से होने वाले प्रभावों से पूरी दुनिया त्रस्त है। इस बीच, चीन और ताइवान के बीच युद्ध का आहट सुनाई देने लगी है। पिछले साल अमेरिकी स्पीकर नैंसी पेलोसी की ताइवान यात्रा से चीन बुरी तरह भड़क गया था। इस बीच, ताइवान की राष्ट्रपति साई इंग वेन के हालिया अमेरिका दौरे के बाद यह तनाव चरम पर पहुंच गया है। इस समय जिस तरह के हालात हैं, उन्हें देखकर लगता है कि युद्ध कभी भी छिड़ सकता है। चीन ने बड़ी संख्या में युद्धपोत और लड़ाकू विमान तैनात कर एक तरह से ताइवान को घेर लिया है।
दरअसल, 'वन चाइना पॉलिसी' के तहत चीन हमेशा से ही ताइवान को अपना हिस्सा मानता रहा है। चीन का मानना है कि इस पॉलिसी के तहत चीन से राजनयिक संबंध रखने वाले देशों को ताइवान से अपने संबंध खत्म करने होंगे। ताइवान खुद को स्वतंत्र देश मानता है। इसका अपना संविधान है तथा अपना राष्ट्रपति भी है। हालांकि चीन इसे मान्यता नहीं देता। राष्ट्रपति शी जिनपिंग कई बार कह चुके हैं कि वह सेना के द्वारा ताइवान पर कब्जा करके रहेंगे।
तनाव के बीच ताइवान ने दावा किया है कि चीन को शनिवार शाम 4 बजे तक 71 चीनी लड़ाकू जेट और 9 युद्धपोत तैनात कर दिए हैं। इतना ही नहीं 45 विमान तो ऐसे हैं जो ताइवान स्ट्रेट की मध्य रेखा को पार कर गए। दोनों भूभागों के बीच के समुद्र को ताइवान स्ट्रेट कहा जाता है। यदि इन दोनों देशों के बीच युद्ध होता है पूरी दुनिया इसके असर से अछूती नहीं रहेगी।
हालांकि इससे पहले भी चीन भड़काऊ गतिविधियों को अंजाम देता रहा है। पिछले दिनों गोला-बारूद ले जा रहे विमानों ने ताइवान के पास हमला करने का अभ्यास किया था। स्वयं चीनी सेना की ईस्टर्न थिएटर कमांड ने स्वीकार किया था कि H-6K लड़ाकू विमानों ने ताइवान पर हमला करने का अभ्यास किया था।
भारत पर क्या होगा असर? : यदि दोनों देशों के बीच युद्ध के हालात बनते हैं कि निश्चित ही भारत पर इसका व्यापक असर होगा। क्योंकि दोनों देशों से ही भारत के व्यापारिक संबंध है। हालांकि भारत जिस तरह से रूस से युद्ध के बाद भी व्यापार कर रहा है, उसी तरह चीन से कर सकता है, लेकिन ताइवान के साथ ऐसा संभव नहीं हो पाएगा।
ताइवान भारत का 35वां सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है, वहीं भारत भी उसका 17वां सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है। युद्ध की स्थिति में यदि भारत-ताइवान व्यापार बाधित होता है तो भारत के स्मार्टफोन, इलेक्ट्रॉनिक और ऑटो सेक्टर पर विपरीत असर पड़ सकता है।
इसके अलावा भारत ताइवान से ऑर्गेनिक केमिकल्स, सेमीकंडक्टर, इलेक्ट्रिकल मशीनरी, प्लास्टिक, मशीन टूल्स आदि खरीदता है। ताइवान भी भारत से मिनरल फ्यूल, तिलहन, मक्का, लोहा, स्टील जैसे प्रोडक्ट खरीदता है। युद्ध की स्थिति में ताइवान चाह कर भी भारत उत्पादों की सप्लाई नहीं कर पाएगा न ही इधर से उधर सामान भेजने की स्थिति बन पाएगी।
क्या कहता है इतिहास : कुछ समय के लिए ताइवान जापान का भी हिस्सा रह चुका है। 1894 में चीन के क्विंग राजवंश और जापानी साम्राज्य के बीच युद्ध के बाद 1895 में हुए एक समझौते के तहत ताइवान जापान की झोली में आ गया। करीब 50 साल तक जापान का इस द्वीप पर कब्जा रहा। हालांकि दूसरे विश्व युद्ध के दौरान चीन ने ताइवान पर पुन: कब्जा जमा लिया।
इसके बाद यहां के दो प्रमुख राजनीतिक दलों के बीच शुरू हुई सत्ता की जंग ने इस द्वीप को अलग देश ताइवान बना दिया। 1949 में कम्युनिस्ट पार्टी ने माओत्से तुंग के नेतृत्व में देश की कॉमिंगतांग सरकार के खिलाफ विद्रोह किया था। धीरे-धीरे यह विद्रोह ने गृहयुद्ध में बदल गया। इस दौरान माओ गुट भारी पड़ा और कॉमिंगतांग पार्टी के बचे हुए नेताओं और समर्थकों ने ताइवान वाले हिस्से में जाकर शरण ली। फिर कॉमिंगतांग पार्टी के लोगों ने अपनी अलग सरकार बनाई और इसका आधिकारिक नाम रिपब्लिक ऑफ चाइना रख दिया। हालांकि चीन ने कभी भी इसको मान्यता नहीं दी। यही कारण है कि यह विवाद बना ही हुआ है।