What is cloudburst : उत्तराखंड के धराली के बाद जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ के चशोती में बादल फटने की घटना सामने आई है। बादल फटने की अधिकांश घटनाएं पहाड़ी इलाकों में ज्यादा होती हैं जैसे उत्तराखंड, हिमाचल, जम्मू-कश्मीर, लेह-लद्दाख आदि। ये घटनाएं मॉनसून के मौसम जैसे कि जून से सितंबर में ज्यादा देखने को मिलती हैं। जैसे अभी अगस्त का महीना है और उत्तराकशी में ये घटना हुई है। जानिए क्यों होती हैं बादल फटने की घटनाएं और मौसम विभाग इसका पूर्वानुमान क्यों नहीं लगा पाता।
क्या होता है बादल फटने का कारण
बादल फटना यानी क्लाउडबर्स्ट एक ऐसी स्थिति है जब बहुत कम समय में बहुत सीमित क्षेत्र में भारी वर्षा होती है। यानी अगर 1 घंटे में 100 मिमी से ज्यादा बारिश हो और वह भी सिर्फ 1-2 किलोमीटर के दायरे में तो इसे बादल फटना कहते हैं। आसान भाषा में समझें तो मान लीजिए आपके सिर पर धीरे-धीरे एक बाल्टी पानी डाला जाए, तो शायद आप उसे संभाल लें, लेकिन अगर वही पानी पल भर में गिरे तो क्या होगा? बादल फटने पर यही होता है। बादल फटने की सबसे बड़ा कारण होता है नमी से भरे हुए भारी बादल। जब ये बादल किसी पहाड़ी या ठंडी हवा वाले इलाके से टकराते हैं तो उनमें मौजूद नमी बहुत तेजी से कंडेंस होती है यानी पानी की बूंदों में बदलती है और फिर होती है मूसलाधार बारिश। यह आमतौर पर पहाड़ी इलाकों में होता है जहां नमी से भरे बादल अचानक एक छोटे क्षेत्र में भारी मात्रा में पानी छोड़ देते हैं। इससे बाढ़, भूस्खलन और जान-माल का नुकसान होता है।
मौसम वैज्ञानी क्यों नहीं लगा पाते पूर्वानुमान
मौसम वैज्ञानिकों के पास रडार, उपग्रह और सुपरकंप्यूटर जैसे उन्नत उपकरण हैं फिर भी बादल फटने की सटीक भविष्यवाणी इतना आसान नहीं। इसके कई कारण हैं। पहला कारण ये है कि बादल फटने की घटनाएं छोटे इलाकों में होती हैं और अचानक से कम समय में हो जाती हैं। मौसम के मॉडल आमतौर पर बड़े क्षेत्रों के लिए डिजाइन किए जाते हैं और इतने छोटे स्तर पर सटीक डेटा जुटाना मुश्किल का काम होता है। मौसम रडार और उपग्रह भारी बारिश का अनुमान तो लगा सकते हैं लेकिन बादल फटने की सटीक जगह और समय बताना अभी भी कठिन है। भारत में डॉप्लर रडार की संख्या सीमित है और पहाड़ी क्षेत्रों में इनका कवरेज कम है।
बादल फटने की प्रक्रिया बहुत तेजी से होती है। नमी, हवा की गति और तापमान जैसी परिस्थितियां मिनटों में बदल सकती हैं। मौजूदा तकनीक इतनी तेजी से इन बदलावों को पकड़ने में सक्षम नहीं है। हिमालय जैसे पहाड़ी क्षेत्रों की बनावट की वजह से मौसम और वहां होने वाले बदलावों का सही अंदाजा लगाना मुश्किल होता है। पहाड़ हवाओं को प्रभावित करते हैं, जिससे स्थानीय स्तर पर बादल बनते और फटते हैं। इन सूक्ष्म बदलावों को मॉडल में शामिल करना मुश्किल है।
इस साल कहां-कहां फटे बादल
5 अगस्त को उत्तराखंड में उत्तरकाशी के धराली में बादल फटने से भारी तबाही हुई। धराली और हर्षिल इलाकों में बादल फटने से भयंकर तबाही हुई है। इस घटना में 4 लोगों के मौत की खबर सामने आई थी। बादल फटने की घटना के दौरान भारी बारिश और पानी के तेज बहाव ने हिमनद से बने मलबे को अचानक खिसका दिया। नाले के रास्ते में खड़ी ढलान ने मलबे की गति को और बढ़ा दिया। यह करीब 7 किमी तक फैली है. इससे तेज रफ्तार में मलबा एक मिनट से भी कम समय में धराली गांव तक पहुंच गया, जिससे काफी नुकसान हुआ। इसमें कई लोग लापता भी हो गए।
किश्तवाड़ में फटे बादल
14 अगस्त को किश्तवाड़ के पाडर इलाके में स्थित मचेल माता मंदिर के पास बादल के फटने से 17 लोगों की मौत हो गई। मृतकों में श्रद्धालु भी बताए जा रहे हैं। मृतक संख्या बढ़ने की आशंका है क्योंकि अभी कइयों के लापता होने की खबरें आ रही थीं। इस घटना में 30 से ज्यादा लोगों की मौत की पुष्टि हो गई है, वहीं भारी नुकसान की भी आशंका है। मौके पर राहत और बचाव का काम जारी है। बादल फटने के बाद इलाके में बाढ़ आ गई है।
हिमाचल में फटे बादल
कुल्लू जिला के बंजार और आनी निरमंड उपमंडल के ऊंचे पहाड़ी क्षेत्रों में बुधवार को दो अलग-अलग जगह बादल फटने की घटनाएं हुईं बठाहड़ और श्रीखंड महादेव भीम डवारी में हुए बादल फटने के बाद प्रशासन ने निचले क्षेत्रों के कई गांव खाली करवाए. तीर्थन घाटी और आनी में जगह-जगह नुकसान हुआ। Edited by : Sudhir Sharma