Who is killing our scientist: भाभा-साराभाई से केके जोशी तक, क्‍यों हुईं इतने भारतीय वैज्ञानिकों की रहस्यमयी मौतें?

नवीन रांगियाल
Mysterious Death of Indian Scientist: कोई रेल की पटरी पर मृत पाया गया तो किसी के शरीर में पॉइजन मिला। किसी ने आत्‍महत्‍या की, कोई जलकर मरा तो किसी का प्‍लैन क्रैश हो गया। भारत के ऐसे कई वैज्ञानिक हैं, जिनकी मौत सामान्‍य तरीके से नहीं, बल्‍कि ये मौतें किसी हादसे, आत्‍महत्‍या और संदिग्‍ध हालातों में हुईं हैं। दिलचस्‍प बात है कि इन वैज्ञानिकों की मौतों की जांच अब तक किसी भी नतीजे पर नहीं पहुंच सकी। ये सभी भारत के बड़े वैज्ञानिक थे और देश के न्‍यूक्‍लियर, स्‍पेस और बेहद महत्‍वपूर्ण रिसर्च प्रोजेक्‍ट से जुड़े हुए थे।

भारत के कई टॉप वैज्ञानिकों की मौतें इन्‍हीं रहस्‍यमयी तरीकों से हो चुकी है। इसमें होमी जहांगीर भाभा, विक्रम सारा भाई से लेकर केके जोशी और आशीष अश्नीन जैसे बड़े वैज्ञानिक शामिल हैं। आखिर क्‍यों इन वैज्ञानिकों की मौतें इस तरह हुईं और आज तक उनका खुलासा नहीं हो सका।

क्‍या है इसरो के तपन मिश्र का दावा : कुछ समय पहले भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. तपन मिश्र ने आरोप लगाया था कि उन्हें लगातार मारने की कोशिश की जा रही है। उन्‍होंने कहा था कि पिछले 3 साल में उन्‍हें 3 बार जहर देने की कोशिश की गई। उन्होंने भारत सरकार से इस मामले में जांज करने की मांग की है। अगर देश के वरिष्‍ठ वैज्ञानिक इस तरह की आशंकाएं जाहिर कर रहे हैं तो जाहिर है कहीं न कहीं कोई षड़यंत्र जरूर होगा। जिस तरह से पिछले कुछ सालों में देश के वैज्ञानिकों की मौतें हुईं हैं, उससे तपन मिश्र के दावे को गंभीरता से लिया जाना चाहिए।

होमी जहांगीर भाभा : ऐसा माना जाता है कि होमी जहांगीर भाभा कुछ साल और जिंदा रह जाते तो भारत न्यूक्लियर एनर्जी प्रोग्राम में बहुत पहले ही दुनिया के सामने एक मिसाल के तौर पर खड़ा हो जाता। लेकिन, भाभा की एक विमान दुर्घटना में दुखद मौत हो गई। ऐसा कहा जाता है कि कि वरिष्‍ठ वैज्ञानिक भाभा की मौत के पीछे एक गहरी साजिश थी, जिससे भारत के न्यूक्लियर प्रोग्राम को रोका जा सके। अगर भाभा होते तो भारत न्‍यूक्‍लियर पावर में आज बड़ी उपलब्‍धि हासिल कर चुका होता।

कौन थे होमी जहांगीर भाभा : महाराष्‍ट्र के मुंबई में जन्में भाभा ने 18 साल की उम्र में कैंब्रिज यूनिवर्सिटी से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई शुरू की। बाद में उनकी दिलचस्पी फिजिक्स में बढ़ गई। साल 1934 में उन्होंने कॉस्मिक रे को लेकर पहला रिसर्च पेपर तैयार किया। साल 1939 में वह छुट्टियां मनाने भारत आए, लेकिन अपनी जन्मभूमि में इस तरह मन लगा कि वापस विदेश नहीं लौटे। हालांकि, ये भी कहा जाता है कि द्वितीय विश्वयुद्ध की वजह से वह वापस नहीं जा सके।

क्‍या सीआईए ने करवाया प्‍लैन क्रैश : भाभा ने साल 1945 में इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च की स्थापना की थी। भाभा जिस तरह से न्यूक्लियर प्रोग्राम को लेकर आगे बढ़ रहे थे, उससे अमेरिका चिंतित था और आरोप लगते हैं कि इसे ही लेकर सीआईए ने भाभा का प्लेन क्रैश करवा दिया। हालांकि इस बात के कोई सबूत नहीं है और न ही ये साबित नहीं हो सका।

कैसे हुई भाभा की मौत : साल 1966 में जिस एयर इंडिया की फ्लाइट से भाभा सफर कर रहे थे, वह माउंट ब्लैंक पहाड़ियों के पास हादसे का शिकार हो गया। ये भी आरोप लगते हैं पहले विमान में धमाका हुआ, उसके बाद विमान क्रैश हुआ। कहा जाता है कि एक निजी जांच में सामने आया था कि विमान के लगैज वाले हिस्‍से में बम रखा गया था।

कैसे हुई थी विक्रम साराभाई की मौत : विक्रम साराभाई को अंतरिक्ष प्रोग्राम का जनक माना जाता है। अंतरिक्ष प्रोग्राम में साराभाई का बहुत बड़ा योगदान है। लेकिन, उनकी मौत एक रहस्य बनकर रह गई। तमाम जांचों के बाद भी ये नहीं पता चल पाया कि विक्रम साराभाई की मौत कैसे हुई थी। दरअसल, विक्रम साराभाई ने आणविक ऊर्जा से इलेक्ट्रॉनिक्स और दूसरे सेक्टर में बड़ा योगदान दिया। लेकिन, 52 साल की उम्र में ही केरल में एक कार्यक्रम के दौरान वे अपने रिजॉर्ट्स के एक कमरे में मृत अवस्‍था में पाए गए।

क्‍या दावा किया बेटी ने : साराभाई की बेटी ने जो दावा किया उसके बाद उनकी मौत का रहस्‍य और ज्‍यादा गहरा जाता है। इसके पहले वह कई कार्यक्रमों में गए और रात को जब रिसॉर्ट्स लौटे तब तक वह बिल्कुल सामान्य थे। उनकी बेटी मल्लिका का दावा था कि उनके पिता की मेडिकल रिपोर्ट हमेशा सामान्य रहती थी और उन्हें किसी तरह की बीमारी नहीं थी।

सहयोगी कमला चौधरी का दावा : विक्रम साराभाई की सहयोगी रही कमला चौधरी का दावा था कि विक्रम कई बार कहते थे कि अमेरिका और रूस के जासूस उन पर नजर रखे हुए हैं और वे उन्हें कभी भी टार्गेट कर सकते हैं। विक्रम साराभाई का पोस्टमार्टम भी नहीं हो पाया, जिससे उनकी मौत के कारणों के बारे में जानकारी मिल सके।

लोकनाथन महालिंगम वॉक पर गए वापस नहीं लौटे : लोकनाथन महालिंगम कर्नाटक के कैगा एटॉमिक पावर स्टेशन में कार्यरत थे। वे देश के प्रतिभावान वैज्ञानिकों में एक थे। लेकिन, उनकी मौत ने न सिर्फ एक रहस्य पैदा कर दिया बल्‍कि विज्ञान की दुनिया को सदमे में धकेल दिया। दरअसल, जून 2008 में अपने घर से सुबह की चहल-कदमी के लिए निकले थे। लेकिन करीब 5 दिनों के बाद उनका शव मिला। हैरत की बात थी कि डीएनए टेस्ट की रिपोर्ट आने से पहले ही उनका अंतिम संस्कार कर दिया गया।

सीक्रेट सूचनाएं थीं उनके पास : दावा किया जाता है कि लोकनाथन देश की सबसे संवेदनशील परमाणु सूचनाएं रखते थे। कुछ लोग कहते हैं कि जंगल में टहलने के दौरान तेंदुए ने उन पर हमला कर दिया था। किसी का दावा है उन्होंने आत्महत्या कर ली तो कोई कहता है कि अपहरण के बाद उनकी हत्या हुई। कई अटकलें लगाई गईं, लेकिन आज तक यह पता नहीं चल सका कि उनकी मौत कैसे हुई।

एम पद्नमनाभम अय्यर : खुश और स्‍वस्‍थ्‍य थे फिर क्‍या हुआ
एम पद्मनाभन भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर के इंजीनियर थे। 48 साल के प्रतिभावान वैज्ञानिक के बारे में कहा जाता है कि वह बिल्कुल स्वस्थ थे और खुश दिखने वाले शख्स थे। लेकिन, 23 फरवरी 2010 को वह रहस्यमयी तरीके से मुंबई में अपने घर के बरामदे में मृत अवस्‍था में मिले थे। उनकी लाश के पास नायलोन की रस्सी और कुछ कंडोम मिले थे। पुलिस ने शुरुआती जांच में इसे अप्राकृतिक सेक्स से जुड़ी हत्या का मामला बताया। लेकिन जब जांच आगे बढ़ी तो पुलिस अपनी बात साबित नहीं कर पाई। फोरेंसिक जांच में उनकी मौत का कारण अज्ञात बताया गया। पुलिस ने फिंगर प्रिंट्स और दूसरी तरह की जांच की, लेकिन अंत तक वह खाली हाथ ही रही और फाइल को क्लोज कर दी।

मौत की अबूझ पहेली : केके जोशी और अभीश अश्वीन
जोशी और अश्नीन देश की पहली परमाणु पनडुब्बी INS अरिहंत के संवेदनशील प्रोजेक्ट्स से जुड़े रहे हैं। अक्टूबर 2013 में विशाखापत्तनम में उनकी लाश रेलवे लाइन पर पड़ी मिली। वहां से कोई ट्रेन हीं गुजरी थी, फिर भी उनकी बॉडी ऐसे दिख रही थी, माना ट्रेन से कट गई हो। 34 साल के केके जोशी और 33 साल के अभीश अश्वीन की मौत की पोस्टमार्टम जांच में ये पता चला कि उनकी मौत जहर से हुई। बॉम्बे हाईकोर्ट में जो जनहित याचिका लगाई गई थी, उसमें कहा गया था कि केके जोश और अभीष शिवम की मौत किसी ट्रेन से नहीं हुई थी, याचिका के मुताबिक उन्हें जहर दिया गया था और रेलवे ट्रैक के पास फेंक दिया गया ताकि मौत दुर्घटना या आत्महत्या लगे। अंत में उनकी मौत एक अबूझ पहेली की तरह रह गई और एक सवाल खड़ा कर गई कि आखिर क्‍यों हमारे वैज्ञानिकों की मौत हो रही है और आखिर कौन उनकी हत्‍याएं कर रहा है।

उमंग सिंह और पार्थ प्रतिम : ये दोनों युवा वैज्ञानिक 29 दिसंबर 2009 को भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर यानी BARC के रेडिएशन एंड फोटोकेमिस्ट्री लैब में काम कर रहे थे। दोपहर बाद रहस्यमय तरीके से लगी एक आग में झुलकर दोनों की मौत हो गई। फोरेंसिक जांच रिपोर्ट के मुताबिक लैब में ऐसा कुछ नहीं था, जिसमें आग लगने का डर हो। रिपोर्ट में साफ इशारा किया गया था कि मौत के पीछे कोई साजिश है। उमंग मुंबई के रहने वाले थे, जबकि पार्थ बंगाल के।

तीन वैज्ञानिक छुट्टी पर : इन दो मौतों के मामलों में शक की ढेरों वजहें थीं। इस लैब में कुल 5 वैज्ञानिक काम करते थे, उस दिन बाकी तीन छुट्टी पर थे। उमंग और पार्थ परमाणु रिएक्टरों से जुड़े एक बेहद संवेदनशील विषय पर शोध कर रहे थे। लैब में आग बुझाने में फायर ब्रिगेड को पूरे 45 मिनट लगे थे, क्योंकि आग ऐसी थी जो बार-बार किसी चीज से भड़क रही थी। जबकि किसी सामान्य पदार्थ की आग पानी के संपर्क में आते ही बुझ जाती है। बाद में जब दोनों वैज्ञानिकों के शव निकाले गए तो वो पूरी तरह राख बन चुके थे। यह रहस्य बना रहा कि आग किस चीज की थी, जिसकी गर्मी इतनी थी

तीतस पाल : BARC में काम करने वाली इस साइंटिस्ट की उम्र सिर्फ 27 साल थी। ट्रांबे के कैंपस में चौदहवीं मंजिल पर अपने फ्लैट के वेंटिलेटर पर लटकती हुई पाई गई थी। पहली नजर में ये खुदकुशी का मामला था। उस दिन 3 मार्च 2010 की तारीख थी। तीतस पाल के पिता ने पुलिस को बताया कि उनकी बेटी कोलकाता में अपने घर से 3 मार्च को ही मुंबई पहुंची थी और सुबह दस बजे उसने ऑफिस ज्वाइन किया था। यह कैसे संभव है कि घर से हंसी-खुशी लौटी उनकी बेटी मुंबई पहुंचते ही शाम तक खुदकुशी कर ले?

उमा राव : भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर में काम कर चुकीं उमा राव ने 30 अप्रैल 2011 को कथित तौर पर खुदकुशी कर ली। पुलिस जांच में बताया गया कि वो बीमार थीं और उसके कारण डिप्रेशन में चल रही थीं। मुंबई के गोवंडी में दसवें फ्लोर पर उनके फ्लैट में पड़े शव को सबसे पहले नौकरानी ने देखा। सुसाइड नोट में डिप्रेशन को कारण बताया था। जबकि परिवार, पड़ोसियों और साथ काम करने वाले वैज्ञानिकों का कहना था कि उमा राव में डिप्रेशन के कोई लक्षण हो ही नहीं सकते।

डलिया नायक : कोलकाता के साहा इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूक्लियर फिजिक्स की सीनियर रिसर्चर डलिया नायक ने अगस्त 2009 में रहस्यमय हालात में खुदकुशी कर ली। पता चला कि उन्होंने मर्क्यूरिक क्लोराइड पी लिया था। उनकी उम्र सिर्फ 35 साल थी। डलिया की साथी वैज्ञानिक इस घटना से हैरान थीं। उन्हें भरोसा नहीं था कि डलिया के पास खुदकुशी का कोई कारण था।

तिरुमला प्रसाद टेंका : 30 साल के तिरुमला प्रसाद इंदौर के राजा रमन्ना सेंटर फॉर एडवांस्ड टेक्नोलॉजी में साइंटिस्ट थे। अप्रैल 2010 में उन्होंने खुदकुशी कर ली। पुलिस को एक सुसाइड नोट मिला, जिसमें अपने सीनियर के हाथों मानसिक तौर पर प्रताड़ित किए जाने की बात लिखी थी। सीनियर के खिलाफ केस भी हुआ, लेकिन कुछ दिन बाद मामला रफा-दफा हो गया। तिरुमला प्रसाद एक महत्वपूर्ण न्यूक्लियर प्रोजेक्ट पर काम कर रहे थे। यह सवाल उठा कि प्रताड़ना आखिर क्यों और किस तरह की थी?

मोहम्मद मुस्तफा : कलपक्कम के इंदिरा गांधी सेंटर फॉर एटॉमिक रिसर्च (IGCAR) के साइंटिफिक असिस्टेंट मोहम्मद मुस्तफा की डेडबॉडी 2012 में उनके सरकारी घर से बरामद की गई थी। पुलिस रिपोर्ट के मुताबिक मुस्तफा की हथेली की नस कई बार धारदार हथियार से काटी गई थी।

आरटीआई में क्‍या सामने आया : 2010 में आरटीआई कार्यकर्ता चेतन कोठारी ने परमाणु ऊर्जा विभाग से आरटीआई के जरिए ये जानकारी मांगी थी कि 1995 से लेकर 2010 के बीच विभाग के कितने लोगों की असामान्य मौत हुई है। आरटीआई के जवाब में कहा गया था कि परमाण ऊर्जा विभाग के कुल 32 केंद्रों में 197 संदिग्ध मौतों के मामले सामने आए।

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