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कौन हैं NDA की राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू, जानिए उनके संघर्ष की कहानी

हमें फॉलो करें कौन हैं NDA की राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू, जानिए उनके संघर्ष की कहानी
, बुधवार, 22 जून 2022 (12:35 IST)
भारत का लोकतंत्र बड़ा ही अद्भुत है, जिसने समाज के कथित सबसे नीचे तबके के नागरिकों को भी देश के सर्वोच्च पदों पर आसीन किया है। एक ऐसी व्यवस्था, जहां हर व्यक्ति को समान अधिकार हैं। देश में राष्ट्रपति चुनाव होने वाले हैं। भाजपा के नेतृत्व वाली नेशनल डेमोक्रेटिक अलाइंस (एनडीए) ने राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के रूप में झारखंड की पूर्व राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू को चुना है। राजनीतिक समीकरणों के हिसाब से सत्तारूढ़ एनडीए का पलड़ा भारी है, अगर द्रौपदी मुर्मू जीतीं, तो वे भारत की पहली दलित महिला राष्ट्रपति बनेंगी। 

ओडिशा के एक गरीब आदिवासी परिवार से आकर दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की प्रथम नागरिक बनने की दौड़ में आने का सफर द्रौपदी मुर्मू के लिए आसान नहीं रहा। उनका सामना कई रूढ़ियों व कुरीतियों से हुआ। लेकिन सतत संघर्ष के बल पर उन्होंने राजनीति में अपनी अलग पहचान बनाई। आइए जानते हैं, द्रौपदी मुर्मू के जीवन के बारे में...
 
द्रौपदी मुर्मू का जन्म 20 जून 1958 को ओडिशा के मयूरभंज जिले के बैदापोसी गांव में हुआ था। उनका ताल्लुक ओडिशा के कुसुमी ब्लॉक के उपरबेड़ा गांव के एक संथाल आदिवासी परिवार से है। उनके पिता का नाम बिरंची नारायण टुडू है। मुर्मू का विवाह श्याम चरम मुर्मू से हुआ था। द्रौपदी मुर्मू ने एक शिक्षक के रूप में अपने करियर की शुरुआत की।
 
मुर्मू का परिवार बहुत गरीब था। उन्होंने राजनीति में आने की कल्पना भी नहीं की थी। उनके ससुराल वालों ने उन्हें नौकरी करने से मना किया तो उन्होंने मुफ्त में बच्चों को पढ़ाना शुरू किया जिससे उन्हें समाजसेवा करने की तीव्र इच्छा उत्पन्न हुई।
 
3 साल के भीतर पति और 2 बेटों को खोया : मुर्मू का राजनीतिक करियर 1997 में शुरू हुआ जिसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। वे 1997 में ओडिशा के राजरंगपुर जिले में पार्षद चुनी गईं। इसी साल मुर्मू बीजेपी की ओडिशा इकाई से अनुसूचित जाति मोर्चा की उपाध्यक्ष भी बनीं। इस पद पर रहते हुए उन्होंने आदिवासी तबके के अधिकारों के लिए कई क्रांतिकारी कदम उठाए जिसकी बदौलत वर्ष 2000 में वे भाजपा की टिकट से रायरंगपुर की विधायक चुनी गईं। मुर्मू 2009 तक इस पद पर रहीं।

2009 का चुनाव हारने के बाद उन्होंने वापस गांव आने का फैसला किया। इसी साल एक सड़क दुर्घटना में उनके 1 बेटे की मौत हो गई जिससे वे कुछ महीनों के लिए डिप्रेशन में चली गईं। 2013 में उनके दूसरे बेटे की भी मौत हो गई और 2014 में उन्होंने अपने पति को भी खो दिया। इस अभूतपूर्व क्षति के बाद मुर्मू की बेटी ने उन्हें संभाला। दोनों बेटों और पति की मौत से मुर्मू को पूरी तरह टूट चुकी थीं, पर उन्होंने हिम्मत जुटाकर खुद को समाजसेवा में झोंक दिया।
 
बता दें कि राजनीति में आने से पहले वे अरविंदो इंटीग्रल एजुकेशन एंड रिसर्च सेंटर, रायरंगपुर में सहायक शिक्षक और सिंचाई विभाग में जूनियर असिस्टेंट के रूप में कार्य कर चुकी थीं। उनकी कार्यकुशलता को देखते हुए उन्हें वर्ष 2000 में ओडिशा की नवीन पटनायक सरकार द्वारा वाणिज्य एवं परिवहन मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) के रूप में चुना गया। इसके बाद 2022 में उन्होंने मत्स्य पालन एवं पशु संसाधन विकास राज्यमंत्री का कार्यभार संभाला। वे वर्ष 2013 से 2015 तक भगवा पार्टी की अनुसूचित जाति मोर्चा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य भी रहीं।
 
ओडिशा विधानसभा ने द्रौपदी मुर्मू को सर्वश्रेष्ठ विधायक के लिए 'नीलकंठ पुरस्कार' से सम्मानित किया। वर्ष 2015 में उन्हें झारखंड की 9वीं राज्यपाल के रूप में चुना गया। झारखंड हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश वीरेंद्र सिंह ने उन्हें राज्यपाल पद की शपथ दिलाई।
 
ये क्षण मेरे, आदिवासी समाज और महिलाओं के लिए ऐतिहासिक : द्रौपदी मुर्मू
 
द्रौपदी मुर्मू की बेटी इतिश्री ने बताया कि जब प्रधानमंत्री मोदी ने राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार के रूप में चुने जाने की सूचना देने के लिए मां को फोन किया तो कुछ देर तक उनके मुंह से शब्द ही नहीं निकले। बाद में उन्होंने कहा कि ये क्षण मेरे, आदिवासी समाज और महिलाओं के लिए ऐतिहासिक हैं। उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी को शुक्रिया भी कहा।

एक तीर से दो निशाने : द्रौपदी मुर्मू ने अपने पति और 2 बेटों को तब खोया, जब उनके पास कई बड़ी जिम्मेदारियां थीं। लेकिन अपार संघर्ष और इच्छाशक्ति के बल पर उन्होंने हर बाधा का डटकर सामना किया। द्रौपदी मुर्मू शुरुआत से ही भारतीय जनता पार्टी का बड़ा आदिवासी चेहरा रही हैं। उन्हें आदिवासी उत्थान की दिशा में काम करने का 20 वर्ष का अनुभव है।

उन्हें राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाकर बीजेपी ने एक तीर से दो निशाने साधे हैं। एक तो मुर्मू के जीतने से भारत में पहली बार कोई दलित महिला राष्ट्रपति बनेगी और दूसरा गुजरात, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के आगामी विधानसभा चुनावों के लिए बीजेपी का आदिवासी वोट बैंक भी मजबूत होगा।

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