क्या महाराष्ट्र में फिर करीब आएंगे शरद और अजित पवार?

वृजेन्द्रसिंह झाला
Maharashtra Assembly Elections 2024: महाराष्ट्र विधानसभा के अक्टूबर 2024 में होने वाले विधानसभा चुनाव में नए राजनीतिक समीकरण बनने के पूरे आसार हैं। क्योंकि लोकसभा चुनाव में यदि सबसे ज्यादा किसी को नुकसान हुआ है तो वह एनसीपी नेता अजित पवार हैं। उन्हें इस चुनाव मात्र एक सीट मिली है, जबकि चाचा शरद पवार की पार्टी 8 सीटें जीतने में सफल रही है। कहा जा रहा है कि चुनाव परिणाम के बाद एनडीए में भी उनकी पूछ-परख भी कम हो गई है। अजित और शरद के करीब आने की खबरों को तब बल मिला जब हाल ही में एनसीपी के स्थापना दिवस समारोह में उन्होंने चाचा शरद की जमकर तारीफ की। 
 
एनसीपी ने क्यों नहीं स्वीकार किया मंत्री पद : दरअसल, अजित एनडीए सरकार में कम से कम एक कैबिनेट मंत्री पद की उम्मीद कर रहे थे, लेकिन भाजपा ने उन्हें स्वतंत्र प्रभार वाला मंत्रालय ऑफर किया था, जिसे मंत्री पद के दावेदार प्रफुल्ल पटेल ने यह कहकर ठुकरा दिया कि वे मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार में कैबिनेट मंत्री रह चुके हैं, ऐसे में यदि वे स्वतंत्र प्रभार वाला मंत्रालय स्वीकार करते हैं तो यह उनका डिमोशन ही होगा। इसके बाद किसी भी सांसद ने एनसीपी की तरफ से मंत्री पद की शपथ नहीं ली। लोकसभा चुनाव में एनसीपी के एकमात्र उम्मीदवार सुनील तटकरे ही रायगढ़ लोकसभा सीट से चुनाव जीत पाए। 
 
कैसे दूर होगी रिश्तों की खटास : करीब तीन महीने ने बाद महाराष्ट्र में 288 विधानसभा सीटों पर चुनाव होने वाले हैं। इसके चलते राज्य में नए राजनीतिक समीकरण बनना भी तय है। चूंकि लोकसभा चुनाव ने अजित पवार को अपनी असली जमीन दिखा दी है, ऐसे में कहा जा रहा है कि अजित एक बार फिर चाचा शरद पवार के पाले में वापसी कर सकते हैं। हालांकि बारामती लोकसभा सीट पर ननद-भाभी (सुप्रिया सुले-सुनेत्रा पवार) के मुकाबले से दोनों के रिश्तों में खटास जरूर आई है। चूंकि जीत सुप्रिया की झोली में आई, इसलिए शरद की नाराजगी ज्यादा नहीं होगी।
 
विधानसभा के लिए एनसीपी ने मांगी 80 सीटें : इस बीच, अजित पवार की पार्टी एनसीपी ने विधानसभा की 80 सीटों पर दावा किया है। एनसीपी के वरिष्ठ नेता छगन भुजबल ने हाल ही में कहा कि उनकी पार्टी को एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना के बराबर सीटें मिलनी चाहिए। हालांकि इस बात की संभावना नहीं के बराबर है कि एनडीए की मुखिया भाजपा अजित खेमे को 80 सीटें देने पर सहमत हो जाए। क्योंकि पिछले चुनाव में अविभाजित एनसीपी ने 41 विधानसभा सीटें जीती थीं, जबकि भाजपा 123 सीटें जीतकर राज्य में सबसे बड़ी पार्टी बनी थी। ऐसे सीटों के बंटवारे को लेकर तनातनी की प्रबल संभावना है। 
 
अजित ने की चाचा की सराहना : इन सब संभावनाओं को देखते हुए इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि अजित एक बार फिर चाचा शरद के खेमे में आ जाएं या फिर उनके साथ मिलकर विधानसभा चुनाव लड़ें। इन अटकलों को तब बल मिला जब एनसीपी के स्थापना दिवस समारोह में अजित ने अपने चाचा शरद पवार की जमकर तारीफ की। उन्होंने शरद को अपना मार्गदर्शक बताते हुए कहा कि उन्होंने (चाचा शरद) पार्टी को खड़ा करने में अहम भूमिका निभाई है। अजित ने कहा- मैं पार्टी का नेतृत्व करने और संगठन को शक्तिशाली नेतृत्व प्रदान करने के लिए उनका आभारी हूं।
 
भाजपा के लिए शिंदे ज्यादा महत्वपूर्ण : अजित ने इशारों ही इशारों में खुद को एनडीए से अलग भी बता दिया। उन्होंने कहा कि वह एनडीए का हिस्सा हैं, लेकिन उनकी विचारधारा अलग है। अजित गुट के एनडीए से अलग होने की संभावना इसलिए भी ज्यादा है क्योंकि उनके महाराष्ट्र सरकार में शामिल होने से शिवसेना का शिंदे गुट खुद को असहज महसूस कर रहा था। भाजपा भी शिंदे और अजित पवार में से किसी एक को चुनना पड़ा तो एकनाथ शिंदे को ही तवज्जो देगी। लोकसभा चुनाव में भी शिंदे वाली शिवसेना ने 7 सीटें जीती हैं।   

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