महाराष्ट्र में जारी हाईवोल्टेज सियासी ड्रामा अब अपने क्लाइमेक्स की ओर बढ़ चला है। पांच दिन से बयानों के जरिए जारी सियासी लड़ाई अब सदन के फ्लोर टेस्ट की ओर बढ़ती दिख रही है। आज शिवसेना प्रवक्ता संजय राउत ने साफ कहा दिया है कि फ्लोर टेस्ट में पता चलेगा कि किसमें कितना दम है। वहीं एनसीपी नेता शरद पवार ने भी साफ कर दिया है सदन के फ्लोर पर शक्ति परीक्षण से ही यह तय होगा कि बहुमत किसके पास है।
वहीं शिवसेना सांसद संजय राउत ने बागी विधायकों को सीधी चेतावनी देते हुए कहा कि कोई पार्टी को हाईजैक नहीं कर सकता और न कोई पैसे के बल पर पार्टी को खरीद सकता है। संजय राउत ने साफ कहा कि बागी विधायक अपनी सदस्यता बचाए। वहीं बागी नेता एकनाथ शिंदे की ओर से आज 38 विधायकों के हस्ताक्षर वाली चिट्ठी जारी कर एक बार फिर शक्ति प्रदर्शन किया गया।
ऐसे में अब महाराष्ट्र की राजनीति फ्लोर टेस्ट पर आकर टिकती हुई दिख रही है। शिवसेना के तेवरों के बाद लगता है कि अब फ्लोर टेस्ट से ही महाराष्ट्र की राजनीति के आगे की दशा और दिशा तय होगी।
क्या है होता फ्लोर टेस्ट?-विधानसभा के अंदर होने वाले फ्लोर टेस्ट यह पता चलता है कि वर्तमान सरकार के पास बहुमत है या नहीं। जब राज्यपाल फ्लोर टेस्ट के लिए विधानसभा की बैठक आहूत करता है तो मुख्यमंत्री को बहुमत साबित करना होता है। फ्लोर टेस्ट में असफल होने की स्थिति में मुख्यमंत्री को इस्तीफा देना पड़ता है।
फ्लोर टेस्ट पर राज्यपाल को अधिकार-संविधान के अनुच्छेद 163 के तहत राज्यपाल विधानसभा का सत्र बुलाकर फ्लोर टेस्ट के लिए सरकार को कह सकते है। संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप वेबदुनिया से बातचीत में कहते हैं कि अगर राज्यपाल को लगता है कि सरकार विधानसभा में अपना बहुमत खो चुकी है तो वह मुख्यमंत्री को विधानसभा में फ्लोर टेस्ट के लिए कह सकते है। वहीं फ्लोर टेस्ट की मांग को लेकर विपक्षी दल भाजपा भी राज्यपाल के पास जा सकती है। महाराष्ट्र में जारी सियासी संकट के बीच फ्लोर टेस्ट कब होगा या होगा या नहीं होगा इसका अंतिम निर्णय राज्यपाल ही करेंगे।
फ्लोर टेस्ट में स्पीकर की भूमिका-राज्यपाल के विधानसभा सत्र बुलाने के बाद जब सदन में फ्लोर टेस्ट होता है विधानसभा के स्पीकर या डिप्टी स्पीकर की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है। फ्लोर टेस्ट के दौरान सदन के अंदर की पूरी कार्यवाही के लिए अंतिम रूप से स्पीकर ही उत्तदायी होता है।
ऐसे में जब किसी राज्य में दलबदल के कारण मौजूदा सरकार कठघरे में आती है तो स्पीकर की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण हो जाती है। दलबदल करने वाले विधायकों की अयोग्यता संबंधी प्रश्नों पर निर्णय का अधिकार विधानसभा के अध्यक्ष (स्पीकर) को है, स्पीकर नहीं होने पर डिप्टी स्पीकर इस पर अंतिम निर्णय ले सकता है। वहीं दलबदल करने वाले विधायकों की सदस्यता को लेकर हाईकोर्ट या सुप्रीमकोर्ट में याचिका लगाई जा सकती है जहां विधानसभा अध्यक्ष के निर्णय को चुनौती दी जा सकती है।।
महाराष्ट्र में फ्लोर टेस्ट के समीकरण-ऐसे में जब महाराष्ट्र फ्लोर टेस्ट की ओर बढ़ चुका है तब सदन में बहुमत का आंकडा क्या होगा इस पर सबकी नजर टिक गई है। महाराष्ट्र विधानसभा की कुल सदस्य संख्या 288 है जिसमें मौजूदा सदस्यों की संख्या 287 है। सत्तारूढ़ पार्टी शिवसेना के कुल 55 विधायक है। वहीं महाविकास अघाड़ी सरकार में शामिल एनसीपी के 53 और कांग्रेस के 44 विधायक है।
इसके अलावा सपा के 2, पीजपी के 2, बीवीए के 3, एआईएमआईएम के 2, सीपीआई का एक,एमएनस के 1 और 9 निर्दलीय विधायक है। वहीं मुख्य विपक्षी दल भाजपा के पास अपने विधायकों की संख्या 106 है। इसके साथ आरएसपी के 1, जेएसएस के 1 और 5 निर्दलीय विधायक पहले से भाजपा के साथ है।
ऐसे में जब शिवसेना के बागी नेता एकनाथ शिंदे 38 विधायकों के समर्थन होने का दावा करने के साथ अपने साथ 10 अन्य विधायकों का दावा भी कर रहे है। तब फ्लोर टेस्ट में इन विधायकों की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण हो जाती है।
फ्लोर टेस्ट पर भाजपा की खमोशी से बढ़ा सस्पेंस- महाराष्ट्र में पांच दिन से जारी सियासी खींचतना के बीच विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी भाजपा की खमोशी से सियासत का सस्पेंस बढ़ता जा रहा है। मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और बागी नेता एकनाथ शिंदे के बीच जारी शह और मात के खेल में अब तक भाजपा पूरी तरह खमोश है। एकनाथ शिंदे भले ही अपने सुपरपॉवर वाले बयानों के जरिए भाजपा के साथ अपने साथ होने का इशारा कर चुके है लेकिन भाजपा पूरी तरह खमोश है।