नई दिल्ली, जिन पांच तत्वों को जीवन का आधार माना गया है, उनमें से एक तत्व जल है। जल के बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। जल का महत्व इस बात से भी समझा जा सकता है कि दुनिया की बड़ी-बड़ी सभ्यताएं नदियों के किनारे ही विकसित हुई हैं, और प्राचीन नगर नदियों के तट पर ही बसे।
दैनिक जीवन के अलावा जल कृषि के सभी रूपों और अधिकांश औद्योगिक उत्पादन प्रक्रियाओं के लिये भी बेहद आवश्यक है। परंतु आज पूरी दुनिया जल-संकट के साए में खड़ी है। विशेषज्ञों ने जल को उन प्रमुख संसाधनों में शामिल किया है, जिन्हें भविष्य में प्रबंधित करना सबसे चुनौतीपूर्ण कार्य होगा।
सदियों से निर्मल जल का स्त्रोत बनी रहीं नदियां प्रदूषित हो रही हैं, जल संचयन तंत्र बिगड़ रहा है, और भू-जल स्तर लगातार घट रहा है। इन सभी समस्याओं से दुनिया को अवगत कराने एवं सबको जागरूक करने के लिए 1993 से प्रतिवर्ष 22 मार्च को विश्व जल दिवस मनाया जाता है।
पर्यावरण तथा विकास पर केंद्रित रियो डि जेनेरियो के संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में वर्ष 1992 में विश्व जल दिवस की पहल की गई। वर्ष 1993 में 22 मार्च को पहली बार विश्व जल दिवस का आयोजन किया गया। इसके बाद से प्रतिवर्ष लोगों के बीच जल का महत्व, आवश्यकता और संरक्षण के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिये 22 मार्च को “विश्व जल दिवस” मनाया जाता है। इस वर्ष विश्व जल दिवस की विषयवस्तु वैल्यूइंग वाटर है।
धरती के क्षेत्रफल का लगभग 70 प्रतिशत भाग जल से भरा हुआ है। परंतु, पीने योग्य जल मात्र तीन प्रतिशत है। इसमें से भी मात्र एक प्रतिशत मीठे जल का ही वास्तव में हम उपयोग कर पाते हैं। लेकिन, मानव अपने स्वास्थ्य, सुविधा, दिखावा व विलासिता में अमूल्य जल की बर्बादी करने से नहीं चूकता।
पानी का इस्तेमाल करते हुए हम पानी की बचत के बारे में जरा भी नहीं सोचते, जिसके परिणामस्वरूप अधिकांश जगहों पर जल संकट की स्थिति पैदा हो चुकी है। लेकिन, जल संकट का यह एकमात्र कारण नहीं है। इसके लिए बढ़ती जनसंख्या, उद्योगों से निकलने वाले रसायन, जल संसाधनों का दुरुपयोग, पर्यावरण की क्षति तथा जल प्रबंधन की दुर्व्यवस्था है।
तापमान में जैसे-जैसे वृद्धि हो रही है, भारत के कई हिस्सों में पानी की समस्या विकराल रूप धारण कर रही है। प्रतिवर्ष यह समस्या पहले के मुकाबले और बढ़ती जा रही है। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार वैश्विक जल उपयोग पिछले 100 वर्षों में छह गुणा बढ़ गया है, और बढ़ती आबादी, आर्थिक विकास तथा खपत के तरीकों में बदलाव के कारण यह प्रतिवर्ष लगभग एक प्रतिशत की दर से लगातार बढ़ रहा है।
पानी की अनियमित और अनिश्चित आपूर्ति के साथ-साथ, जलवायु परिवर्तन से वर्तमान में पानी की कमी वाले इलाकों की स्थिति विकराल रूप ले चुकी है। ऐसी स्थिति में, जल- संरक्षण एकमात्र उपाय है। जल संरक्षण का अर्थ पानी की बर्बादी और उसे प्रदूषित होने से रोकना है।
आज जल संरक्षण के प्रति पूरा विश्व एकजुट हो रहा है। हर देश अपने अनुरूप जल संरक्षण के प्रति कार्य कर रहा है। भारत भी जल संरक्षण के प्रति प्रतिबद्ध है। इसके अंतर्गत देश के सभी नागरिकों को स्वच्छ जल की उपलब्धता संचित करने के लिये भारत ने जल शक्ति मंत्रालय की स्थापना की है। भू-जल पानी का एक महत्वपूर्ण स्रोत है, और पृथ्वी पर जल की अधिकतर आपूर्ति भू-जल पर ही निर्भर है।
वर्षा के जल का संरक्षण करके गिरते भू-जल के स्तर को रोका जा सकता है। इन सब के साथ-साथ जल का अनावश्यक दोहन भी रोकना होगा। इसके साथ-साथ, नदियों को दूषित होने से रोकना भी हम सभी का दायित्व है।
यदि आज हमने जल संरक्षण के महत्व को नहीं समझा, तो वह दिन दूर नहीं, जब भविष्य की पीढ़ियों के लिए धरती पर भीषण जल-संकट खड़ा हो जाएगा। आज विभिन्न राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं अलग-अलग मंचों पर जल संरक्षण के महत्व को रेखांकित करने और लोगों को इसके प्रति जागरूक बनाने की दिशा में काम कर रही हैं। भारत सरकार द्वारा भी इस दिशा में योजनाबद्ध ढंग से काम किया जा रहा है।
आज आवश्यकता इस बात की है कि विश्व जल दिवस की मूल भावना को अपने दैनिक जीवन में उतारकर हर व्यक्ति, हर दिन जल संरक्षण का यथासंभव प्रयास करे। (इंडिया साइंस वायर)