उत्तराखंड में जलप्रलय ने उत्तराखंड में पर्यटन उद्योग की भी कमर तोड़ डाली है। तीर्थाटन तो पूरी तरह बरबाद ही हो गया है। जब से इस तबाही की खबरें आईं हैं विश्व प्रसिद्ध तीर्थ हरिद्वार में मंदिरों में सन्नाटा है। ऋषिकेश के आश्रम सूने हैं।
पर्यटन के लिए मशहूर पर्यटन स्थल मसूरी, नैनीताल, रानीखेत, कौसानी, देहरादून, पौड़ी, खिर्सू, कालसी एवं चकराता सभी खामोशी ओढ़े हैं। जो क्षेत्र इन दिनों पर्यटकों की भीड़ से गुलजार रहते थे, वे पूरी तरह स्तब्ध दिखाई दे रहे है।
मई और जून महीना यहां पर्यटन व्यवसायियों एवं पर्यटन पर आश्रित छुटपुट लोगों के लिए पूरे सालभर की कमाई का धंधा करवाता रहा है, लेकिन इस बार जून में आई तबाही ने इन पर्यटन स्थलों में भी खामोशी ला दी है। एक अनुमान के अनुसार लगभग दो लाख से अधिक लोगों की रोजी-रोटी को इस आपदा ने संकट में डाल दिया है। उत्तराखंड में यात्रियों को लाने वाले स्टेशन सूने पड़े हैं।
अकेले तीर्थाटन के खत्म होने से लगभग चार करोड़ रुपए का प्रतिदिन नुकसान होने की बातें कही जा रही है। पर्यटन के प्रमुख स्थल नैनीताल, मसूरी में होटलों को मिली बुकिंग भी अचानक निरस्त हो गई है। तीर्थयात्रा मार्गों में तो होटल एवं रेस्तराओं के बंद होने की खबरें आ रही हैं। पर्यटन, तीर्थाटन एवं परिवहन व्यवसाय ही नहीं खाद्य प्रसंस्करण व्यवसाय भी इससे पूरी तरह ठप पड़ गया है। पर्यटकों के आने से गुलजार रहने वाली खाद्य प्रसंस्करण यूनिटों को अपने कर्मचारियों का वेतन निकालने का टोटा पड़ रहा है।
सूने पड़े हैं होटल, और... आगे पढ़ें....
हरिद्वार में तीर्थ पुरोहित सभा भी इस तबाही के बाद हरिद्वार में श्रद्धालुओं की आमद के रुक जाने से चिंतित है। हालांकि हरिद्वार, ऋषिकेश एवं देहरादून समेत आसपास के शहर आजकल उत्तराखंड के केदारनाथ समेत चारधामों में आई विभीषिका में लापता परिजनों की खोज में लगे लोगों को ही चर्चाओं में व्यस्त दिखते हैं। तथापि इस क्षेत्र में तीर्थों की पुरोहिताई में लगे हजारों लोगों की रोटी-रोजी का संकट भी एक समस्या बनकर सामने आई है। होटलों एवं रेस्तराओं में लगी मैनपॉवर पूरी तरह बेकार हो गई है। परिवहन व्यवसाय में लगे लोगों को भी बुकिंग मिलनी बंद हो गई है।
इस सबसे इतर राज्य की छोटी बड़ी तमाम सड़कों संपर्क मार्गों के अवरुद्ध होने से ग्रामीण काश्तकारों द्वारा उगाए जाने वाले सेव, फल, खुबानी, आड़ू, आम, लीची जैसी फसलें भी पूरी तरह से सड़ने की कगार पर हैं। एक तरफ पूरी तरह बरबाद होकर लोग आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं, वहीं दूसरी ओर आपदाग्रस्त क्षेत्रों के लिए केंद्र ने नॉन सब्सिडी का कैरोसिन भेजा है। जिसकी कीमत प्रतिलीटर 50 से 55 रुपए आ रही है। ऐसे में पूरे इंफ्रास्ट्रक्चर तबाह होने के बाद अंधियारे में रहने को विवश उत्तराखंड के तबाहग्रस्त ग्रामीणों को घर के चिराग को जलाने को इतना महंगा कैरोसिन खरीदना कैसे संभव होगा। यह एक प्रश्न खड़ा हो गया है।
प्रदेश की आपदा ने यहां की उपलब्ध लगभग पांच हजार सड़कों में से अधिकांश को प्रभावित कर दिया है। इस कारण नई स्वीकृत मार्गों को भी संकट आन खड़ा हो गया है। राज्य के मुख्य सचिव क्षतिग्रस्त मार्गों को ठीक करने में तीन माह का समय लगने की बात कर रहे हैं, लेकिन इतने वक्त का यहां के लोगों को जीवन निर्वाह कैसे करना पड़ेगा इसकी मात्र कल्पना की जा सकती है।