कम्युनिस्ट नेता रहे महेंद्र कर्मा ने कांग्रेस में आने के बाद सलवा जुडूम आंदोलन की शुरुआत की। इस अभियान में ग्रामीणों की फोर्स तैयार करना था, जो माओवादियों के खिलाफ लड़ सके। ग्रामीण आदिवासियों को हथियार देकर उन्हें स्पेशल पुलिस ऑफिसर (एसपीओ) बनाया गया।
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इसके अंतर्गत उन्हें 1500 से 3000 रुपए तक भत्ता भी दिया जाता। सलवा जुडूम में शामिल ग्रामीणों ने माओवादियों को गांवों में शरण और राशन देने से इंकार कर दिया। 2005 में छत्तीसगढ़ में बीजेपी की सरकार थी। रमन सिंह मुख्यमंत्री थे। रमन सिंह को सलवा जुडूम अभियान अच्छा लगा।
विरोधी पार्टी की सरकार होने के बाद भी रमन सिंह ने कांग्रेस के इस अभियान को अपनाया। इस अभियान को सफलता भी मिली। आदिवासियों की मदद से माओवादियों की जंगलों में चल रही विरोधी गतिविधियों और ठिकानों की जानकारी सुरक्षा एजेंसियों को मिली।
आगे पढ़ें, सलवा जुडूम पर किसने उठाए प्रश्नचिन्ह....
माओवादी 'सलवा जुडूम' से काफी नाराज थे। मानवाधिकार कार्यकताओं ने सलवा जुडूम को खून संघर्ष बढ़ाने वाला अभियान बताया। उन्होंने इसके औचित्य पर प्रश्नचिन्ह उठाए।
उनका कहना था कि मासूम गांववालों को सरकार माओवादियों और नक्सलियों के खिलाफ हथियार बनाकर लड़ रही है।2011 में मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा और उसने सलवा जुडूम को अवैध घोषित किया।
माओवादियों ने भी मासूम गांववालों को जनता की अदालत लगाकर मौत के घाट उतारा। सलवा जुडूम आपसी रंजिश का बदला लेने का हथियार बनाने लगे। इसकी आड़ में अवैध उगाही की खबरें भी आईं। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी सलवा जुडूम को वापस नहीं दिया गया। (एजेंसियां)