पूंजी प्रवाह को नियंत्रित करने का इरादा नहीं

Webdunia
शुक्रवार, 16 अगस्त 2013 (20:48 IST)
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नई दिल्ली। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने स्पष्ट किया है कि पूंजी प्रवाह को नियंत्रित करने का उसका कोई इरादा नहीं है और इस दिशा में कोई पहल नहीं की जा रही है। केंद्रीय बैंक द्वारा देश से बाहर जाने वाले पूंजी प्रवाह को कम करने की कोशिश से शेयर बाजार में भय का माहौल बन गया।

रिजर्व बैंक के उच्चस्तरीय सूत्रों ने सेंसेक्स में शुक्रवार को 770 अंक की भारी गिरावट और रपए के नए सर्वकालिक निम्न स्तर तक गिरने के लिए विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) की पूंजी पर नियंत्रण लगाए जाने संबंधी अफवाह को जिम्मेदार ठहराया। सूत्रों ने बताया कि पूंजी नियंत्रण की किसी पहल पर विचार नहीं हो रहा है।

उन्होंने बताया कि भारत में एफआईआई के धन पर नियंत्रण का कोई इतिहास नहीं है और बुधवार को पूंजी के देश से बाहर प्रवाह संबंधी जिन उपायों की घोषणा की गई है वह किसी भी प्रकार से नियंत्रण व्यवस्था को वापस लाने की कोशिश नहीं है।

सूत्रों ने बताया कि कंपनियों को बिना मंजूरी के विदेशों में उनकी नेटवर्थ की समक्ष 400 प्रतिशत के बजाय अब केवल 100 प्रतिशत निवेश की अनुमति दिए जाने का मतलब यह नहीं है कि कंपनियों पहले तय सीमा के अनुरूप निवेश नहीं कर सकती हैं।

उन्होंने बताया कि कंपनियों अभी भी विदेशी में अपने निवल मूल्य के मुकाबले 400 प्रतिशत तक निवेश कर सकती हैं लेकिन इसमें एक शर्त जोड़ी गई है कि बिना मंजूरी 100 प्रतिशत निवेश किया जा सकेगा और इससे अधिक निवेश के लिए मंजूरी लेनी होगी।

निवेश सीमा कम करने के बाद अब सालाना 75,000 डॉलर विदेश भेजे जा सकेंगे। पहले यह सीमा 2,00,000 डॉलर थी। रिजर्व बैंक ने सिर्फ 2007 में एफआईआई धन प्रवाह का प्रबंधन में जो उदारता दिखाई थी उसे वापस लिया गया है।

सूत्रों ने बताया कि उदार धन प्रेषण का जो आखिरी कदम उठाया गया था हमने केवल उसे ही वापस लिया है, केवल इतना ही किया है।

सूत्रों ने बताया कि भारत में सुधार के पूरे इतिहास में एक बार भी एफआईआई पर मूल धन या लाभांश स्वदेश ले जाने पर नियंत्रण या प्रतिबंध नहीं लगाया गया है। फेमा अधिनियम के तहत ऐसे धन को वापस ले जाने से रोकना अवैध है।

आरबीआई और सरकार के जुलाई से नकदी की आपूर्ति कम करने, मुद्रा डेरिवेटिव पर प्रतिबंध और सोने के आयात पर नियंत्रण लगाने जैसे कदम रुपए को नित नए न्यूनतम स्तर पर पहुंचने से रोकने में नाकाम रहे हैं। सरकार के चालू खाते के घाटे के अंतर को पूरा करने के लिए विदेशी पूंजी जुटाने के लिए भरसक कोशिश करने के बीच स्थिति और गंभीर हो गई।

रुपया पिछले 2 साल में 28 प्रतिशत लुढ़क गया है और यह 1991 के बाद की सबसे तेज गिरावट है जबकि सरकार को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से ऋण के लिए सोने के भंडार को गिरवी रखना पड़ा था। (भाषा)

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