सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मां कश्चिद् दुःख भाग्भवेत्।।
अर्थात सभी सुखी रहें, निरोगी रहें किसी को भी कष्ट न हो।
परहित सरस धरम नहिं भाई।
परपीड़ा सम नहीं अधमाई।।
अर्थात परोपकार के समान कोई दूसरा धर्म नहीं है और परपीड़ा अर्थात दूसरों को कष्ट पहुंचाने से बड़ा कोई पाप नहीं है।
जासु राज प्रिय प्रजा दुखारी।
सो नृप अवसि नरक अधिकारी।।
हम कौन थे, क्या हो गए अब और क्या होंगे अभी।
आओ विचारें बैठकर, ये समस्याएं सभी।