चाहे कुछ भी है इतना तो स्पष्ट है कि कश्मीर में मौत का तांडव अभी जारी है और इसके लिए और कोई नहीं बल्कि पाकिस्तान जिम्मेदार है जो अपनी हार का बदला लेने के लिए अप्रत्यक्ष युद्ध छेड़े हुए है भारत के विरुद्ध।
मृतकों की संख्या और तबाही पैमाना हो अगर आतंकवाद के स्तर को नापने का तो धरती के स्वर्ग कश्मीर में आतंकवाद अभी अपने पूरे यौवन पर है। यह अक्षरशः सत्य है कि कश्मीर में मृतकों की संख्या में कोई परिवर्तन नहीं आया है। यह बात अलग है कि मौतों के समीकरणों में अंतर अवश्य आया है।
अगर सरकारी आंकड़ों को ही स्वीकार करें तो औसतन इन सालों के दौरान प्रतिदिन 7 लोगों की दर से कश्मीर में मौतें हुई हैं। इन मौतों में यह बात अलग है कि मृतकों में आतंकी कितने थे और नागरिक कितने।
इस सच को तो स्वीकार करना ही पड़ता है कि मरने वाले सभी हिन्दुस्तानी थे और उनकी रगों में हिन्दुस्तानी खून था जिसे इसलिए कश्मीर में गिरना पड़ा, क्योंकि पाकिस्तान को अपनी 3 प्रत्यक्ष लड़ाइयों में हुई हार का बदला लेना था। नतीजतन आज आतंकवाद से त्रस्त कश्मीर में आपको अधिकतर बूढ़े और औरतें ही दिखेंगी, क्योंकि नवयुवक या तो आतंकियों की गोलियों का शिकार हो चुके हैं या फिर सुरक्षाबलों की गोलियों के।
कश्मीर में 26 सालों से जारी पाक समर्थक आतंकवाद फिलहाल 50,000 से अधिक लोगों को लील चुका है। ये आधिकारिक आंकड़े हैं। गैरसरकारी आंकड़े दोगुने तो नहीं लेकिन डेढ़ गुणा अवश्य हैं इससे।
अर्थात 1 लाख लोग इस आतंकवादरूपी अप्रत्यक्ष युद्ध में अपनी जान गंवा चुके हैं जिसे पाकिस्तान ने भारत के साथ होने वाली 3 जंगों में हुई अपनी हार का बदला लेने के लिए छेड़ा हुआ है।