इसमें कोई शक नहीं कि युवाओं को यौन शिक्षा दी जाना चाहिए, लेकिन हमें यह भी ध्यान रखना होगा कि किस उम्र के लड़के-लड़कियों को यह शिक्षा दी जाए। एड्स की आड़ में इन दिनों देश में यौन शिक्षा की जबरदस्त तरीके से वकालत की जा रही है, लेकिन संयम को महत्व देने वाले भारतीय समाज में कहीं यौन शिक्षा के बहाने 'यौन उच्छृंखलता' को बढ़ावा न मिलने लगे।
अनुशंसित यौन शिक्षा पाठ्यक्रम पर गौर करें तो लगता है कि इस प्रकार की शिक्षा छात्र-छात्राओं में 'यौन उत्सुकता' को ही बढ़ावा देगी। और कोई आश्चर्य नहीं कि इससे व्यभिचार को भी बढ़ावा मिले और निकट भविष्य में इस तरह की शिक्षा के असर के चलते पाश्चात्य समाज की विकृतियाँ भारतीय समाज में भी देखने को मिलें।
एनसीईआरटी, नेशनल एड्स कंट्रोल आर्गेनाइजेशन, यूनिसेफ और यूनेस्को द्वारा तैयार 'लर्निंग फॉर लाइफ' एवं दिल्ली राज्य एड्स कंट्रोल सोसाइटी द्वारा जारी 'हैंडबुक फॉर टीचर्स' के अंशों पर नजर दौड़ाएँ तो इन्हीं बातों को बल मिलता है। हैंडबुक के मुताबिक बार-बार हस्तमैथुन करने से कोई भी शारीरिक रोग नहीं होते, हस्तमैथुन सामान्य प्रक्रिया है, अत: इससे थकान या कमजोरी नहीं आती।
एमजीएम मेडिकल कॉलेज, इंदौर के सहायक प्राध्यापक डॉ. एसके वानखेड़े के अनुसार स्वप्नदोष एक प्राकृतिक क्रिया होने से निरापद होता है, मगर हस्तमैथुन तो पूरी तरह अप्राकृतिक है और बार-बार हस्तमैथुन करने से निश्चित रूप से शारीरिक शक्ति का क्षय होता है। साथ ही मनोवैज्ञानिक रूप से एक स्थायी आत्मग्लानि का भाव मस्तिष्क में अंगद के पैर की तरह जड़ जमा लेता है, जिसके कारण साइकोलॉजिकल इम्पोटेन्सी (मनोवैज्ञानिक नपुंसकता) होने की संभावना रहती है।
भारत में नपुंसकता के 75 प्रतिशत से अधिक मामले साइकोलॉजिकल ही होते हैं। शारीरिक दोष या कमी के कारण तो सिर्फ 20-25 प्रतिशत व्यक्ति ही नपुंसक होते हैं। अभी तक ऐसी कोई प्रामाणिक और व्यवस्थित रिसर्च नहीं हुई है, जिससे यह दावा किया जा सके कि बार-बार हस्तमैथुन से किसी भी प्रकार की शारीरिक हानि नहीं होती है।
एड्स की आड़ में बच्चों को क्या सिखाया जाएगा, इन बातों से सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है। इतना ही नहीं, इस तरह की शिक्षा से समलैंगिक संबंधों को भी बढ़ावा मिलेगा। पाठ्यक्रम के अंश को पढ़ने से तो यही प्रतीत होता है। इसमें लिखा है कि समलैंगिकता व्यक्तिगत मामला है और इसे नकारात्मक रूप से नहीं देखा जाना चाहिए।
एआईएमएसएसएस, हैदराबाद की महासचिव एचजी जयलक्ष्मी का इस संबंध में मानना है कि यौन शिक्षा से बच्चे चारित्रिक रूप से कमजोर हो जाएँगे। बेंगलुरु विवि के पूर्व उपकुलपति डॉ. एमएस थिमप्पा के मुताबिक इस तरह की शिक्षा भीषण आपदा को निमंत्रण है।
आइए! पाठ्यक्रम के कुछ अन्य अंशों पर भी गौर करें- *शिक्षक बताएँगे कि कंडोम कैसे लगाया जाता है और इसके द्वारा पितृत्व एवं मातृत्व को कैसे रोका जा सकता है। *मुख-मैथुन क्या होता है? *मुख मैथुन करेंगे तो क्या एड्स होगा? *यौन संबंध प्रेम जताने के कई तरीकों में से एक है। *प्रगाढ़ चुंबन से तब तक कोई खतरा नहीं है, जबकि दोनों साथियों के मुँह में रक्तस्राव, दरार, छाले, घाव या खराश न हो। *मुख मैथुन से एचआईवी संक्रमण का खतरा कम रहता है, मगर मुँह में छाले या दरार हों तो खतरा बढ़ जाता है। *यदि कोई किशोरी किसी लड़के की अंडरवियर पहन ले तो क्या वह गर्भवती हो जाएगी?
अब आप ही बताएँ कि क्या विद्यार्थियों में इस तरह की यौन शिक्षा से 'स्वस्थ' समाज का निर्माण होगा या फिर सामाजिक विकृतियों को बढ़ावा मिलेगा?