शहीद-ए-आजम भगत सिंह 'शहीद' नहीं

Webdunia
शनिवार, 17 अगस्त 2013 (12:36 IST)
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नई दिल्ली। आजादी के लिए अपनी जान की आहूति देने वाले शहीद-ए-आजम भगत सिंह को भारत सरकार शहीद नहीं मानती है। इसका खुलासा आरटीआई एक्ट के तहत हुआ है।

पिताजी के नाम भगतसिंह का पत्र
बलिदान से पहले साथियों को अंतिम पत्र
बलिदान से पहले साथियों को अंतिम पत्र
23 मार्च 1931 का वह मार्मिक मंजर
भगत सिंह की फांसी पर तत्कालीन प्रतिक्रिया
याद आते हैं आज भी भगतसिंह
गृह मंत्रालय से आरटीआई के तहत मांगी गई जानकारी में इसका खुलासा हुआ है। आरटीआई के तहत जानकारी में गृह मंत्रालय ने कहा है कि ऐसा कोई रिकॉर्ड नहीं है जिससे भगत सिंह को शहीद माना जाए।

देखें : शहीदे आजम भगतसिंह पर राजशेखर व्यास की विशेष प्रस्तुति इंकलाब : भगत सिंह पर आधारित वृत्तचित् र-1


गृह मंत्रालय के इस जानकारी से भगत सिंह का परिवार नाराज है। परिवार ने इसके लिए कैंपेन लांच करने की तैयारी कर ली है। भगत सिंह को शहीद का दर्जा दिलाने के लिए भगत सिंह का परिवार राष्ट्रपति से भी मिलेगा। अगले पेज पर... भगतसिंह से जुड़ा एक मार्मिक प्रसंग....

शहीद-ए-आजम भगत सिंह ने अपनी मां की ममता से ज्यादा तवज्जो भारत मां के प्रति अपने प्रेम को दी थी। कहा जाता है कि भगतसिंह को फांसी की सजा की आशंका के चलते उनकी मां विद्यावती ने उनके जीवन की रक्षा के लिए एक गुरुद्वारे में अखंड पाठ कराया था। इस पर पाठ करने वाले ग्रंथी ने प्रार्थना करते हुए कहा, ‘गुरु साहब... मां चाहती है कि उसके बेटे की जिन्दगी बच जाए, लेकिन बेटा देश के लिए कुर्बान हो जाना चाहता है। मैंने दोनों पक्ष आपके सामने रख दिए हैं जो ठीक लगे, मान लेना।’

इंकलाब : भगत सिंह पर आधारित वृत्तचित्र 2


शहीद-ए-आजम के पौत्र (भतीजे बाबरसिंह संघू के पुत्र) यादविंदरसिंह ने परिवार के बड़े सदस्यों के संस्मरणों के आधार पर बताया कि विद्यावती जब भगतसिंह के जीवन की रक्षा के लिए अरदास करने गुरुद्वारे गईं तो भगतसिंह ने उनसे कहा था कि वे देश पर बलिदान हो जाने की अपने बेटे की ख्वाहिश का सम्मान करें। और जब मां जेल में मिलीं... तो क्या कहा भगतसिंह ने... पढ़ें अगले पेज पर....

जब विद्यावती भगतसिंह से मिलने जेल पहुंचीं, तो शहीद-ए-आजम ने उनसे पूछा कि ग्रंथी ने क्या कहा? इस पर मां ने सारी बात बताई और भगत सिंह ने इसके जवाब में कहा, ‘मां आपके गुरु साहिबान भी यही चाहते हैं कि मैं देश पर कुर्बान हो जाऊं क्योंकि इससे बड़ा कोई और पुण्य नहीं है। देश के लिए मर जाना आपकी ममता से कहीं बड़ा है।

इंकलाब : भगत सिंह पर आधारित वृत्तचित्र 3


भगतसिंह चाहते थे कि जब उन्हें फांसी हो तो उनकी पार्थिव देह उनका छोटा भाई कुलबीर घर ले जाए और उनकी मां उस समय जेल में हरगिज नहीं आएं। हालांकि, भगत सिंह की यह चाहत पूरी नहीं हो सकी, क्योंकि अंग्रेजों ने उन्हें तय वक्त से एक दिन पहले ही फांसी पर लटका दिया और टुकड़े-टुकड़े कर उनके शव को सतलुज नदी के किनारे जला दिया। आप मत आना मां... पढ़ें आगे मार्मिक दास्तान....

भगत सिंह ने अपनी मां से कहा था, ‘मां मेरा शव लेने आप नहीं आना और कुलबीर को भेज देना, क्योंकि यदि आप आएंगी तो आप रो पड़ेंगी और मैं नहीं चाहता कि लोग यह कहें कि भगत सिंह की मां रो रही है।’

पंजाब के लायलपुर जिले (वर्तमान में पाकिस्तान का फैसलाबाद) के बांगा गांव में 27 सितंबर 1907 को जन्मे शहीद-ए-आजम भगत सिंह जेल में मिलने के लिए आने वाली अपनी मां से अक्सर कहा करते थे कि वह रोएं नहीं, क्योंकि इससे देश के लिए उनके बेटे द्वारा किए जा रहे बलिदान का महत्व कम होगा। कैसे पड़ा भगतसिंह नाम... पढ़ें अगले पेज पर...

परिवार के अनुसार, शहीद ए आजम का नाम ‘भागां वाला’ (किस्मत वाला) होने के कारण भगत सिंह पड़ा। उन्हें यह नाम उनकी दादी जयकौर ने दिया था, क्योंकि जिस दिन उनका जन्म हुआ उसी दिन उनके पिता किशन सिंह और चाचा अजित सिंह जेल से छूट कर आए थे।

करतार सिंह सराबा को अपना आदर्श मानने वाले भगत सिंह की जिन्दगी में 13 और 23 तारीख का बहुत बड़ा महत्व रहा। 13 अप्रैल 1919 को जलियांवाला बाग नरसंहार ने उन्हें क्रांतिकारी बनाने का काम किया।

उनके परिवार के सदस्यों के मुताबिक भगत सिंह द्वारा लिखे गए ज्यादातर पत्रों पर 13 या 23 तारीख अंकित है। 23 मार्च 1931 को 23 साल की उम्र में वह देश के लिए फांसी के फंदे पर झूल गए। (भाषा)
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