दिल्ली में खासकर मध्यम और उच्च मध्यमवर्गीय सिख इलाकों को योजनाबद्ध तरीके से निशाना बनाया गया। राजधानी के लाजपत नगर, जंगपुरा, डिफेंस कॉलोनी, फ्रेंड्स कॉलोनी, महारानी बाग, पटेल नगर, सफदरजंग एनक्लेव, पंजाबी बाग आदि कॉलोनियों में हिंसा का तांडव रचा गया। गुरुद्वारों, दुकानों, घरों को लूट लिया गया और उसके बाद उन्हें आग के हवाले कर दिया गया।
इतना ही नहीं मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र समेत अन्य राज्यों में हिंसा का नंगा नाच खेला गया। जिन राज्यों में हिंसा भड़की वहां ज्यादातर में कांग्रेस की सरकारें थीं। पूरे देश में फैले इन दंगों में सैकड़ों सिख महिलाओं के साथ बलात्कार किया गया। युवक, वृद्ध, महिलाओं पर ट्रेन, बस और अन्य स्थानों पर खुलेआम हमले किए गए। पुलिस सिर्फ तमाशबीन बनी रही। कई मामलों में तो यह भी आरोप हैं कि पुलिस ने खुद दंगाइयों की मदद की
आजादी के बाद देश के सबसे बड़े इस नरसंहार (हालांकि अमेरिका ने हाल ही में इन सिखों की मौत को नरसंहार मानने से इनकार कर दिया है) के पीड़ित सिख आज भी न्याय के इंतजार में दर-दर भटकने को मजबूर हैं।
इंदिरा गांधी के हत्यारों को फांसी, लेकिन... : इंदिरा गांधी के हत्यारे अंगरक्षकों- बेअंतसिंह, सतवंतसिंह और एक अन्य (केहरसिंह) को फांसी पर लटका दिया गया। ...लेकिन हजारों सिखों की मौत के जिम्मेदार लोगों पर आज भी कानूनी शिकंजा नहीं कसा गया है।
क्या कहा था राजीव गांधी ने? : श्रीमती गांधी की मौत के बाद उनके बेटे राजीव गांधी देश के प्रधानमंत्री बने। उन्होंने एक बयान दिया था, जो कहीं न कहीं सिख विरोधी दंगों को जस्टीफाई ही करता है। उन्होंने कहा था- जब एक बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती हिलती ही है। सवाल यह भी है कि राजीव गांधी के बयान के बाद प्रशासन और पुलिस ने दंगों के मामले में लीपापोती नहीं शुरू कर दी होगी।