मुलहठी के मीठे उपयोग

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छोटे बच्चों और बच्चों के लिए आमतौर पर उपयोग में लाई जाने वाली वनौषधियों में एक है- मुलहठी, इसे जेठीमध, मधुक, मधुयस्टि भी कहते हैं। अँग्रेजी में इसे लिकोरिस कहते हैं।

  मुलहठी स्वाद में मधुर, शीतल, पचने में भारी, स्निग्ध और शरीर को बल देने वाली होती है। इन गुणों के कारण यह बढ़े हुए तीनों दोषों को शांत करती है।      
मुलहठी की एक से डेढ़ मीटर ऊँची बेल होती है और इमली जैसे छोटे-छोटे पत्ते होते हैं। इन बेलों पर बैंगनी रंग के फूल लगते हैं इसकी जड़ें जमीन के अंदर फैली होती हैं, जिनका औषधि के लिए उपयोग किया जाता है।

मुलहठी स्वाद में मधुर, शीतल, पचने में भारी, स्निग्ध और शरीर को बल देने वाली होती है। इन गुणों के कारण यह बढ़े हुए तीनों दोषों को शांत करती है।

* खाँसी-जुकाम : कफ को कम करने के लिए मुलहठी का ज्यादातर उपयोग किया जाता है। बढ़े हुए कफ से गला, नाक, छाती में जलन हो जाने जैसी अनुभूति होती है, तब मुलहठी को शहद में मिलाकर चाटने से बहुत फायदा होता है।

* बड़ों के लिए मुलहठी के चूर्ण का इस्तेमाल कर सकते हैं। शिशुओं के लिए मुलहठी के जड़ को पत्थर पर पानी के साथ 6-7 बार घिसकर शहद या दूध में मिलाकर दिया जा सकता है। यह स्वाद में मधुर होती है अतः सभी बच्चे बिना झिझक के इसे चाट लेते हैं।

* मुलहठी बुद्धि को भी तेज करती है। अतः छोटे बच्चों के लिए इसका उपयोग नियमित रूप से कर सकते हैं।

* यह हल्की रेचक होती है। अतः पाचन के विकारों में इसके चूर्ण को इस्तेमाल किया जाता है। विशेषतः छोटे बच्चों को जब कब्ज होती है, तब हल्के रेच के रूप में इसका उपयोग किया जा सकता है। छोटे शिशु कई बार शाम को रोते हैं। पेट में गैस के कारण उन्हें शाम के वक्त पेट में दर्द होता है। उस समय मुलहठी को पत्थर पर घिसकर पानी या दूध के साथ पिलाने से पेट दर्द शांत हो जाता है।

* मुलहठी की मधुरता से पित्त का नाश होता है। आमाशय की बढ़ी हुई अम्लता एवं अम्लपित्त जैसी व्याधियों में मुलहठी काफी उपयुक्त सिद्ध होती है। आमाशय के अंदर हुए व्रण (अलसर) को मिटाने के लिए एवं पित्तवृद्धि को शांत करने के लि मुलहठी का उपयोग होता है। मुलहठी को मिलाकर पकाए गए घी का प्रयोग करने से अलसर मिटता है।

यह कफ को आसानी से निकालता है। अतः खाँसी, दमा, टीबी एवं स्वरभेद (आवाज बदल जाना) आदि फेफड़ों की बीमारियों में बहुत लाभदायक है। कफ के निकल जाने से इन रोगों के साथ बुखार भी कम हो जाता है। इसके लिए मुलहठी का एक छोटा टुकड़ा मुँह में रखकर चबाने से भी फायदा होता है।

मुलहठी के अन्य उपयोगी नुस्खे

  त्वचा के जख्म में जलन और पीड़ा हो रही हो तो जौ के आटे में मुलहठी और तिल का चूर्ण तथा घी मिलाकर पेस्ट जैसा बना लें। इसे जख्म पर लेप करने से घाव शीघ्र भर जाता है।      
* पेशाब की जलन मुलहठी के सेवन से कम होती है और पेशाब की रुकावट दूर होती है।

* मुलहठी शरीर के भीतर एवं बाहरी जख्मों को जल्द भरती है, अतः जहाँ पर जख्म से रक्तस्राव होता है, उस पर मुलहठी का उपयोग फायदेमंद होता है। केवल मुलहठी के चूर्ण के सेवन से गुदा से होने वाला रक्तस्राव, वह चाहे जिस वजह से हो, बंद हो जाता है। जख्मों पर भी मुलहठी का लेप करें। इससे रक्तस्राव रुक जाता है और जख्म ठीक हो जाता है।

* त्वचा रोगों में भी मुलहठी लाभकारी है। मुलहठी का लेप बनाकर इस्तेमाल किया जाता है। इससे त्वचा का रंग निखर आता है। त्वचा की जलन और सूजन दूर होती है। यौवन को बनाए रखने के लिए इसका भीतरी एवं बाहरी प्रयोग काफी लाभदायक होता है।

* गुदा से रक्तस्राव होने पर मुलहठी आधा ग्राम, काली मिट्टी एक ग्राम और शँखभस्म 250 मि.ग्रा. एक साथ मिलाकर शहद और चावल के धोवन के साथ दिन में चार बार सेवन करने से लाभ होता है।

* मुलहठी 1/2 ग्राम, पिपलामूल 1/2 ग्राम में गुड़, शहद और घी को स्वाद के अनुसार मिलाकर 3-4 बार सेवन करने से खाँसी से राहत मिलती है।

* मुलहठी, चंदन और अनंतमूल समभाग का चूर्ण 20 ग्राम लेकर इसे 20 ग्राम गाय के घी और 320 ग्राम दूध में पकाएँ। 10-15 मिनट के बाद छान लें और किसी शीशी में रख लें। इस सिद्ध घी को हल्का गर्म करके दोनों नाक में इसकी 2-2 बूँदें दिन में 2-4 बार डालें।

* आँखों की जलन दूर करने के लिए मुलहठी और पद्माख को जल के साथ घिसकर आँखों के ऊपर लेप करें।

* मुलहठी, काला तिल, आँवला और पद्मकेशर के चूर्ण में शहद मिलाकर उसका लेप सिर पर करने से बाल मजबूत और काले होते हैं।

* त्वचा के जख्म में जलन और पीड़ा हो रही हो तो जौ के आटे में मुलहठी और तिल का चूर्ण तथा घी मिलाकर पेस्ट जैसा बना लें। इसे जख्म पर लेप करने से घाव शीघ्र भर जाता है।

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