अम्बर कस्तूर्यादि वटी

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शीतकाल शरीर के लिए बहुत ही अनुकूल और हितकारी होता है, पाचन शक्ति बहुत प्रबल रहती है। पौष्टिक आहार और बलपुष्टिदायक वाजीकारक नुस्खे का सेवन इसी ऋतु में किया जा सकता है।

विवाहित पुरुषों को इस काल में पौष्टिक और वाजीकारक नुस्खे का सेवन अवश्य करना चाहिए। इसके लिए अति उत्तम वाजीकारक एवं बल वीर्यवर्द्धक आयुर्वेदिक योग 'अम्बर कस्तूर्यादि वटी' का परिचय प्रस्तुत है-

आयुर्वेद ने वाजीकारक एवं रसायन द्रव्यों की बहुत प्रशंसा की है। जो द्रव्य या औषधि, व्याधि और जरा यानी बुढ़ापे का विध्वंस यानी नाश करे, उसे रसायन कहा है। व्यक्तिगत अच्छा स्वास्थ्य और अच्छा आचरण ही रसायन है। रसायन की यह परिभाषा सर्वश्रेष्ठ है।
विवाहित पुरुषों को इस काल में पौष्टिक और वाजीकारक नुस्खे का सेवन अवश्य करना चाहिए। इसके लिए अति उत्तम वाजीकारक एवं बल वीर्यवर्द्धक आयुर्वेदिक योग 'अम्बर कस्तूर्यादि वटी' का परिचय प्रस्तुत है।


पाए जाने वाले घटक द्रव्य : अंबर, बंग भस्म, लौह भस्म 100 पुटी, अभ्रक भस्म, सहस्र पुटी, जायफल, छोटी इलायची के दाने, चौंसठ प्रहरी पीपल, लौंग, माणिक्य पिष्टी, केसर, जावित्री, अकरकरा, सब 6-6 ग्राम। स्वर्ण भस्म, पूर्णचन्द्रोदय रस, कस्तूरी, मोती पिष्टी, भीमसेनी कपूर, सब 3-3 ग्राम। शुद्ध कुचला चांदी भस्म 100 पुटी, सब 4-4 ग्राम। स्वर्ण बंग 8 ग्राम।

सेवन : इसकी एक गोली शहद या दूध के साथ या खमीरे गावज ुवा ँ के साथ दिन में दो या तीन बार लें।

लाभ : यह मस्तिष्क को शक्ति देता है, वात नाड़ियों और संज्ञावाहिनियों को स्फूर्ति और चेतना प्रदान करता है।

* दिल के रोगियों को इससे लाभ होता है। शरीर के सभी अंगों के विकार नष्ट करता है, यह योग विभिन्न प्रकृति के घटक द्रव्यों से युक्त होने के कारण पौष्टिक, वाजीकारक, रसायन, बल्य, रक्त प्रसादक, कीटाणुनाशक, विष शामक व योगवाही है।
* इसका उपयोग क्षय, कफजन्य व्याधियों और शुक्र की निर्बलता को दूर करने के लिए अत्यंत लाभदायक है। बुढ़ापा और बीमारियों को दूर रख यह शरीर को स्वस्थ व बलवान बनाए रखता है।
* किसी भी प्रकार से उत्पन्न हुई इन्द्रिय शिथिलता को यह रसायन दूर कर देता है। इन्द्रिय का मतलब शरीर के समस्त अंगों से है। यह योग इसी नाम से बना बनाया बाजार में मिलता है।
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