एरण्ड

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एरण्ड, जिसे अरण्ड, अरण्डी, अण्डी आदि और बोलचाल की भाषा में अण्डउआ भी कहते हैं, यह गा ँव के बाहर आमतौर पर पाया जाता है। इसके पत्ते पाँच चौड़ी फाँक वाले होते हैं। लाल व बैंगनी रंग के फूल वाले इस पेड़ में का ँटेदार हरे आवरण चढ़े फल लगते हैं। पेड़ लाली लिए हो तो रक्त एरण्ड और सफेद हो तो श्वेत एरण्ड कहलाता है।

विभिन्न भाषाओं में नाम : संस्कृत- एरण्ड। हिन्दी- एरण्ड, अण्डी। मराठी- एरण्ड। गुजराती- एरंडो। बंगाली- भेरेंडा। तेलुगू- आमुडामू। कन्नड़- हरलु। तमिल- आमणक्कम। मलयालम- आवणक्का। फारसी- बेदंजीर। इंग्लिश- केस्टर ऑइल प्लाण्ट। लैटिन- रिसिनस कम्युनिस।

गुण : लाल व सफेद दोनों प्रकार के एरण्ड मधुर, गर्म, भारी होते हैं, शोथ, कमर, वस्ति स्थान तथा सिर की पीड़ा, उदर रोग, ज्वर, श्वास, कफ, अफरा, खाँसी, कुष्ठ और गठिया रोग के नाशक हैं।

इसके बीज अत्यंत उष्णवीर्य, गुल्म, शूल, वायु, यकृत व प्लीहा के रोग, उदर विकार व बवासीर को दूर करने वाले और अत्यंत अग्निदीपक होते हैं। इसका तेल सौम्य विचेरक (हलका जुलाब) का काम करता है।

उपयोग : एरण्ड के पत्ते, मूल, बीज और तेल उपयोग में लिए जाते हैं। इसका तेल इतना निरापद जुलाब है कि इसे बाल, वृद्ध, गर्भवती स्त्री और नवप्रसूता आदि भी बेखटके सेवन कर सकते हैं।

जुलाब : अरण्डी के तेल को मुख्यतः जुलाब लेने के लिए उपयोग में लिया जाता है। एक कप दूध में 2 चम्मच तेल डालकर सोते समय
एरण्ड, जिसे अरण्ड, अरण्डी, अण्डी आदि और बोलचाल की भाषा में अण्डउआ भी कहते हैं, यह गाँव के बाहर आमतौर पर पाया जाता है। इसके पत्ते पाँच चौड़ी फाँक वाले होते हैं
पीना चाहिए। बच्चों को आधा चम्मच दें। गोद के शिशु को 8-10 बूँद दें। असर न होने पर इसकी मात्रा दूसरे दिन बढ़ाकर लेना चाहिए। इस जुलाब से कमजोर व्यक्ति, रोगी या गर्भवती स्त्री को कोई खतरा नहीं रहता।

आँव : आँव में चिकना, चीठा मल निकलता है और मल विर्सजन के समय पेट में हल्‍क ी- हल्‍क ी मरोड़ भी होती है। आँव का जल्दी इलाज न हो तो यही आगे चलकर आमातिसार, आमवात, सन्धिवात, अमीबायोसिस आदि रोगों को उत्पन्न कर देती है।

रात को एक गिलास दूध में आधा चम्मच पिसी सोंठ डालकर खूब उबालें फिर उतारकर ठण्डा करके इसमें 2 चम्मच केस्टर ऑइल डालकर सोते समय पिएँ। 2-3 दिन यह प्रयोग करने पर पेट की सारी आँव मल के साथ निकल जाती है।

शिथिल स्तन : स्तनों की शिथिलता दूर करने के लिए एरण्ड के पत्तों को सिरके में पीसकर स्तनों पर गाढ़ा लेप करने से कुछ ही दिनों में स्तनों का ढीलापन दूर हो जाता है।

बवासीर : इसके हरे पत्ते पीसकर लुगदी बनाकर गुदा पर रखकर बाँधने और सोते समय केस्टर ऑइल दूध में पीने से कुछ दिन में ही बवासीर रोग ठीक हो जाता है।

अण्डवृद्धि : एरण्ड की जड़ को सिरके में कूट-पीसकर महीने लेप बना कर गर्म करें, कुनकुना गर्म अण्डकोषों पर लेप करें। इस उपाय से अण्डकोषों की सूजन उतर जाती है।
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