Dharma Sangrah

ॐ जयंती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी

पं. सुरेन्द्र बिल्लौरे
ॐ खड्गं चक्रगदेषुचापपरिघात्र्छूलं भुशुण्डीं शिर:
शङ्खं संदधतीं करैस्त्रिनयनां सर्वांगभूषावृताम्।
नीलाश्म धुतिमास्यपाददशकां सेवे महाकालिकां
यामस्तौव्स्वपिते ह्वरौ कमलजो हन्तुं मधुंकैटभम्।।
 
भगवती को अनेक रूपों में पूजा जाता है। भगवती की आराधना करना परम भक्तों को ध्यान करके इस प्रकार नमस्कार करें। उसके बाद अपना पाठ प्रारंभ करें।
 
भगवान विष्णु के शयन के पश्चात मधु और कैटभ को मारने के लिए कमलजन्घा ब्रह्माजी ने जिन देवीश्री का स्तवन किया था, उन महाकाली देवी का मैं स्मरण करता हूँ। वे अपने हाथों में खड़्‍ग, चक्र, गदा, धनुष-बाण, परिध, शूल, भुशुण्डि, मस्तक और शंग धारण करती हैं। उनके तीन नेत्र हैं। वे समस्त अंगों में दिव्य आभूषणों से विभूषित हैं। उनके शरीर की कांति नीलमणि के समाना है तथा वे दस मुख और दस पैरों से युक्त है।
 
माँ के नौ दिनों में अनेक रूप पूजे जाते हैं। जैसे पहले नौ रूप बताए गए हैं, ये नौ मूर्तियों अर्थात अवतारों के रूप में हैं। प्रथम दिवस में प्रथम रूप और इसको क्रम से रखते हुए मनुष्य ने नौ दिवस तक प्रत्येक रूप का पूजन करना चाहिए। इसके अलावा भी भगवती के कई रूप हैं।
 
ॐ जयंती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु‍ते।
 
जयंती, मंगला, काली, भद्रकाली, कपालिनी, दुर्गा, क्षमा, शिवा धात्री और स्वधा- इन नामों से प्रसिद्ध जगदंबे। आपको मेरा नमस्कार है।
 
1. जयंती सर्वोत्कर्षेण वर्तते इति ‘जयंती’-सबसे उत्कृष्ट एवं विजयशालिनी देवी जयंती हैं।
 
2. मंगंल जननमरणादिरूपं सर्पणं भक्तानां लाति गृहणाति या सा मंगला मोक्षप्रदा-जो अपने भक्तों को जन्म-मरण आदि संसार-बंधन से दूर करती है, उन मोक्षदायिनी मंगलदेवी का नाम मंगला है।
 
3. कलयति भक्षयति प्रलयकाले सर्वभ् इति काली- जो प्रलयकाल में संपूर्ण सृष्टि को अपना ग्रास बना लेती है, वह काली है।
 
4. भद्रं मंगलं सुखं वा कलयति स्वीकरोति भक्तेभ्योदातुम् इति भद्रकाली सुखप्रदा-जो अपने भक्तों को देने के लिए ही भद्र सुख या मंगल स्वीकार करती है, वह भद्रकाली है।

5. जिन्होंने हाथ में कपाल तथा गले में मुण्डों की माला धारण कर रखी है, वह कपालिनी है।
 
6. दु:खेन अष्टड्गयोगकर्मोपासनारूपेण क्लेशेन गम्यते प्राप्तते या- सा दुर्गा- जो अष्टांगयोग, कर्म एवं उपासना रूप दु:साध्य से प्राप्त है, वे जगदंबा ‘दुर्गा’ है।
 
7. क्षमते सहते भक्तानाम् अन्येषां वा सर्वानपराघशान् जननीत्वेनातिशय-करुणामयस्वभावदिति क्षमा- संपूर्ण जगत् की जननी होने से अत्यंत करुणामय स्वभाव होने के कारण (क्योंकि माँ करुणामय होती है।) जो भक्तों को एवं दूसरों के भी अपराध क्षमा करती हैं, ऐसी देवी का नाम ही क्षमा है।
 
8. जिस प्रकार नाम वैसे ही भगवती का कार्य है। सबका कल्याण (शिव) करने वाली जगदम्बा को शिवा कहते हैं।
 
9. संपूर्ण प्रंपञ्च धारण करने वाली भगवती का नाम धात्री है।
 
10. स्वाहा रूप में (भक्तों से) यज्ञ भाग ग्रहण करके देवताओं का पोषण करने वाली देवी स्वाहा है।
 
11. श्राद्ध और तर्पण को स्वीकार करके पितरों का पोषण करने वाली भगवती स्वधा है।
 
इस प्रकार अनेक रूपों में भगवती भक्तों की मनोकामना को पूर्ण करती हैं। मनुष्य ने उनकी आराधना अनेक प्रकार से करना चाहिए। भगवती को बारम्बार नमस्कार करना चाहिए।
 
नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नम:।
नम: प्रकृत्यै भद्रायै नियता: प्रणता: स्मताम्।।
 
देवी को नमस्कार है, महादेवी को नमस्कार है। महादेवी शिवा को सर्वदा नमस्कार है। प्रकृति एवं भद्रा को मेरा प्रणाम है। हम लोग नियमपूर्वक जगदम्बा को नमस्कार करते हैं।
 
भगवती देवी को कई रूपों में नमस्कार करना चाहिए। देवी सूक्तम् के अनुसार- भगवती विष्णु माया, श्रद्धा, चेतना बुद्धि, निद्रा, क्षुदा, छाया, शक्ति, तृष्णा, क्षमा जाति, शांति, श्रद्धा कांति लक्ष्मी, वृत्ति, स्मृति, दया, तुष्टि माता ऐसे अनेक रूपों में जो प्राणियों में स्थित है, उस देवी को बार-बार नमस्कार है।
 
या देवी सर्वभुतेषु मातृरूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै।। नमस्तस्यै।। नमस्तस्यै नमो नम:।।
 
इति शुभम्

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