नवरात्रि य ानी युवाओं का पर्व। ढोल के ताल पर डा ंडियों को घ ुमाने का पर्व। नौ दिन तक सिर्फ मौज ही मौज, मस्ती ही मस्ती। इसी मस्ती में कभी-कभी युवा कुछ ऎसी गलतियाँ कर लेते हैं जिसका खामियाजा न सिर्फ उनके परिवार को बल्कि पूरे समाज को भुगतना पड़ता है। नौ दिन तक साथ-साथ खेलते, घूमते और झूमते हुए इन युवाओ के दिल कब एक-दूसरे के करीब आ जाते हैं वह खुद भी नहीं जान पाते।
अगर उनमें सच्चा प्यार हो तब तक तो बात ठीक है लेकिन प्यार के नाम पर अपने साथी से छेड़खानी करना और सेक्स की स्वतंत्रता लेना आज आम बात हो गई है। परिणाम हमारे सामने ही है। गुजरात की बात करते हैं जहाँ गरबा उत्सव का ज्यादा प्रचलन है। पिछले पाँच साल के आँकडों पर नजर डालें तो आप जान जाएँगे कि नवरात्रि समाप्ति के बाद लड़कियों के द्वारा गर्भपात के मामलों में यहाँ 10 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई है। अब तो गायनोकोलोजिस्ट और सेक्सोलोजिस्ट भी यह बात मानने लगे हैं। यही हाल पूरे देश में है। आखिर इन सबके पीछे कौन दोषी है? लड़के, लड़कियाँ, माता-पिता या फिर गरबा आयोजक?
दोषी कोई एक पक्ष नहीं- कहते हैं कि कभी एक हाथ से ताली नहीं बजती। सिर्फ लड़कों को दोष देना उचित नहीं है। आजकल की युवतियाँ भी अन्य युवतियों की अपेक्षा ज्यादा सुंदर देखने के लिए नवरात्रि के दौरान उत्तेजक परिधान पहनती है। जिससे किसी भी युवक का दिल फिसल सकता है। माँ-बाप तो इसी भ्रम में रहते हैं कि उनकी संतान गरबा खेलने गई है। वह भला कैसे जानें कि जिन्हें माता के मंडप में होना चाहिए वह या तो किसी लव-गार्डन के घोर अंधेरे में झाड़ियों के पीछे प्रेमालाप कर रहे है या किसी एकांत में प्रेम का रास खेल रहे है। कामुकता के आवेश में अपने आपको भूल कर जाने-अनजाने में ऎसा कृत्य कर रहे हैं जिसे हमारा समाज शादी से पहले मंजूरी नहीं देता।
गर्भनिरोधक उत्पादों के प्रति जागरुकता- एक समय ऎसा भी था जब युवतियाँ शादी से पहले गर्भधारण के नाम से घबराती थी। अपनी इस अनचाही भूल से परिवार का नाम बदनाम न हो इसलिए कुछ युवतियाँ आत्महत्या भी कर लेती थी। जिनमे थोड़ी बहुत हिम्मत होती थी वह छुप-छुपाकर अपने माता-पिता या फिर अपनी करीबी सहेली के साथ गायनोकोलोजिस्ट के पास जाकर गर्भपात करवा लेती थी।
ND
कुछ डॉक्टर भी रुपए कमाने के लालच में कोख में पल रहे उस शिशु को जन्म लेने से पहले ही मौत के घाट उतार दिया करते थे। लेकिन आज परिस्थितियाँ बदल चुकी हैं। आज के युवाओं को ऎसी किसी भी बात का अब डर नहीं रहा। 'आई-पील', 'ईसीटू' और 'पील-72' जैसी गर्भनिरोधक गोलियाँ आज हर केमिस्ट के पास उपलब्ध है। जिसके बारे में युवकों की तुलना युवतियाँ ज्यादा जानती है। युवक भी अपनी जेब में रूमाल रखे ना रखे लेकिन नवरात्रि के दिनों में 'कन्डोम' रखना नहीं भूलते।
माता-पिता की लापरवाही- वैसे तो यह नियम है कि नवरात्रि के दौरान रात के बारह बजे के बाद तमाम आयोजनों की पूर्णाहूति हो जाती है। कुछ आयोजक इस नियम का अनुसरण भी करते हैं और बारह बजे के बाद गरबा खत्म कर देते हैं इसके बावजूद कुछ लड़के-लड़कियाँ तड़के अपने घर पहुँचते है। माँ-बाप कभी भी यह पूछने की जरुरत नहीं समझते कि रात के बारह बजे के बाद उनकी संतान कहाँ और किसके साथ थी।
आयोजकों का दोषपूर्ण रवैया- गरबा आयोजक भी उसमें इतने ही कसूरवार है जितने माता-पिता। कुछ संचालक नियमों को कुड़ेदान में फेंककर पूरी रात गरब खिलवाते है। इसी का फायदा लेकर युवक-युवतियाँ रात में कुछ पल के लिए वहाँ से रफ्फूचक्कर हो जाते हैं और अनैतिक कार्य करने के बाद वापस भीड़ में शामिल हो जाते हैं। अगर कार्यक्रम जल्दी खत्म हो जाए तो माता-पिता भी उनके साथ आ सकते है और उन्हें लेकर घर जा सकते हैं।
पुलिस भी है जिम्मेदार- अगर पुलिस नौ दिन तक पूरी निष्ठा और वफादारी से शहर के लव-गार्डन, होटल, गेस्ट हाउस और बिना चहल-पहल वाले स्थानों पर देखरेख करें तो इन युवाओ को इस तरह के अश्लील हरकतें करते रोका जा सकता है। लेकिन अफसोस कुछ रुपयों के लालच में ड्यूटी पर तैनात पुलिसकर्मी खुद उन्हें ऎसा करने में सहयोग देते हैं।
नवरात्रि तो माँ शक्ति की आराधना पर्व है। यह भक्ति का पर्व है फिर भोग-विलास क्यों? अगर आपकी भी कोई संतान हो तो आप इसी पल चौकन्ने हो जाए कहीं नवरात्रि के दौरान वह भी जोश में होश खो कर कोई ऎसा कृत्य तो नहीं करने जा रहे जिसकी वजह से आपको अपने आपसे भी शर्मिंदा होना पड़े?