॥ भवानीस्तुति ॥

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आनन्दमन्थरपुरन्दरमुक्तमाल्यं मौलौ हठेन निहितं महिषासुरस्य ।
पादाम्बुजं भवतु वो विजयाय मंजु-मंजीरशिंजितमनोहरमम्बिकायाः ॥1॥

ब्रह्मादयोऽपि यदपांगतरंगभंग्या सृष्टि स्थिति-प्रलयकारणतां व्रजन्ति ।
लावण्यवारिनिधिवी चिपरिप्लुतायै तस्यै नमोऽस्तु सततं हरवल्लभायै ॥2॥

पौलस्त्यपीनभुजसम्पदुदस्यमानकैलाससम्भ्रमविलोलदृशः प्रियायाः ।
श्रेयांसिवोदिशतुनिहनुतकोपचिह्नमालिंगनोत्पुलकभासितमिन्दुमौलेः ॥3॥

दिश्यान्महासुरशिरः सरसीप्सितानि प्रेंखन्नखावलिमयूखमृणालनालम्‌ ।
चण्डयाश्चलच्चटुलनूपुरचंचरीकझांकारहारि चरणाम्बुरुहद्वयं वः ॥4॥

॥ इति भवानी स्तुति संपूर्णा ॥

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