Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia

आज के शुभ मुहूर्त

(प्रतिपदा तिथि)
  • तिथि- पौष शुक्ल प्रतिपदा
  • शुभ समय-10:46 से 1:55, 3:30 5:05 तक
  • व्रत/मुहूर्त-बैरवा जयंती
  • राहुकाल- दोप. 3:00 से 4:30 बजे तक
webdunia
Advertiesment

नवरात्रि की 10 पौराणिक बातें जो जानना है बहुत जरूरी

हमें फॉलो करें नवरात्रि की 10 पौराणिक बातें जो जानना है बहुत जरूरी

अनिरुद्ध जोशी

कोरोना काल के दौरान 17 अक्टूबर 2020 से शारदीय नवरात्रि का पर्व प्रारंभ होने जा रहा है जो 25 अक्टूबर 2020 तक चलेगा। 26 अक्टूबर को विजयादशमी और दशहरा है। इसके 20 दिन बाद दीपावली का पर्व मनाया जाएगा। नवरात्रि पर्व पर नौ दिन उपवास रखकर माता की आराधना की जाती है। आओ जानते हैं इस पर्व के बारे में 10 पौराणिक बातें।
 
 
1. कौन है नवदुर्गा : शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चन्द्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री। उक्त माताओं के संबंध में अलग-अलग मत मिलते हैं। कुछ इन्हें माता अम्बिका का ही आध्यात्मिक रूप मानते हैं, तो कुछ यह सभी माता पार्वती का रूप ही मानते हैं। पर्वतराज हिमालय की पुत्री होने के कारण उन्हें शैलपुत्री कहा जाता है। ब्रह्मचारिणी अर्थात जब उन्होंने तपश्चर्या द्वारा शिव को पाया था। चन्द्रघंटा अर्थात जिनके मस्तक पर चन्द्र के आकार का तिलक है। उदर से अंड तक वे अपने भीतर ब्रह्मांड को समेटे हुए हैं इसीलिए कूष्‍मांडा कहलाती हैं। उनके पुत्र कार्तिकेय का नाम स्कंद भी है इसीलिए वे स्कंद की माता कहलाती हैं। यज्ञ की अग्नि में भस्म होने के बाद महर्षि कात्यायन की तपस्या से प्रसन्न होकर उन्होंने उनके यहां पुत्री रूप में जन्म लिया था इसीलिए वे कात्यायनी कहलाती हैं। कहते हैं कि कात्यायनी ने ही महिषासुर का वध किया था इसलिए उन्हें महिषासुरमर्दिनी भी कहते हैं। इनका एक नाम तुलजा भवानी भी है। मां पार्वती देवी काल अर्थात हर तरह के संकट का नाश करने वाली हैं इसीलिए कालरात्रि कहलाती हैं। माता का वर्ण पूर्णत: गौर अर्थात गौरा (श्वेत) है इसीलिए वे महागौरी कहलाती हैं। जो भक्त पूर्णत: उन्हीं के प्रति समर्पित रहता है उसे वे हर प्रकार की सिद्धि दे देती हैं इसीलिए उन्हें सिद्धिदात्री कहा जाता है।
 
2. क्यों मनाते हैं नवरात्रि : इसके पीछे दो कारण है पहला यह कि माता दुर्गा का महिषासुर से 9 दिनों तक युद्ध चला था और 10वें दिन उन्होंने उसे असुर का वध किया था, इसलिए नवरात्रि के बाद विजयादशमी का उत्सव मनाया जाता है बाद में राम द्वारा इसी दिन रावण का वध करने के कारण इसी दिन दशहरा भी मनाए जाने का प्रचलन प्रारंभ हुआ। दूसरा कारण मान्यता पर आधारित है कि माता ने नौ माह तक कटरा (वैष्णो देवी) की गुफा में तप किया था और हनुमानजी ने गुफा के बाहर पहरा दिया था। बाद में जब हनुमानजी का भैरवनाथ से युद्ध हुआ तो अंत में माता ने गुफा के बाहर निकलकर भैरवनाथ का वध कर दिया था।
 
3.वर्ष में 4 बार आती है नवरात्रि : साल में चार नवरात्रि होती है। चार में दो गुप्त नवरात्रि और दो सामान्य होती है। सामान्य में पहली नवरात्रि चैत्र माह में आती है जबकि दूसरी अश्विन माह में आती है। चैत्र माह की नवरात्रि को बड़ी नवरात्रि और अश्विन माह की नवरात्रि को छोटी या शारदीय नवरात्रि कहते हैं। आषाढ और माघ मास में गुप्त नवरात्रि आती है। गुप्त नवरात्रि तांत्रिक साधनाओं के लिए होती है जबकि सामान्य नवरात्रि शक्ति की साधना के लिए।
 
4. नवरात्रि के 9 दिन ही क्यों : दरअसल इन नौ दिनों में प्रकृति में विशेष प्रकार का परिवर्तन होता है और ऐसे समय हमारी आंतरिक चेतना और शरीर में भी परिर्वत होता है। प्रकृति और शरीर में स्थित शक्ति को समझने से ही शक्ति की आराधना का भी महत्व समझ में आता है। असल में चैत्र और आश्विन के नवरात्रि का समय ऋतु परिवर्तन का समय है। ऋतु-प्रकृति का हमारे जीवन, चिंतन एवं धर्म में बहुत महत्वपूर्ण स्थान रहा है। इसीलिए हमारे ऋषि-मुनियों ने बहुत सोच-विचार कर सर्दी और गर्मी की इन दोनों महत्वपूर्ण ऋतुओं के मिलन या संधिकाल को नवरात्रि का नाम दिया। यदि आप उक्त नौ दिनों अर्थात साल के 18 दिनों में अन्य का त्याग कर भक्ति करते हैं तो आपका शरीर और मन पूरे वर्ष स्वस्थ और निश्चिंत रहता है।
 
5.साधना का समय : अंकों में नौ अंक पूर्ण होता है। नौ के बाद कोई अंक नहीं होता है। ग्रहों में नौ ग्रहों को महत्वपूर्ण माना जाता है। फिर साधना भी नौ दिन की ही उपयुक्त मानी गई है। किसी भी मनुष्य के शरीर में सात चक्र होते हैं जो जागृत होने पर मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करते हैं। नवरात्रि के नौ दिनों में से 7 दिन तो चक्रों को जागृत करने की साधना की जाती है। 8वें दिन शक्ति को पूजा जाता है। नौंवा दिन शक्ति की सिद्धि का होता है। शक्ति की सिद्धि यानि हमारे भीतर शक्ति जागृत होती है। अगर सप्तचक्रों के अनुसार देखा जाए तो यह दिन कुंडलिनी जागरण का माना जाता है। इसीलिए इन नौ दिनों को हिन्दू धर्म ने माता के नौ रूपों से जोड़ा है। शक्ति के इन नौ रूपों को ही मुख्य रूप से पूजा जाता है। ये नौ रूप हैं- शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा देवी, कूष्मांडा देवी, स्कंद माता, कात्यायनी, मां काली, महागौरी और सिद्धिदात्री। अंत में सिद्धि और मोक्ष ही प्राप्त होता है।
 
इसी तरह हमारे शरीर में 9 छिद्र हैं। दो आंख, दो कान, नाक के दो छिद्र, दो गुप्तांग और एक मुंह। उक्त नौ अंगों को पवित्र और शुद्ध करेंगे तो मन निर्मल होगा और छठी इंद्री को जाग्रत करेगा। नींद में यह सभी इंद्रियां या छिद्र लुप्त होकर बस मन ही जाग्रत रहता है। (वर्ष की 36 नवरात्रियों में उपवास रखने से अंग-प्रत्यंगों की पूरी तरह से भीतरी सफाई हो जाती है।)
 
6.पूर्ण होती है मनोकामना : पुराणों के अनुसार मान्यता है कि उक्त नौ दिनों में जो व्यक्ति अन्न का पूर्ण त्याग कर माता की भक्ति या ध्यान करता है उसकी सभी तरह की मनोकामनापूर्ण हो जाती है। या, वह जो भी संकल्प लेकर नौ दिन साधना करता है उसका यह संकल्प पूर्ण हो जाता है। इस दौरान कठिन साधना का ही नियम है। मन से कुछ लोग नियम बनाकर व्रत या उपवास करते हैं, जो कि अनुचित है। जैसे से कुछ लोग चप्पल छोड़ देने हैं, कुछ लोग बस सिर्फ खिचड़ी ही खाते हैं जो कि अनुचित है। शास्त्र सम्मत व्रत ही उचित होते हैं।
 
7. नवशक्ति और नवधा भक्ति : माता पार्वती, शंकरजी से प्रश्न करती हैं कि "नवरात्र किसे कहते हैं!" शंकरजी उन्हें प्रेमपूर्वक समझाते हैं- नव शक्तिभि: संयुक्त नवरात्रं तदुच्यते, एकैक देव-देवेशि! नवधा परितिष्ठता। अर्थात् नवरात्र नवशक्तियों से संयुक्त है। इसकी प्रत्येक तिथि को एक-एक शक्ति के पूजन का विधान है।
 
8.रात्रि का महत्व : नवरात्र शब्द से 'नव अहोरात्रों (विशेष रात्रियां) का बोध' होता है। 'रात्रि' शब्द सिद्धि का प्रतीक माना जाता है। भारत के प्राचीन ऋषि-मुनियों ने रात्रि को दिन की अपेक्षा अधिक महत्व दिया है। यही कारण है कि दीपावली, होलिका, शिवरात्रि और नवरात्र आदि उत्सवों को रात में ही मनाने की परंपरा है। यदि, रात्रि का कोई विशेष रहस्य न होता तो ऐसे उत्सवों को रात्रि न कह कर दिन ही कहा जाता। जैसे- नवदिन या शिवदिन, परंतु हम ऐसा नहीं कहते हैं। शैव और शक्ति से जुड़े धर्म में रात्रि का महत्व है तो वैष्णव धर्म में दिन का। इसीलिए इन रात्रियों में सिद्धि और साधना की जाती है। (इन रात्रियों में किए गए शुभ संकल्प सिद्ध होते हैं।)
 
9. अलग अलग हैं देवियां : अलग अलग देवियां : देवियों में त्रिदेवी, नवदुर्गा, दशमहाविद्या और चौसठ योगिनियों का समूह है। आदि शक्ति अम्बिका सर्वोच्च है और उसी के कई रूप हैं। सती, पार्वती, उमा और काली माता भगवान शंकर की पत्नियां हैं। (अम्बिका ने ही दुर्गमासुर का वध किया था इसीलिए उन्हें दुर्गा माता कहा जाता है।) प्रत्येक देवी को उनके वाहन, भु्जा और अस्त्र-शस्त्र से पहचाना जाता है। जैसे अष्टभुजाधारी देवी दुर्गा और कात्यायनी सिंह पर सवार हैं तो माता पार्वती, चन्द्रघंटा और कुष्मांडा शेर पर विराजमान हैं। शैलपुत्री और महागौरी वृषभ पर, कालरात्रि गधे पर और सिद्धिदात्री कमल पर विराजमान हैं। (इसी तरह सभी देवियों की अलग अलग सवारी हैं।)
 
10.नौ देवियों के नौ भोग : शैलपुत्री कुट्टू और हरड़, ब्रह्मचारिणी दूध-दही और ब्राह्मी, चन्द्रघंटा चौलाई और चन्दुसूर, कूष्मांडा पेठा, स्कंदमाता श्यामक चावल और अलसी, कात्यायनी हरी तरकारी और मोइया, कालरात्रि कालीमिर्च, तुलसी और नागदौन, महागौरी साबूदाना तुलसी, सिद्धिदात्री आंवला और शतावरी।
 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

A Letter to Maa Durga : नवरात्रि में एक चिट्ठी मां दुर्गा के नाम