नवरात्रि : महाष्टमी और महानवमी का महत्व

पं. अशोक पँवार 'मयंक'
महागौरी -


 
देवी का आठवां रूप मां महागौरी है। इनका अष्टमी के दिन पूजन का विधान है। इनकी पूजा सारा संसार करता है। पूजन करने से समस्त पापों का क्षय होकर कांति बढ़ती है, सुख में वृद्धि होती है, शत्रु शमन होता है।
 
नवमी के दिन सिद्धिदायिनी मां यानी सिद्धियों को देने वाली सिद्धिदात्री का पूजन-अर्चन करने का विधान है।
 
सिद्धिदात्री-


 
मां सिद्धिदात्री की आराधना नवरात्र की नवमी के दिन की जाती है। इनकी आराधना से जातक को अणिमा (विराट रूप), लघिमा (सबसे लघु रूप), प्राप्ति प्राकाम्य, महिमा, ईशित्व, सर्वकामावसांयिता, दूर-श्रवण, परकाया प्रवेश, वाकसिद्धि, अमरत्व सहित समस्त सिद्धियां व नवनिधियों की प्राप्ति होती हैं।
 
आज के युग में इतना कठिन तप तो कोई नहीं कर सकता, लेकिन अपनी शक्तिनुसार जप, तप, पूजा- अर्चना कर व्यक्ति कुछ तो मां की कृपा का पात्र बनता ही है। वाक् सिद्धि व शत्रु नाश हेतु भी मंत्र है। इस विधि-विधान से पूजन-जाप करने से निश्चित फल मिलता है। यह मंत्र प्रबल शत्रुनाशक है। इसका जप करने से कैसा भी शत्रु हो, वह आपका बाल भी बांका नहीं कर सकता।
 
ॐ ह्री बगुलामुखी सर्व दृष्टानां वाचं मुखं पदं स्तंभय, 
जिह्वाम् किलय बुद्धि विनाशक ह्री ॐ स्वाहा।
 
वाक् सिद्धि उसे कहते हैं, जो हम कहें वही सफल हों। आदिकाल में ऋषि-मुनियों द्वारा जो कह दिया जाता था वह फलीभूत भी होता था। इसे ही वाक् सिद्धि कहते हैं। 
 
यह मंत्र वाणी सिद्धि के लिए श्रेष्ठ है। इसे कम से कम नवमी से शुरू कर अगले वर्ष की नवमी तक नित्य 1008 बार जप करें तो इसका परिणाम स्वयं अनुभूत करेंगे। 
 
वाक् सिद्धि हेतु-
 
ॐ ह्रीं दुं दुर्गाय नम: ॐ बव वाग्वादिनि स्वाहा।
 
इस मंत्र का जप करने से वाक्  सिद्धि होती है, इसमें संशय नहीं है। 
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