हर नवरात्र के पीछे का एक वैज्ञानिक आधार है। पृथ्वी द्वारा सूर्य की परिक्रमा काल में एक साल की चार संधियां होती हैं। जिनमें से मार्च व सितंबर माह में पड़ने वाली गोल संधियों में साल के दो मुख्य नवरात्र आते हैं। इस समय बीमारियों के आक्रमण की सर्वाधिक संभावना होती है।
ऋतु संधियों में अक्सर शारीरिक बीमारियां बढ़ती हैं। अत: उस समय स्वस्थ रहने के लिए, शरीर को शुद्ध रखने के लिए, तन-मन को निर्मल रखने के लिए की जाने वाली प्रक्रिया का नाम 'नवरात्र' है।
हालांकि शरीर को सुचारू रखने के लिए शरीर की सफाई या शुद्धि प्रतिदिन तो हम करते ही हैं किन्तु अंग-प्रत्यंगों की पूरी तरह से भीतरी सफाई करने के लिए हर 6 माह के अंतर से सफाई अभियान चलाया जाता है जिसमें सात्विक आहार के व्रत का पालन करने से शरीर की शुद्धि, उत्तम विचारों से ही उत्तम कर्म, कर्मों के सच्चरित्रता से मन शुद्ध होता है, क्योंकि स्वच्छ मन मंदिर में ही तो ईश्वर की शक्ति का स्थायी निवास होता है।