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चैत्र नवरात्रि 30 मार्च से, कैसे करें देवी आराधना, जानें घट स्थापना के मुहूर्त

इस बार तृतीया तिथि क्षय होने से अष्टरात्रि में होगी देवी आराधना

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पं. हेमन्त रिछारिया

, शुक्रवार, 21 मार्च 2025 (14:15 IST)
Chaitra navratri 2025: इस माह की दिनांक 30, दिन रविवार से चैत्र नवरात्रि प्रारंभ होने जा रही है। हमारे सनातन धर्म में नवरात्रि का पर्व बड़े ही श्रद्धा भाव से मनाया जाता है। हिन्दू वर्ष में चैत्र, आषाढ़, आश्विन और माघ मासों में चार बार नवरात्रि का पर्व मनाया जाता है, जिसमें दो नवरात्रि को प्रगट एवं शेष दो नवरात्रि को गुप्त नवरात्रि कहा जाता है।ALSO READ: चैत्र नवरात्रि 2025 की अष्टमी तिथि कब रहेगी, क्या रहेगा पूजा का शुभ मुहूर्त?

चैत्र और आश्विन मास के नवरात्रि में देवी प्रतिमा स्थापित कर मां दुर्गा की पूजा-आराधना की जाती है, वहीं आषाढ़ और माघ मास में की जाने वाली देवी पूजा 'गुप्त नवरात्रि' के अंतर्गत आती है। जिसमें केवल मां दुर्गा के नाम से अखंड ज्योति प्रज्वलित कर या जवारे की स्थापना कर देवी की आराधना की जाती है। आज से चैत्र मास की नवरात्रि प्रारंभ होने रही है। 
 
अष्टरात्रि में होगी देवी आराधना : पंचांग अनुसार नवसंवत्सर 2082 में देवी आराधना का पर्व आठ रात्रि तक मनाया जाएगा क्योंकि चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया 'क्षय' तिथि है। शास्त्रानुसार जो तिथि दो सूर्योदय स्पर्श ना करे उसे पंचांगों में क्षय तिथि माना जाता है। चैत्र शुक्ल तृतीया का प्रारंभ दिनांक 31 मार्च 2025 को प्रात: 09 बजकर 13 मि. से होगा एवं समाप्ति दिनांक 01 अप्रैल 2025 को प्रात: 05 बजकर 44 मि. होगी, जबकि 31 मार्च एवं 01 अप्रैल दोनों ही दिन सूर्योदय क्रमश: प्रात: 06 बजकर 13 मि. एवं प्रात: 06 बजकर 12 मि. पर होगा अर्थात सूर्योदय के समय दोनों ही दिन तृतीया तिथि नहीं होने से 'तृतीया' क्षय तिथि होगी।

तृतीया तिथि के क्षय होने से इस वर्ष चैत्र नवरात्रि में देवी आराधना आठ रात्रि में होगी। दुर्गाष्टमी दिनांक 05 अप्रैल 2025 को एवं श्रीराम नवमी 06 अप्रैल 2025 को रहेगी।
 
आइए जानते हैं कि इस नवरात्रि में किस प्रकार देवी आराधना करना श्रेयस्कर रहेगा। मुख्य रूप से देवी आराधना को हम तीन भागों में विभाजित कर सकते हैं-
 
1. घट स्थापना, अखंड ज्योति प्रज्वलित करना व जवारे स्थापित करना- श्रद्धालुगण अपने सामर्थ्य के अनुसार उपर्युक्त तीनों ही कार्यों से नवरात्रि का प्रारंभ कर सकते हैं अथवा क्रमश: एक या दो कार्यों से भी प्रारंभ किया जा सकता है। यदि यह भी संभव नहीं तो केवल घट-स्थापना से देवी पूजा का प्रारम्भ किया जा सकता है।
 
2. सप्तशती पाठ व जप- देवी पूजन में दुर्गा सप्तशती के पाठ का बहुत महत्व है। यथासम्भव नवरात्रि के नौ दिनों में प्रत्येक श्रद्धालु को दुर्गासप्तशती का पाठ करना चाहिए किन्तु किसी कारणवश यह संभव नहीं हो तो देवी के नवार्ण मंत्र का जप यथाशक्ति अवश्य करना चाहिए।
!! नवार्ण मंत्र- 'ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै' !!
 
3. पूर्णाहुति हवन व कन्या भोज- नौ दिनों तक चलने वाले इस पर्व का समापन पूर्णाहुति हवन एवं कन्याभोज कराकर किया जाना चाहिए। पूर्णाहुति हवन दुर्गा सप्तशती के मंत्रों से किए जाने का विधान है किन्तु यदि यह संभव ना हो तो देवी के 'नवार्ण मंत्र', 'सिद्ध कुंजिका स्तोत्र' अथवा 'दुर्गाअष्टोत्तरशतनाम स्तोत्र' से हवन सम्पन्न करना श्रेयस्कर रहता है।
 
चैत्र नवरात्रि घट स्थापना मुहूर्त-
 
नवरात्रि के यह नौ दिन मां दुर्गा की पूजा-उपासना के दिन होते हैं। अनेक श्रद्धालु इन नौ दिनों में अपने घरों में घट-स्थापन कर अखंड ज्योति की स्थापना कर नौ दिनों का उपवास रखते हैं।

आइए जानते हैं कि नवरात्रि में घट-स्थापन एवं अखंड ज्योति प्रज्वलन का शुभ मुहूर्त कब है-
 
अभिजित मुहूर्त- मध्यान्ह 12:00 मि. से मध्यान्ह 12:48 मि. तक
प्रात:- 09:19 मि. से 10:51 मि. तक (लाभ) 
अपरान्ह- 10:51 मि. से मध्यान्ह 12:23 मि. तक (अमृत)
मध्यान्ह- 01:56 मि. से 03:28 मि. तक (शुभ)
सायंकाल- 06:33 मि. से रात्रि 08:01 मि. तक (शुभ)
रात्रि- 08:01 मि. से रात्रि 09:28 मि. तक (अमृत)
 
सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त-
अखंड ज्योति- अपरान्ह- 11:59 मि. से मध्यान्ह 12:23 मि. तक (अभिजित+अमृत)
 
जो श्रद्धालुगण अखंड ज्योति प्रज्वलित करना चाहते हैं वे बाती के रूप कलावा (मौली) का प्रयोग करें, इससे मां लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त होता है एवं साधक पर सदैव लक्ष्मी की अनुकम्पा बनी रहती है।
 
विभिन्न लग्नों में घट-स्थापन कर अखंड ज्योति प्रज्वलित किए जाने का फल भी निम्न प्रकार से प्राप्त होता है-
 
1. मेष लग्न- धन लाभ
2. वृष लग्न- मृत्यु
3. मिथुन लग्न- संतान नाश
4. कर्क लग्न- समस्त सिद्धियां
5. सिंह लग्न- बुद्धि नाश
6. कन्या लग्न- लक्ष्मी प्राप्ति
7. तुला लग्न- ऐश्वर्य
8. वृश्चिक लग्न- स्वर्ण लाभ
9. धनु लग्न- अपमान
10. मकर लग्न- पुण्य प्राप्ति
11. कुंभ लग्न- धन-समृद्धि की प्राप्ति
12. मीन लग्न- दुःख की प्राप्ति होती है।
 
-ज्योतिर्विद् पं. हेमन्त रिछारिया
प्रारब्ध ज्योतिष परामर्श केन्द्र

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